बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण और सियासी समीकरण किस पल बदल जाए, कहा नहीं जा सकता है। दरअसल,एनडीए से अलग होने वाले चिराग पासवान की नजदीकियां फिर से बढ़ने लगी है।
बिहार में दो विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने वाले है। जिसमे चिराग पासवान ने भाजपा को समर्थन देने का फैसला किया है। इतना ही नहीं भाजपा के समर्थन में चुनाव प्रचार भी करेंगे। ऐसे में राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहे है कि,लोक जनशक्ति पार्टी टूटने और चुनाव चिन्ह छीनने के बाद भी चिराग पासवान क्यों भाजपा के पास जा रहे है। इस पर खुद चिराग पासवान ने कहा है कि भाजपा नेताओं ने लंबी बातचीत के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई है। इस दौरान बिहार को लेकर कई बिंदुओं पर चर्चा हुई है। जिसको आने वाले समय में सार्वजनिक की जाएंगी। इतना ही नहीं चिराग पासवान ने यह भी कहा कि चुनाव होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह से मुलाकात होनी है,लेकिन अभी मौजूदा उपचुनाव को लेकर फैसला किया गया है। लोक जनशक्ति पार्टी हरसंभव मेहनत कर भाजपा उम्मीदवारों को जिताने की कोशिश करेगी।
इस दौरान चिराग पासवान से यह पूछा गया कि क्या भाजपा में उनकी वापसी तय मानी जा रही है तो इस पर उन्होंने कहा कि मैं सिर्फ उपचुनाव की बात कर रहा हूं। भविष्य में इसका फैसला लिया जाएगा। लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में चिराग पासवान भाजपा के साथ गठबंधन करेंगे।बिहार में राजनीतिक उठापटक के बाद भाजपा अकेले अकेले चुनाव नहीं लड़ सकती है। हालांकि, चिराग पासवान ने अमित शाह के साथ बैठक का कोई ब्यौरा सार्वजानिक नहीं किया है,लेकिन कहा कि भविष्य में गठबंधन के लिए भाजपा के साथ उनकी बातचीत जारी रहेगी। इससे एक बात तो साफ है कि बिहार में राजनितिक बदलाव के बाद चिराग की भाजपा के साथ रिश्ते फिर से बेहतर हो रहे हैं और दोनों के बीच दोस्ती की पटकथा नए तरीके से लिखी जा रही है।
लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास पासवान के समय से ही भाजपा के साथ रही है,लेकिन साल 2020 2020 में रामविलास के निधन के बाद राजनीतिक विरासत को लेकर बेटे चिराग पासवान और भाई पशुपति पारस आमने-सामने आ गए थे, जिसके चलते एलजेपी में दो फाड़ हो गए।चिराग को छोड़कर बाकी एलजेपी के सभी सांसद पशुपति पारस के साथ हो गए।इस तरह रामविलास के निधन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट में खाली हुई जगह पर पशुपति पारस केंद्रीय मंत्री बन गए और चिराग चिराग पासवान खाली हाथ रह गए थे। इतना ही नहीं इसके बाद चिराग पासवान पूरी तरह से अलग-थलग पड़ गए थे। अब भाजपा के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ाने में जुट गए हैं। पहले राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भी चिराग पासवान ने भाजपा गठबंधन के उम्मीदवारों का समर्थन किया था। वहीं अब उपचुनाव में मोकामा और गोपालगंज सीट पर समर्थन करने का ऐलान किया है इतना ही नहीं उन्होंने दोनों सीटों पर चुनाव प्रचार करने की बात भी कही है ताकि भाजपा के साथ अपने रिश्ते को बेहतर किया जा सके,जिस पर बिहार भाजपा के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने भी कहा कि चिराग पासवान का समर्थन हमेशा से भाजपा के साथ रहे है।
गौरतलब है कि,बिहार के बदले राजनीतिक समीकरण में चिराग पासवान के लिए जितनी जरूरत भजपा की है, उतनी ही जरूरत भाजपा को चिराग पासवान की भी है। चिराग पासवान ने खुद को अपने पिता रामविलास पासवान के सियासी उत्तराधिकारी के तौर पर स्थापित किया है। बिहार में करीब 6 फीसदी पासवान मतदाता हैं जिन्हें एलजेपी का हार्ड कोर वोटर माना जाता है। जो अब भी चिराग पासवान के साथ जाना चाहेंगी। इसलिए भाजपा जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए चिराग पासवान के साथ भविष्य की तैयारी कर रही है। यह भी सच है कि बिहार की सियासत जातीय समीकरण के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है। जो भाजपा और चिराग का भविष्य तय करेंगे।
बिहार में 50 फीसदी से ज्यादा ओबीसी मतदाता है, जिस पर नीतीश-तेजस्वी की पकड़ मानी जाती है। इसके अलावा 16 दलित मतदाता है। जिसमे से 6 फीसदी हिस्सा पासवान जाति का है। ऐसे में चिराग पासवान इन्हीं पासवान वोटों के सहारे अपनी सियासी समीकरण बनाने में लगे हुए है। इसी कारण भाजपा उन्हें साधने की कवायद में हैं। हालांकि, चिराग पासवान का अपने चाचा पशुपति पारस से रिश्ते काफी खराब हो चुके है। वो पहले भी कह चुके है कि जब तक उनके चाचा भाजपा गठबंधन में हैं वे उसमे शामिल नहीं होंगे। बिहार की राजनीति में क्या होता है वो तो आने वाले दिनों में ही पता चालेगा।