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भारत के लिए यूं फायदेमंद हुई चीन की टेढ़ी चाल

कोरोना वायरस से पूरी दुनिया हलकान है। इस वायरस के  जन्मदाता चीन से पूरी  दुनिया खफा है।कोरोना महामारी के दौरान भी चालबाज चीन की कोशिश रही कि वह भारत को हर तरह से उलझाए रहे। उसने न सिर्फ सीमाओं पर तनाव की स्तिथि बनाई बल्कि कूटनीतिक मोर्चे पर भी भारत को पछाड़ने की कोशिश की। लेकिन इसमें उसकी चाल उल्टी पद गई और भारत के लिए फायदे की साबित हुई। अब चीन ने पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच दूरियां बढ़ा दी हैं, वहीं सऊदी के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का काम किया है।

दरअसल विवाद की शुरुआत इस्लामिक देशों में चीन की चाल से शुरू हुई। इस्लामिक देशों में चीन ने अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए  पहले सऊदी अरब को साधने की कोशिश की।जब  सफलता हाथ न लगी तो  उसके प्रतिद्वंद्वी ईरान से हाथ मिलाया। फिर मलयेशिया और पाकिस्तान की सहायता से इस्लामिक देशों में सऊदी अरब का दबदबा खत्म करने की कोशिश की।

कूटनीतिक विशेषज्ञ बताते हैं कि मामला तब बिगड़ा जब सऊदी अरब का प्रभुत्व कम करने और उसकी जगह पाकिस्तान और मलयेशिया को खड़ा करने की रणनीति के तहत  चीन ने परोक्ष रूप से मलयेशिया में एक बड़ा इस्लामिक सम्मेलन कराया। इसमें सऊदी अरब की भागीदारी नहीं थी, जबकि पाकिस्तान और मलयेशिया अगुआ की भूमिका में थे। इसके अलावा चीन ने ईरान से कई अहम समझौते किए।

इन सब के बीच चीन का मकसद भारत को अलग-थलग करने का था ।चीन की योजना अनुच्छेद 370 के सवाल पर इस्लामिक देशों में भारत को अलग-थलग करने की थी। उसकी इस योजना को तब सफलता मिली जब इसी साल जून के महीने में ओआईसी के कांट्रेक्ट समूह ने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों की स्थिति पर चिंता जाहिर की।

इसी बीच सऊदी अरब को चीन की उस योजना की भनक लगी जिसके तहत चीन ओआईसी में पाकिस्तान और मलयेशिया का प्रभुत्व कायम कराना चाहता था। इसकी भनक लगते ही सऊदी अरब का पाकिस्तान, मलयेशिया और चीन के प्रति रुख बेहद सख्त हो गया।जिसके कारण ओआईसी में अलग-थलग पड़े   पाकिस्तान की कोशिश ओआईसी के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के जरिए कश्मीर मुद्दे पर भारत को घेरने की थी। पाक बीते ढाई महीने से  बैठक बुलाने के लिए सऊदी अरब पर दबाव डाल रहा है। विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने इस संदर्भ में सऊदी अरब को ओआईसी के अन्य सदस्य देशों की बैठक बुलाने की धमकी भी दी। हालांकि उसका यह दांव भी उल्टा पड़ा। जिससे नाराज सऊदी अरब ने न सिर्फ पाकिस्तान को 3.2 अरब डॉलर का कर्ज चुकाने का फरमान सुनाया, बल्कि उसे तेल की आपूर्ति भी बंद कर दी।

जिससे भारत को कूटनीतिक लाभ मिल सकता है । सूत्रों के मुताबिक  सितंबर महीने में भारत सऊदी अरब से तेल आयात सहित कई अन्य क्षेत्रों में बड़ा करार करेगा। ओआईसी में सऊदी अरब का दबदबा है। ऐसे में सऊदी अरब सहित कई अन्य इस्लामिक देशों से भी भारत की नजदीकियां बढ़ेगी।

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