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अनुच्छेद-370 को निरस्त करने की चुनौतीपूर्ण याचिकाओं पर होगी सुनवाई

साल 2019 के अगस्त महीने में आज़ाद भारत में एक ऐतिहासिक बदलाव हुआ, जिसके तहत जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत दिए गए विशेषाधिकार खत्म कर दिए गए। धारा 370 कश्मीरी पंडितों पर बढ़ रही हिंसा को कम  करने के लिए हटाया गया था। लेकिन इस धारा को निरस्त किये जाने के बाद से ही इस धारा को हटाए जाने का विरोध किया जा रहा है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ 11 जुलाई को लगभग 15 से अधिक याचिकाओं पर सुनवाई करेंगे। गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने वाले संविधान संशोधन को चुनौती का मामला साल 2019 में संविधान पीठ को सौंपा गया था लेकिन अब तक इसपर कोई सुनवाई नहीं हुई है। आने वाली 11 जुलाई को चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ मामले पर विस्तृत सुनवाई की तारीख और उसकी समय सीमा तय कर सकती है।
दरअसल, सरकार ने 5 अगस्त को ऐतिहासिक फैसला लेते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के आर्टिकल 370 के ज्यादातर प्रावधानों को निरस्त कर दिया है।  यही नहीं बल्कि सरकार ने जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग करते हुए दो केंद्रशासित प्रदेश में बांट दिया है। इस फैसले के बाद से ही कश्मीर में तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए गए।

अनुच्छेद 370 है क्या

 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक ऐसा अनुच्छेद था जो जम्मू और कश्मीर को स्वायत्तता प्रदान करता था। यह जम्मू और कश्मीर के संबंध में संसद की विधायी शक्तियों को प्रतिबंधित करता है।  साथ ही ऐसा प्रावधान किया गया कि इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेस (आईओए) में शामिल विषयों पर केंद्रीय कानून का विस्तार करने के लिये राज्य सरकार के साथ परामर्श की आवश्यकता होगी। जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा को, इसकी स्थापना के बाद, भारतीय संविधान के उन लेखों की सिफारिश करने का अधिकार दिया गया था जिन्हें राज्य में लागू किया जाना चाहिए या अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से निरस्त करना चाहिए। बाद में जम्मू-कश्मीर संविधान सभा ने राज्य के संविधान का निर्माण किया और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की सिफारिश किए बिना खुद को भंग कर दिया, इस लेख को भारतीय संविधान की एक स्थायी विशेषता माना गया।
इस अनुच्छेद के तहत  कश्मीर  को कई विशेष अधिकार प्राप्त थे जैसे – संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से सम्बन्धित क़ानून को लागू करवाने के लिये केन्द्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए। इसी विशेष दर्जे के कारण जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती तो राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं था। 1976 का शहरी भूमि क़ानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था।  जिसके अनुसार भारतीय नागरिक को विशेष अधिकार प्राप्त राज्यों के अलावा भारत में कहीं भी भूमि खरीदने का अधिकार है। यानी भारत के दूसरे राज्यों के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं ख़रीद सकते थे आदि। लेकिन अनुच्छेद 370  हटाए जाने के बाद से जम्मू कश्मीर के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं बचा है।

 

अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का कारण

 

आज़ादी के बाद जब जम्मू कश्मीर को यह विशेषाधिकार दिए जा रहे थे तभी से इसका विरोध शुरू हो गया था। संविधान निर्माता और भारत के पहले कानून मंत्री भीमराव आम्बेडकर अनुच्‍छेद 370 के पक्ष में नहीं थे। उन्‍होंने इसका प्रारूप तैयार करने से इंकार कर दिया था। जिसके बाद नेहरू के निर्देश पर एन. गोपालस्वामी आयंगर ने मसौदा तैयार किया था। भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने शुरू से ही अनुच्छेद 370 का विरोध किया। उनका कहना था की इस तरह भारत छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट रहा है। मुखर्जी ने इस कानून के खिलाफ भूख हड़ताल की और जब इसके खिलाफ आन्दोलन करने के लिए वह जम्मू-कश्मीर गए तो उन्हें वहां घुसने नहीं दिया गया। वह गिरफ्तार कर लिए गए थे। 23 जून 1953 को हिरासत के दौरान ही उनकी रहस्यमय ढंग से हत्या हो गई। प्रकाशवीर शास्त्री ने अनुच्छेद 370 को हटाने का एक प्रस्ताव 11 सितम्बर, 1964 को संसद में पेश किया था। इस विधेयक पर भारत के गृह मंत्री गुलजारी लाल नंदा ने 4 दिसम्बर, 1964 को जवाब दिया। सरकार की तरफ से आधिकारिक बयान में उन्होंने एकतरफा रुख अपनाया। जब अन्य सदस्यों ने इसका विरोध किया तो नन्दा ने कहा, “यह मेरा सोचना है, अन्यों को इस पर वाद-विवाद नहीं करना चाहिए।” इस तरह का एक अलोकतांत्रिक तरीका अपनाया गया। नंदा पूरी चर्चा में अनुच्छेद 370 के विषय को टालते रहे। वे बस इतना ही कह पाए कि विधेयक में कुछ कानूनी कमियां हैं। जबकि इसमें सरकार की कमजोरी साफ़ दिखाई देती हैं। इसके बाद साल 2019 में सरकार इस कानून को निरस्त करने में कामयाब हो पाई।
इस अनुच्छेद को निरस्त किया जाना जरुरी इसलिए भी था क्यूंकि इसके कारण जम्मू -कश्मीर में लगतार हिंसा के मामले बढ़ते जा रहे थे। कश्मीरी पंडितों का अपने ही घरों में रहना मुश्किल हो गया था। साल 2019 में इसे हटाए जाने के बाद से हिंसा के इन मामलों में कमी देखने को मिली है। जब से देश की सरकार द्वारा लागू कानूनों को बिना राज्य सरकार से बात किये जम्मू – कश्मीर में भी अनिवार्य रूप से लागू किया जाने लगा है।

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