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चीन चलते आर्थिक मंदी के आसार

वैश्वीकरण के युग में सभी देशों में मौजूद अधिकतर प्रणालियाँ एक दूसरे पर आश्रित (अन्योन्याश्रित) हो गई है। नतीजतन देश-दुनिया में कुछ भी होने पर इसका प्रभाव समूचे विश्व में देखा जाता है। इसलिए हम अन्य देशों में विशेष रूप से हमारे पड़ोसी देशों में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक विकास से कमोबेश प्रभावित हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन का रियल एस्टेट क्षेत्र एक बड़े संकट का सामना कर रहा है, जिससे चीनी अर्थव्यवस्था को कड़ी टक्कर मिलने की संभावना है, लेकिन यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित कर सकता है।

आज से दो वर्ष पहले चीन ने पूरी दुनिया को कोरोना वायरस दिया था और अब आशंका है कि जल्द ही चीन दुनिया को आर्थिक महामंदी भी दे सकता है। दरअसल, चीन के प्रॉपर्टी मार्केट के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था दम तोड़ने की कगार पर है। अगर महामंदी आई तो इसका प्रभाव केवल चीन ही नहीं पूरी दुनिया पर पड़ेगा।

विडंबना है कि सभी देश विश्व में शांति स्थापित करना चाहते हैं लेकिन चीन के कारण जल्द ही दुनिया आर्थिक रूप से अशांत हो सकती है। पूरी दुनिया को डर है कि कहीं स्थिति अमेरिका के लीमैन जैसी न हो जाए। गौरतलब है कि अमेरिका में वर्ष 2008 में एक बहुत बड़ा वित्तीय संस्थान और बैंक लीमैन ब्रदर्स दिवालिया हो गया था। उस वक्त अमेरिका के इस बैंक के कारण पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में 6 प्रतिशत तक गिरावट आ गई थी। पूरी दुनिया में साढ़े 6 करोड़ लोगों की नौकरियां छीन गई। भारत में भी लगभग 5 लाख लोग नौकरी से हाथ धो बैठे थे। उस समय भारत की ओर से किए गए आर्थिक उपायों का नुकसान भारत की अर्थव्यवस्था अब भी राजस्व घाटे के रूप में उठा रही है।

Evergrande  क्या है ?

एवरग्रांड (Evergrande ) चीन की सबसे बड़ी प्राइवेट रियल एस्टेट कंपनी है। ये कंपनी दुनिया की 500 सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार है। जिन्हें फार्च्यून 500 कहा जाता है। कंपनी द्वारा चीन के 280 से ज्यादा शहरों में लाखों घर बनाए गए हैं। पिछले दशक में चीन में आए प्रॉपर्टी बूम में भी इस कंपनी ने बड़ी भूमिका निभाई है। लेकिन अब स्थिति यह है कि इस कंपनी के 75 लाख करोड़ रुपये चीन के कई हाउसिंग प्रोजेक्ट्स में फंसे हैं, ये वो प्रोजेक्ट हैं जो अभी तक पूरे नहीं हुए हैं।

Evergrande की समस्या क्या है?

Evergrande पर फिलहाल करीब 300 अरब का कर्ज है यानी 22 लाख 50 हजार करोड़ रुपये। जो वर्ष 2021 और 2022 के लिए भारत सरकार की अनुमानित 20 लाख करोड़ रुपये की आय से भी बहुत अधिक है। अगले महीने 18 अक्टूबर तक कंपनी को कर्ज चुकाना है। लेकिन जैसे-जैसे उनकी किस्मत गिरती जा रही है, वैसे-वैसे उनके निवेशक भी चिंता में आ गए हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने बड़ी संख्या में एवरग्रांड शेयरों को घटती दरों पर बेचना शुरू कर दिया। यह इतना बढ़ गया कि एवरग्रांड को अंततः शेयर बेचना बंद करना पड़ा। एवरग्रांड के दफ्तरों के बाहर निवेशकों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों के बीच इस बात की काफी चर्चा है कि एवरग्रांड दिवालिया होने की कगार पर है।

चीन की अर्थव्यवस्था के लिए क्या खतरा है?

रियल एस्टेट सेक्टर का चीन के सकल घरेलू उत्पाद में 25 प्रतिशत से अधिक का योगदान है। एवरग्रांड उसी रियल एस्टेट क्षेत्र में सबसे मजबूत और सबसे बड़ा शेयरधारक है। इसलिए अगर एवरग्रांड दिवालिया हो जाता है, तो इसका सीधा असर चीन के रियल एस्टेट सेक्टर पर पड़ेगा और इसका अप्रत्यक्ष असर चीन की राष्ट्रीय आय पर भी पड़ेगा।

क्या है चीन सरकार की नीति

देश में 2 लाख लोगों को रोजगार देने वाली कंपनी वित्तीय संकट का सामना कर रही है, लेकिन चीनी सरकार अभी तक मैदान में कदम रखने के लिए तैयार नहीं है। आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर चीनी सरकार हस्तक्षेप भी करती है, तो वह केवल एक आर्थिक तबाही को टालने में सक्षम होगी, लेकिन क्रेडिट सिस्टम पर एवरग्रांड के प्रभाव का अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।

भारत में स्टील बनाने वाली कंपनियां अपना 90 फीसदी माल चीन को बेचती हैं, जबकि मेटल और आयरन बनाने वाली कंपनियां अपना 90 फीसदी माल चीन को बेचती हैं और एवरग्रांड इसमें भी सबसे बड़े खरीदारों में से एक है। जो इनका उपयोग घरों के निर्माण में करता है। अब अगर यह कंपनी डूबती है, तो चीन को भारत का निर्यात भी प्रभावित होगा। भारत के 25 लाख लोग इस स्टील और लोहे के उद्योग के लिए काम करते हैं, यानी एक चीनी कंपनी के डूबने से भारत के 25 लाख परिवार सीधे प्रभावित हो सकते हैं। इसके अलावा एवरग्रांड के डूबने से भारत में निवेश करने वाली चीनी कंपनियों पर भी असर पड़ेगा।

भारत में कई कंपनियां भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से एवरग्रांड से जुड़ी हुई हैं। इनमें मुख्य रूप से स्टील, केमिकल और मेटल सेक्टर की कंपनियां हैं। एवरग्रांड के दिवालिया होने की स्थिति में टाटा स्टील, सेल, जिंदल स्टील, वेदांत, अदानी एंटरप्राइजेज जैसी बड़ी कंपनियों को भी नुकसान होने की आशंका है।

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