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सुरक्षा के नाम पर बच्चों को माता-पिता से दूर करती चाइल्ड प्रोटेक्शन सर्विसेज !

दुनिया में 193 देश हैं और हर देश में  सभ्यता,कानून, पहनावा और  रहन-सहन सब अलग हैं। किसी देश का ‘नॉर्म’ कई बार किसी दूसरे देश के लिए अपराध हो सकता है। लेकिन समस्या तब पैदा होने लगती है जब कोई देश ये मान लें कि केवल उसके देश की सभ्यता या कानून ही सर्वश्रेष्ठ है। हम बात कर रहे हैं यूरोपीय देशों की जहां एक कहावत बड़ी मशहूर है ‘Beware of the Jugendamt, hide your kids’ जिसका मतलब है  ‘जुगेंडमट से बचकर, अपने बच्चों को छुपा लें।  यहां दरवाजे की घंटी अगर तेज बजने लगती है तो माता-पिता की धड़कने भी तेज हो जाती हैं। लोग डर के मारे दरवाजा खोलने से डरते हैं। उन्हें लगता है कि  कोई चाइल्ड प्रोटेक्शन सर्विस वाले बच्चों की सेफ्टी का हवाला देकर उनके बच्चों से उनको अलग न कर दें। जर्मनी, नॉर्वे समेत कई देशों में बच्चों की परवरिश में छोटी-छोटी गलतियों के लिए माता-पिता को यही सजा दी जाती है। ताजा मामला भारतीय बच्ची अरिहा शाह का है।
अरिहा के माता-पिता भारतीय हैं लेकिन बच्ची जर्मनी के ‘फोस्टर केयर’ में है। मात्र 27 महीने की बच्ची को उसके माँ-बाप से अलग कर दिया गया है। ये बात जर्मन अधिकारियों से होते हुए बात अब भारत की संसद और विदेश मंत्रालय के स्तर तक आ गयी है। भारत के 56 सांसदों ने बच्ची अरिहा की रिहाई के लिए जर्मन एंबेसडर को पत्र लिखा था।

नॉर्वे की मिसेज बनर्जी जैसा मामला

इसी साल आई  रानी मुखर्जी की एक फिल्म ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नॉर्वे’। बच्ची अरिहा के माता-पिता की कहानी भी उस फिल्म की ओरिजनल हीरोइन सागरिका चक्रवर्ती से मिलती-जुलती लग रही है। 2011 में नॉर्वे के अधिकारियों ने सागरिका के दो बच्चों को उससे ले लिया और उन्हें चाइल्ड प्रोटेक्शन सर्विस की देखभाल में दे दिया । उन पर ‘अनुचित पालन-पोषण’ का भी आरोप लगाया गया, ठीक वैसे ही जैसे जर्मन अधिकारियों ने अरिहा की मां धारा शाह और पिता भावेश शाह पर लगाया है। भावेश करीब तीन साल पहले वर्क वीजा पर जर्मनी गए थे। उनके साथ पत्नी और बेटी अरिहा भी थीं। जब अरिहा सात महीने की थी, जर्मनी के बाल कल्याण विभाग ‘यूजेंडमट’ ने बच्चों को उनके माता-पिता से अलग कर दिया।  बेबी अरिहा के डायपर पर खून पाए जाने के बाद जर्मन अधिकारियों ने माता-पिता पर ‘यौन उत्पीड़न’ का आरोप लगाया। हालांकि, उनकी मां ने कहा कि यह एक मामूली दुर्घटना के कारण हुआ है। सागरिका चक्रवर्ती ने कई सालों की कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार अपने बच्चों को वापस पा लिया, लेकिन बेबी अरिहा के लिए लड़ाई जारी है।
भारतीय परिवारों में अक्सर माता-पिता बच्चों के साथ सोते हैं। बच्चों को सही-गलत पर डांटा भी जाता है यहां तक की बच्चों को माता पिता चांटा भी मार देते हैं। लेकिन यूरोपीय देशों में ये अपराध है। दो साल की बच्ची को फोस्टर केयर में रखा जा रहा है। उसमें भी उसे स्पेशल नीड्स वाले होम केयर में रखा जा रहा है। क्योंकि जर्मन अधिकारियों के मुताबिक बच्ची को ‘अटैचमेंट’ की समस्या है। लेकिन भारत में माँ बाप से बच्चे की अटैचमेंट कोई योग्यता अयोग्यता नहीं है बल्कि ये स्वाभाविक है। चाइल्ड प्रोटेक्शन सर्विस पर आरोप है कि बच्ची जैन परिवार की है और शाकाहारी है फिर भी उसे नॉन-वेज खिलाया जा रहा है। जर्मनी में नॉन वेज खाना आम बात है। फिलहाल भारत में अरिहा के लिए बड़ा जन समर्थन जुट रहा है। #BoycottGermany  और #Germanyreturnariha जैसे हैशटैग ट्विटर पर ट्रेंड हो रहे हैं।

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जर्मनी की चाइल्ड केयर संस्था ‘ यूगेनडाम्ट ‘ में बेबी अरिहा जैसे और भी कई मामले हैं, जिन पर गंभीर सवाल उठे हैं। 2018 में  एजेंसी ने 52,000 से अधिक बच्चों को उनके माता-पिता से दूर कर दिया और उन्हें फोस्टर देखभाल में रखा। 2014 में जर्मन लेखिका बीटा केली ने भी संगठन पर आरोप लगाया था कि उनकी बेटी से उनकी बच्ची को बेवजह ही छिन लिया गया। फिर उन्होंने जब इंटरनेट पर इस बारे में डिटेल में पढ़ा तो उन्हें कई विवादित बातें पता चली। उन्होंने इसकी तुलना नाजी से कर दी । विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों के अपहरण के ऐसे मामले बढ़ने की वजह यह है कि इन फोस्टर केयर को मिलने वाला पैसा देखभाल में बच्चों की संख्या के अनुपात में होता है। जितने अधिक बच्चे होंगे उतना अधिक सरकार द्वारा पैसा मिलेगा। इस तरह के आरोप इस संस्था पर गहरा संदेह पैदा करते हैं।
धारा और भावेश शाह के ऊपर क्रिमिनल चार्जेज सिद्ध नहीं हो सके, यानी वे बाइज्जत बरी हुए हैं। लेकिन मसले की बात है कि इसके बावजूद बेबी अरिहा को दूसरे फोस्टर होम भेज दिया गया, जहां कि स्पेशल नीड्स वाले बच्चे रखे जाते हैं। जर्मनी का एक और अजीब सा कानून है कि अगर कोई बच्चा दो साल तक फोस्टर केयर में रह गया, तो फिर उसे 18 की अवस्था पूरी होने तक वहीं रहना होगा। बेबी अरिहा पिछले 18 महीने से फोस्टर केयर में रह रही है, यानी उसके पास गिने-चुने महीनों का मौका है।  जर्मन अधिकारी पूरी दुनिया को एकरंगा देखने की अपनी नीयत साफ करेंगे और यह मानेंगे कि दुनिया में जर्मन रहन-सहन के अलावा भी कोई ढंग हो सकता है, जो जायज है, तब तो बेबी अरिहा की वतन वापसी हो सकेगी वरना उसकी राह फिलहाल मुश्किल ही दिखती है।

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