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गुजरात बचाने की चुनौती

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य गुजरात बीजेपी का सबसे मजबूत किला माना जाता है। ऐसे में चुनाव आयोग ने जैसे ही हिमाचल प्रदेश के चुनाव का एलान किया उसके कुछ घंटे बाद ही प्रधानमंत्री आवास पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक बड़ी बैठक हुई। गौर करने वाली बात यह है कि इस बैठक में हिमाचल प्रदेश नहीं, बल्कि गुजरात बीजेपी के बड़े नेता मौजूद रहे। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस बार भाजपा को अपने अभेद किले को बचाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है

अगले महीने होने वाले दो राज्यों हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश के चुनावों का एलान कर दिया है। जल्द ही चुनाव आयोग गुजरात चुनाव का भी एलान करेगा। लेकिन चुनाव के लिए गुजरात का सियासी अखाड़ा पहले ही पूरी तरह तैयार हो चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य गुजरात बीजेपी का सबसे मजबूत किला माना जाता है। ऐसे में चुनाव आयोग ने जैसे ही हिमाचल प्रदेश के चुनाव का एलान किया उसके कुछ घंटे बाद ही प्रधानमंत्री आवास पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक बड़ी बैठक हुई। गौर करने वाली बात यह है कि इस बैठक में केवल हिमाचल प्रदेश नहीं, बल्कि गुजरात बीजेपी के भी बड़े नेता मौजूद रहे।

जानकारी के मुताबिक इस अहम बैठक में प्रधानमंत्री मोदी के अलावा गृहमंत्री अमित शाह, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और गुजरात प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष सीआर पाटिल भी मौजूद थे। सूत्रों के मुताबिक आनन-फानन में बुलाई गई यह बैठक गुजरात चुनाव से जुड़ी हुई थी। इस बैठक में गुजरात के सिंहासन को बचाने के लिए रणनीति तैयार की गई है। माना जा रहा है कि भाजपा इस बार भी गुजरात चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को सामने रखकर ही लड़ेगी। वहीं गृहमंत्री अमित शाह, जेपी नड्डा के साथ मिलकर पूरी रूपरेखा तैयार करने में जुटे हैं। खबर है कि 5 घंटे की मैराथन बैठक में गुजरात की रणनीति तय कर ली गई है। इसमें कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान दिया जा रहा है। गुजरात चुनाव को लेकर संभावना जताई जा रही है कि दीपावली के बाद चुनाव आयोग इसकी घोषणा कर सकता है। ऐसे में बचे हुए दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह प्रदेश को कई बड़ी सौगातें दे सकते हैं।

दरअसल गुजरात में पिछले दिनों कई सरकारी कर्मचारी और किसान संगठन अपने मुद्दों को लेकर सरकार से नाराज चल रहे हैं। हाल ही में विरोध प्रदर्शन करने वालों में शिक्षक, क्लास 4 के सरकारी कर्मचारी, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, किसान, वन-रक्षक और अन्य संगठन शामिल थे। ये लोग ग्रेड पे बढ़ाने और पुरानी पेंशन योजना को लागू करने सहित अन्य मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। इनमें से कुछ को शांत करने में भूपेंद्र पटेल सरकार कामयाब रही है, लेकिन कुछ संगठनों में नाराजगी अभी भी देखी जा रही है। यही वजह है इसके जल्द निपटारे के लिए प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री को निर्देश दिए हैं।

गौरतलब है कि गुजरात विधानसभा चुनाव इस बार त्रिकोणीय होने की संभावना जताई जा रही है। भाजपा-कांग्रेस के अलावा इस बार आम आदमी पार्टी भी पूरे जोर-शोर से गुजरात में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में लगी हुई है। अरविंद केजरीवाल पानी, बिजली फ्री देने के साथ-साथ कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाल करने के लोकलुभावन वायदे भी कर रहे हैं। ऐसे में गुजरात की जनता इन वायदों के झांसे में न आए इसके लिए भाजपा ने केंद्रीय और राज्य स्तर के नेताओं को जनता के बीच जाकर सरकार के विकास कार्यों को गिनाने का जिम्मा सौंपा है। वहीं कांग्रेस की खामोशी भी भाजपा के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रैली के दौरान अपने कार्यकर्ताओं को कांग्रेस के खामोश प्रचार से सतर्क रहने की सलाह भी दी थी। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस गांव-गांव जाकर बैठक कर रही है। वे खबरों में नहीं दिख रहे और भाषण नहीं कर रहे इससे भ्रमित न हों। इससे निपटने के लिए भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को मतदाताओं से संपर्क करने और घर-घर जाकर प्रचार करने की बात कही है। पार्टी सूत्रों की मानें तो जल्द ही अमित शाह इसको लेकर गुजरात के बड़े नेताओं के साथ एक बैठक भी करने वाले हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राज्य की 40-50 सीटें ऐसी हैं जहां पार्टी खुद के सर्वे में कमजोर नजर आ रही है। इन सीटों को भी अपने पाले में लाने के लिए रणनीति तैयार की जा रही है। यहां पर पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की ज्यादा रैलियां करवाने की तैयारी कर रही है। वहीं पार्टी आदिवासी सीटों पर भी अपनी पकड़ मजबूत करने में लगी है। प्रदेश में आदिवासियों के लिए 27 सीटें रिजर्व हैं। इनमें साल 2017 में पार्टी सिर्फ 9 सीटें जीत पाई थी। दो सीटें भारतीय ट्राइबल पार्टी को मिली थी, बाकी की सभी सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी। जानकर मानते हैं कि आम आदमी पार्टी जिस तरह पंजाब में जबरदस्त जीत से उत्साहित अब पूरी ताकत से गुजरात के सियासी अखाड़े में कूद चुकी है उससे स्पष्ट है कि बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुकाबले को ‘आप’ न सिर्फ त्रिकोणीय मुकाबला बना रही बल्कि पंजाब में हुई अपनी बम्पर जीत को गुजरात में भी दोहराने का दम भर रही है।

गुजरात में ‘आप’ की रणनीति

आम आदमी पार्टी इस समय गुजरात चुनाव में उसी रणनीति पर काम कर रही है, जिसके दम पर पहले दिल्ली और फिर पंजाब में उसने सरकार बनाई। ‘आप’ के चार बड़े स्तंभ हैं अच्छी शिक्षा, अच्छा स्वास्थ्य, मुफ्त बिजली और युवाओं को रोजगार। गुजरात चुनाव में ‘आप’ ने इन्हीं पहलुओं को अपनी ‘गारंटी’ बताया है जो सरकार बनते ही देने की बात कर रही है, यहां सबसे बड़ी घोषणा बिजली वाली है क्योंकि इसी के दम पर पंजाब की जनता ने आम आदमी पार्टी को प्रचंड जनादेश दिया था। वहीं गुजरात में युवाओं को साधने के लिए केजरीवाल ने रोजगार को लेकर बड़ा वायदा किया है। उनकी तरफ से जोर देकर कहा गया है कि सरकार बनते ही वे 10 लाख सरकारी नौकरी देंगे, ऐसी योजना तैयार करेंगे जिससे सभी बेरोजगारों को रोजगार मिल सके। जब तक रोजगार नहीं मिल जाता, बेरोजगारों को 3 हजार रुपए का मासिक भत्ता मिलेगा। आम आदमी पार्टी के ये वे वायदे हैं, जो जाति-धर्म से ऊपर उठकर सीधे-सीधे गरीब, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग को साधने का काम करते हैं।

‘आप’ की असल परीक्षा

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि आम आदमी पार्टी की असल परीक्षा गुजरात विधानसभा चुनाव में होगी। ‘आप’ ने अभी तक जिन दो राज्यों में सत्ता हासिल की है, वे दोनों ही राज्य कांग्रेस से छीने हुए हैं। गुजरात के सियासी हालात दिल्ली और पंजाब से काफी अलग हैं। नरेंद्र मोदी के करिश्मे और बीजेपी के कुशल नेतृत्व की वजह से कांग्रेस की दाल 27 सालों से यहां नहीं गल पा रही है। ऐसे में आम आदमी पार्टी गुजरात चुनाव में किस्मत आजमाने उतरी है और केजरीवाल ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं।

इससे पहले 2020 में पार्टी के प्रदेश संगठन का पुनर्गठन हुआ। 2021 में ‘आप’ को पहली बार सफलता सूरत नगर निगम चुनाव में हासिल हुई। गुजरात नगर निकाय चुनाव में आप आदमी पार्टी ने सूरत नगर निगम की 120 में से 27 सीटें जीती थीं और कांग्रेस को पछाड़कर वह मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। नगर निकाय चुनाव के परिणाम से गुजरात में आम आदमी पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ गया है। लेकिन बीजेपी की तुलना में आम आदमी पार्टी के पास राज्य में न तो मजबूत संगठन है और न ही जातीय आधार। हालांकि ‘आप’ ने भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के साथ गठबंधन कर रखा है और वह बिजली-पानी के वादों के सहारे बीजेपी को मात देने की रणनीति पर काम कर रही है। अब देखना यह है कि इसमें वे कितना सफल हो पाते हैं यह तो चुनाव नतीजों से ही तय होगा।

भाजपा का सबसे मजबूत गढ़ है गुजरात

लगातार पिछले 27 सालों से गुजरात की सत्ता पर बीजेपी काबिज है। पहली बार 1995 में केशुभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में बीजेपी सत्ता में आई। उसके बाद अगर 17 महीने को छोड़ दिया जाए तो अब तक गुजरात में बीजेपी अपना परचम लहरा रही है। अक्टूबर 1996 में बीजेपी के शंकर सिंह वाघेला ने बगावत कर कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई थी। वाघेला द्वारा बगावत के बाद राष्ट्रीय जनता पार्टी नाम से एक अलग पार्टी बनाई गई। अक्टूबर 1997 में वाघेला ने पद छोड़ा तो राष्ट्रीय जनता पार्टी के ही दिलीप पारिख मुख्यमंत्री बने जो मार्च 1998 तक पद पर बने रहे। 1995 के बाद यही 17 महीने का अपवाद है जब गुजरात में बीजेपी की सरकार नहीं थी। बीजेपी के लिए गुजरात कितना अहम है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद चुनावी मोर्चा संभाल लिया है। वह लगातार गुजरात के दौरे कर रहे हैं।

कांग्रेस के लिए आसान नहीं राह

पिछली बार की नैतिक जीत को असली जीत में बदलने का कांग्रेस के पास मौका जरूर है लेकिन मौजूदा समय में पार्टी के हालात ऐसे हैं कि उसकी राह आसान नहीं दिख रही है। पिछले चुनाव में राहुल गांधी महीनों पहले से गुजरात चुनाव के लिए तैयार थे। लेकिन इस वक्त वह कन्याकुमारी से कश्मीर तक साढ़े 3 हजार किलोमीटर की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में व्यस्त हैं और तो और इस यात्रा के रूट में चुनावी राज्य गुजरात शामिल नहीं है। पिछले चुनाव में कांग्रेस की रणनीतियों को दिशा देने वाले चुनाव प्रभारी अशोक गहलोत अपने ही राज्य राजस्थान में अपनी कुर्सी को बचाने में जुटे हुए हैं। वहीं चर्चित पाटीदार आंदोलन के प्रमुख चेहरे हार्दिक पटेल ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया है। गुजरात चुनाव से पहले कांग्रेस के कई नेताओं का पार्टी छोड़ने और बीजेपी में शामिल होने का सिलसिला जारी है।

गुजरात में ‘आप’ से सीधी टक्कर

गुजरात में अब तक बीजेपी की सीधी टक्कर कांग्रेस से हुआ करती थी। लेकिन इस बार मुकाबला आम आदमी पार्टी से माना जा रहा है। आम आदमी पार्टी पिछले दो-ढाई सालों से गुजरात में लगातार अपने संगठन को मजबूत कर रही है और इस बात से कहीं न कहीं बीजेपी के अंदर भी खलबली मची है। इसलिए इस गुजरात गौरव यात्रा का महत्व और भी बढ़ जाता है। और यही वजह है कि बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।

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