किसी भी देश की राजधानी को उस देश की प्रगति का सूचक माना जाता है। इसलिए भारत की राजधानी दिल्ली को भी हर क्षेत्र में आधुनिक माना जाता है। लेकिन बावजूद इसके दिल्ली में बाल विवाह जैसी कुरीति के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। भारत सरकार की साल 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार 84,277 लोगों का दिल्ली में बाल विवाह हुआ है। जो पूरे देश के बाल विवाह का करीब एक प्रतिशत है। देशभर के 29 राज्यों में बाल विवाह के मामले में दिल्ली का 19वां स्थान है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में ‘बाल विवाह’ की समस्या कितनी विशाल है। जिससे देश की राजधानी भी अछूती नहीं है।
साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों की पुष्टि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के ताजा आंकड़े भी करते हैं। सर्वे के अनुसार देश में 20 से 24 साल की उम्र की 23.3 प्रतिशत महिलाएं वो हैं जिनका बाल विवाह हुआ है। वहीं, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो(एनसीआरबी) के अनुसार दिल्ली में साल 2019 में दो, साल 2020 में चार और साल 2021 में मात्र दो मामले बाल विवाह के दर्ज हुए थे। इससे स्पष्ट है कि ‘बाल विवाह’ जैसी सामाजिक बुराई अभी भी जारी है और बाल विवाह के मामलों की कहीं न कहीं पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं करवाई जाती है।
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन(केएससीएफ) द्वारा आयोजित ‘बाल विवाह मुक्त भारत’ अभियान में शामिल हुई स्वयंसेवी संस्थाओं ने दिल्ली की इस स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से अपील की है कि ‘बाल विवाह’ रोकने के लिए कानून का सख्ती से पालन करवाए ताकि अपराधियों में खौफ बने। इसी से ‘बाल विवाह’ की सामाजिक बुराई का अंत हो सकेगा।