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असम में उड़ाई जा रही है बाल विवाह कानून की धज्जियां

देश में एक ओर जहाँ बाल विवाह को क़ानूनी रूप से अपराध वहीं दूसरी ओर असम राज्य में बाल विवाह के आंकड़े बढ़ते जा नजर आ रहे हैं। आकंड़ों के अनुसार राज्य अभी भी करीब 4 हजार मुकदमे सिर्फ और सिर्फ बाल विवाह कानून की धाराओं में दर्ज हुए हैं।

 

इन आंकड़ों को देखते हुए असम सरकार एक्शन में आ गई है। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा ने ट्वीट कर कहा है कि राज्य सरकार शुरू से ही बाल विवाह के खतरों से वाकिफ थी। इसी का परिणाम है कि राज्य की पुलिस ने 4 हजार से ज्यादा मुकदमे सिर्फ और सिर्फ बाल विवाह कानून का मखौल उड़ाने की कोशिश करने वालों के खिलाफ दर्ज किए हैं। जिससे यह साफ़ नजर आ रहा है की किस तरह कानून की धज्जिया उड़ाई जा रही है।

 

मुख्यमंत्री ने लिया एक्शन कराये जाने का संज्ञान

 

आंकड़ों से सम्बंधित और अधिक जानकारियां खंगालने के बाद यह सामने निष्कर्ष सामने आया कि राज्य के 15 जिलों में से सबसे अधिक मुकदमे धुबरी जिले में दर्ज किये गए जहाँ इसकी संख्या 370 है। वहीँ दूसरे स्थान पर कमिश्नरेट है जहाँ से 192 मामले सामने आए। तीसरे स्थान पर गोलपारा जिला है जहाँ बाल विवाह के 157 मामले दर्ज किये गए। आंकड़ों के अनुसार दीमा हसाओ जिले से बाल विवाह के सबसे कम मामले (24) सामने आए। आंकड़ों के सामने आने के बाद राज्य सरकार ही नहीं आम लोग भी चकित हो गए हैं। मुख्यमंत्री अब इस आकड़े को देखते हुए एक्शन में नजर आ रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार मुख्यमंत्री इन सभी मुकदमों की एक रिपोर्ट बनाये जाने का आदेश दे दिया है जिससे अपराधियों पर सख्त कार्यवाही की जा सके। हिमंत बिस्वा ने अपने एक ट्वीट में यह भी कहा कि आने वाले दिनों में पुलिस कार्रवाई की संभावना है। मामलों पर कार्रवाई 3 फरवरी से शुरू होगी। मैं सभी से सहयोग करने का अनुरोध करता हूं।

 

 

क्या है बाल विवाह कानून

 

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के तहत 18 वर्ष से पहले विवाह को बाल विवाह के रूप में परिभाषित किया गया है। अगर कोई किसी भी प्रकार से बाल विवाह को बढ़ावा दे रहा है और इसमें शामिल है तो कानून इस प्रथा को मानव अधिकार का उल्लंघन मानता है। क्योंकि बाल विवाह का बच्चों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है जैसे, बच्चे का शिक्षा ,परिवार और दोस्तों से अलगाव, यौन शोषण, जल्दी गर्भावस्था जिससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव, घरेलू हिंसा , उच्च शिशु मृत्यु दर, कम वजन वाले शिशुओं का जन्म आदि।
भारत सरकार ने बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 के पहले के कानून के स्थान पर बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 को लागू किया। जिसका उद्देश्य बाल विवाह और इससे जुड़े और आकस्मिक मामलों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना है। इस अधिनियम द्वारा बाल विवाह पर रोक लगाने, पीड़ितों को राहत देने और इस तरह के विवाह को बढ़ावा देने या इसे बढ़ावा देने वालों के लिए सजा बढ़ाने के जैसे प्रावधानों को उपलब्ध करवाता है।

 

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