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कपड़े बने दुनिया के लिए खतरा

किसी भी पार्टी, पारिवारिक समारोह में सबसे अलग दिखना और आकर्षण का केंद्र बनना किसे पसंद नहीं होगा! यही वजह है कि आज लोग आकर्षक और अलग दिखने के लिए अपने कपड़ों पर हजारों-लाखों रुपये खर्च कर देते हैं। हालांकि लोगों को कपड़े चुनने का व्यक्तिगत अधिकार है। लेकिन अगर इस पसंद से हमारे पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों को भारी कीमत चुकानी पड़ती है, तो यह सवाल निश्चित रूप से व्यावहारिक हो जाता है कि क्या हम सही राह पर हैं ?
नया सीजन आ गया है, नई सेल, नया कलेक्शन… बाजार में है इतना है कि हम सब सोच रहे हैं कि कब शॉपिंग शुरू करें … लेकिन इस बार बाजार जाने से पहले सोच लें कि कहीं फैशन के पीछे की यह भागदौड़ आपको प्रकृति का दुश्मन तो नहीं बना रही?
सुनने में यह थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन फैशन की यह दीवानगी आपके क्रेडिट कार्ड से ज्यादा पर्यावरण पर भारी पड़ रही है। सच तो यह है कि बहुत तेजी से हमारे प्राकृतिक जलस्रोत, हवा और जमीन नष्ट होने लगे हैं।
हालात कितने खराब हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका की न्यूज साइट ईको वॉच लोगों को पर्यावरण के मुद्दों के प्रति जागरुक कर रही है। इस साइट के अनुसार वैज्ञानिकों का दावा है कि हमारे कपड़ों की वजह से दुनिया सबसे ज्यादा गंदी होती जा रही है। कुल मिलाकर हिसाब यह है कि जो कपड़े हमें सुंदर दिखाते हैं, वे दरअसल दुनिया को गंदा कर रहे हैं।
आपका अगला प्रश्न होगा कि अब भला कपड़ों से क्या नुकसान हो सकता है। तो जवाब है इसके पीछे की कहानी। गौरतलब है कि दुनिया भर में लोग सूती कपड़ों को सबसे ज्यादा पसंद करते हैं, जिसके लिए कपास की खेती महत्वपूर्ण है। कपास प्राकृतिक है, लेकिन इसे प्राप्त करने की प्रक्रिया पर्यावरण के लिए हानिकारक होती है।
कपास की खेती किसी भी अन्य फसल की तुलना में धरती के उपजाऊ पन की क्षमता को कम कर देती है। इसके लिए अपेक्षाकृत अधिक पानी की जरूरत होती है। कपास की खेती के लिए खाद, कीटनाशक और अन्य हानिकारक रसायनों की भी बहुत आवश्यकता होती है।
क्या आप जानते हैं कि दुनिया में अकेले कपास की खेती में कुल कीटनाशकों का 22.5 प्रतिशत खर्च होता है। और सिर्फ एक सूती टी-शर्ट बनाने में करीब 2,700 लीटर पानी लगता है। यानी कपास मिट्टी को खराब कर देती है और कीटनाशक, अन्य हानिकारक रसायन पानी को दूषित कर देते हैं।
इसके बाद पॉलिएस्टर और नायलॉन आता है। इसकी तैयारी के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया जाता है। मतलब प्राकृतिक कोयला। जिसके लिए धरती खोदी जा रही है, जंगल काटे जा रहे हैं और कारखानों से निकलने वाला धुआं हवा को जहरीला बना रहा है।
इसके बाद पूरी दुनिया में विस्कोस और रेयॉन की डिमांड है। लकड़ी का गूदा विस्कोस और रेयॉन से मिलता है। यह गूदा पुराने और लुप्त होते वनों में पाया जाता है। जिसके लिए खुलेआम जंगल काटे जा रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि कपड़े बनाने के लिए हर साल 15 करोड़ से ज्यादा पेड़ काटे जाते हैं। आपके कपड़ों के लिए इंडोनेशिया, कनाडा और अमेज़न के जंगलों की बलि दी जा रही है।
अब बात करते हैं कपड़े बनाने की प्रक्रिया और उसके बाद की। पॉलिएस्टर, नायलॉन, एक्रेलिक जैसे सिंथेटिक फाइबर को जब मशीन में धोया जाता है तो लाखों सूक्ष्म कण उनके फाइबर से अलग हो जाते हैं। फिर यही पानी नालियों से होते हुए नदी, तालाब और फिर समुद्र में चला जाता है।
सिंथेटिक फाइबर के कण डिटर्जेंट और अन्य रसायनों के साथ मिलकर ज़हर बनाते हैं जो केकड़ों, झींगा, मछली, कछुए, जैसे समुद्री प्रजातियों को महत्वपूर्ण नुकसान पहुंचा रहे हैं।
क्या आप जानते हैं उस कश्मीरी स्वेटर के पीछे का सच, जिसकी दीवानगी ने हमें ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा है। मंगोलिया दुनिया में कश्मीरी ऊन का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। यहाँ की बकरियों की मुलायम ऊन का उपयोग कश्मीरी जम्पर बनाने में किया जाता है।
भेड़ और अन्य मवेशियों की तुलना में ये बकरियां घास के मैदानों को अधिक नुकसान पहुंचाती हैं। मांग को देखते हुए 1990 के दशक से अब तक पशुओं की संख्या में तीन गुना वृद्धि की जा चुकी है। मंगोलिया के घास के मैदान, चरवाहे और वन्यजीव, जिनमें हिम तेंदुआ, कोर्साक लोमड़ी और बोबाक मर्मोट शामिल हैं, इन दिनों भूखे मर रहे हैं। घास के मैदानों के सिकुड़ने से मिट्टी का कटाव हो रहा है।
क्या आप जानते हैं कि स्वच्छ जल को प्रदूषित करने के मामले में वैश्विक स्तर पर क्लोथिंग डाई व्यवसाय कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है?
पश्चिमी उपभोक्तावादी संस्कृति का प्रभाव भारत जैसे अनेक विकासशील देशों पर देखा जा रहा है। दुनिया के अधिकतर देश भारत, बांग्लादेश, वियतनाम और पाकिस्तान जैसे विकासशील देशों में परिधान उद्योग स्थापित कर रहे हैं। यहां उन्हें कम दाम पर मजदूर मिल जाते हैं। पानी, बिजली, रसायन भी मौजूद हैं। अगर प्रदूषण होता है तो इन देशों में होता है और कचरा बाहर भी डालना पड़े तो विकासशील देशों की जमीन ही काम आती है।
इसके बाद बाजार खुला है। यानी मशहूर देश यहां अपना माल बनाते हैं, गंदगी फैलाते हैं, मुनाफा कमाते हैं और फिर हमें इस गंदगी में ऐसे ही छोड़ देते हैं। कपड़ा उद्योग ने इंडोनेशिया में सीताराम नदी और उसके आसपास की मानव बस्तियों और वन्यजीवों को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। बात अगर भारत की करें तो तमिलनाडु के तिरुपुर की हालत सबसे खराब है।
यहां एक बहुत बड़ा कपड़ा उद्योग है, जिसने वहां की जमीन को इतना खराब कर दिया है कि वह फसल उगाने लायक नहीं रह गई है। यूरोप के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग (UNECE) के अनुसार, फैशन व्यवसाय दुनिया में पानी का उपयोग करने वाले सबसे बड़े उद्योगों में से एक है। इतना ही नहीं, दुनिया का 20 फीसदी प्रदूषित पानी इसी वजह से है।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि फैशन व्यवसाय से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 60 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। जो 2030 तक 2.8 अरब टन प्रति वर्ष तक पहुंच जाएगा। इसका मतलब साफ है कि जो कारोबार फायदे का सौदा नजर आ रहा है, उसने असल में मुनाफे के पीछे तबाही ला दी है।
नुकसान की बात तो हमने कर ली लेकिन कैटवॉक लुक्स और सेलेब्रिटीज से प्रभावित होकर क्या दुनिया में जमा किए कपड़ों के कचरे से निकलने का कोई उपाय है? तो इसका जवाब है बिलकुल है वो है सस्टेनेबल फैशन। यह फास्ट फैशन से बिल्कुल अलग है। सस्टेनेबल फैशन वह श्रेणी है जहां चीजें नैतिक और पर्यावरण के अनुकूल बनती हैं।
मसलन, हर सीजन में कलेक्शन जारी करने के बजाय अगर डिजाइनर ऐसे डिजाइन बनाने पर फोकस करें, जो हर सीजन में पहने जा सकें, तो काफी बचत हो सकती है। कम दाम में मिलने वाले कपड़े खतरनाक रसायनों से तैयार किये जाते हैं।
इसलिए क्वांटिटी से ज्यादा क्वालिटी पर ध्यान दिया जा सकता है। साथ ही आप हथकरघा जैसे घरेलू उपाय अपनाने से क्यों कतराते हैं? ये प्राकृतिक रंगों, प्राकृतिक धागों से तैयार किए गए कपड़े हैं.. जो न सिर्फ आपको एक नया रूप देंगे बल्कि प्रकृति की रक्षा भी करेंगे और फिर आदिवासियों को रोजगार भी मिल सकेगा। लघु उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा।
इसके साथ ही अलमारी में कपड़ों के बंडल रखने की परंपरा को छोड़ना जरूरी है। रिसाइकिल कपड़ों का इस्तेमाल किया जा सकता है। क्या आप जानते हैं कि नए कपड़े से बने सूट की तुलना में, पुनर्नवीनीकरण कपड़ों से CO2 उत्सर्जन को लगभग पांच किलो कम करने, कीटनाशकों के उपयोग को 300 ग्राम तक कम करने और लगभग 6,500 लीटर पानी बचाने का अनुमान है।
हालांकि यहां की जिम्मेदारी सिर्फ हमारी ही नहीं है, बल्कि गारमेंट इंडस्ट्रीज की भी है। ऐसे कपड़ों की कीमत आम आदमी के बजट के भीतर करने की जरूरत है।
देखिए, फास्ट फैशन का असल में मतलब होता है चलन के साथ चलना। यह उन लोगों के लिए बनाया गया है जो महंगे कपड़े नहीं खरीद सकते। लेकिन हमने इसकी परिभाषा को गलत समझा। जो लोग टिकाऊ फैशन का खर्च नहीं उठा सकते हैं, वे अपने कपड़ों को बर्बाद करने के बजाय उन्हें रीसायकल और किराए पर ले सकते हैं। सही मायनों में यह फास्ट फैशन है।

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