वर्ष 2005 की बात है। जब फरवरी माह में बिहार विधानसभा चुनाव हुए थे। तब एलजेपी ( लोकजनशक्ति पार्टी ) अकेले अपने दम पर मैदान में उतरी थी। रामविलास पासवान तब पार्टी के सर्वे सर्वा हुआ करते थे। साथ ही उस दौरान बिहार में पार्टी ने ज्यादातर सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे । तब उनकी पार्टी को रिकॉर्ड तोड़ 29 सीटें मिली थी। इस तरह रामविलास पासवान अकेले अपने दम पर सत्ता की चाबी पा गए थे।
लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी है। रामविलास पासवान अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। वह बीमार है। उनकी विरासत बेटे चिराग पासवान ने संभाल रखी है। ऐसे में चिराग पासवान बिहार में एक बार फिर विधानसभा चुनाव में वर्ष 2005 की पुनरावृति का सपना देख रहे हैं। यानी कि वह एनडीए में रहकर महत्वपूर्ण मुकाम चाहते हैं । फिलहाल वह इस कवायद में जुटे हैं कि सत्ता की चाबी उनके हाथ में रहे ।
लेकिन इस कशमकश में कहीं राजनीतिक पारी का पासा ही ना पलट जाए। हो सकता है वह एनडीए में रहकर यह कारनामा कर दिखाएं। लेकिन इसकी संभावनाएं बहुत कम दिखाई दे रही है। दूसरी तरफ चिराग पासवान के पास एक विकल्प एनडीए से बाहर रहकर अपने दम पर या किसी दूसरी पार्टी के साथ गठबंधन करके बिहार की राजनीति में नया समीकरण बनाने की भी है। हालांकि सीट फार्मूले पर आज एक बार फिर चिराग पासवान बीजेपी के शीर्ष नेताओं से मिल रहे हैं। इससे पहले भी वह बीजेपी के प्रमुख जेपी नड्डा से मिल चुके हैं।
चिराग पासवान चाहते हैं कि उनकी पार्टी को बिहार में कम से कम 42 सीट मिले । लेकिन दूसरी तरफ बीजेपी एलजेपी को 30 से 32 सीट देने को तैयार है । इससे ज्यादा सीट अगर चिराग पासवान चाहते हैं तो फिर वह अपनी अलग राह चल सकते हैं। शायद यही वजह है कि एलजेपी ( लोक जनशक्ति पार्टी ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने प्रदेश के अपने सभी कार्यकर्ता और नेताओं से कह दिया है कि वह 143 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर ले।
इस समय जो एलजेपी की स्थिति है उससे तो यही लग रहा है कि चिराग पासवान बिना गठबंधन के चुनाव में नहीं उतरेंगे। पासवान पहले ही कह चुके हैं कि वह महागठबंधन में नहीं जाएंगे। यदि वह एनडीए से भी अलग होते हैं तो उनके पास विकल्प बहुत कम है। चिराग पासवान के सामने मुश्किल यह है कि केंद्र में वह भाजपा को समर्थन दे रहे हैं। लेकिन बिहार में रहे वह एनडीए के साथ गठबंधन में शामिल नहीं होना चाहते। वह कयी बार कह चुके हैं किजबकि उनका गठबंधन बीजेपी के साथ है ना कि जेडीयू के साथ। ऐसे में अगर वह एनडीए के साथ गठबंधन में रहते हैं तो उन्हें 30 – 32 सीटों पर ही संतोष करना पड़ सकता है। जबकि चिराग पासवान की इच्छा है कि वह प्रदेश की कम से कम 132 सीटों पर चुनाव लड़े।
दूसरी तरफ चिराग पासवान उपेंद्र कुशवाहा और मायावती के गठबंधन में शामिल होने की भी इच्छा रखते हैं। हालांकि चुनावी पंडितों का आकलन है कि अगर इस गठबंधन में चिराग पासवान जाते हैं तो चुनाव परिणाम में बड़ा फेरबदल हो सकता है। बिहार में दलित और महादलित मिलाकर करीब 16 प्रतिशत मतदाता है। जबकि कुशवाहा की कुल आबादी 6 से 7 प्रतिशत है। इस तरह इसमें गठबंधन का हिसाब लगाया जाए तो कुल मिलाकर करीब 20 से 21 प्रतिशत होता है। इसमें भी करीब 5 प्रतिशत पासवान समाज के मतदाता रामविलास पासवान और चिराग पासवान का की वजह से उनके साथ आ सकते हैं।
गौरतलब है कि 2015 के विधानसभा चुनाव में रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति एलजेपी ने 42 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। जिसमें उनके महज दो विधायक चुनाव जीते थे । एलजेपी को सभी सीटों पर 28. 79 वोट मिले थे, जो कि राज्य स्तर पर 4.4 प्रतिशत है।