हाल में छह राज्यों की राज्यसभा की 13 सीटों पर हुए राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव में भाजपा को पंजाब में एक सीट का नुकसान हुआ लेकिन तीन दशक बाद केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी 1990 के बाद राज्यसभा में सौ का आंकड़ा छूने वाली पहली पार्टी बन गई है। अब इस आंकड़े पर टिके रहने की बड़ी चुनौती भाजपा के सामने है।
दरअसल अगले दो-तीन महीनों के भीतर राज्यसभा की 57 सीटों चुनाव होने हैं। इन चुनावों में भाजपा को जितना नुकसान होना है अगर उसकी भरपाई नहीं होती है तो उसके सदस्यों की संख्या फिर सौ के नीचे पहुंच जाएगी। इसलिए भाजपा को दूसरी पार्टियों के कोटे की कुछ सीटें जीतनी हैं या दूसरी पाटियों में तोड़-फोड़ करके सांसदों को अपने साथ लाना है, जैसा उसने पहले आंध्र प्रदेश, बिहार और असम में किया था। वैसा ही करने की चुनौती है।
मौजूदा समय में राज्यसभा में भाजपा के पास 100 सांसद हैं। अगले दो-तीन महीने में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं उसमें ज्यादातर राज्यों में भाजपा को या तो नुकसान होगा या यथास्थिति रहेगी। एक उत्तर प्रदेश को छोड़ कर तस्वीर बहुत अच्छी नहीं है। उत्तर प्रदेश में 11 सीटें खाली हो रही हैं, जिनमें से आठ सीटें भाजपा को मिलेंगी। इन आठ सीटों में भाजपा को वास्तविक फायदा सिर्फ तीन सीटों का होगा क्योंकि रिटायर हो रहे 11 सांसदों में से पांच उसके अपने हैं तो , उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मिली भारी जीत के बावजूद भाजपा को सिर्फ तीन सीट का फायदा हो रहा है।
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो भाजपा को जितना फायदा उत्तर प्रदेश में हो रहा है उतना नुकसान राजस्थान में हो जाएगा। राजस्थान में चार सीटें खाली हो रही हैं और चारों भाजपा की हैं। उसमें से भाजपा को इस बार सिर्फ एक सीट मिलेगी और बाकी तीन सीटें कांग्रेस के खाते में जाएंगी। इसके बाद भाजपा को एक बड़ा नुकसान आंध्र प्रदेश में होगा, जहां उसने टीडीपी के सांसदों को तोड़ कर अपनी पार्टी में मिला लिया था। इस बार वहां से भाजपा को एक भी सीट नहीं मिलेगी। आंध्र प्रदेश में भाजपा को तीन सीट का नुकसान होगा। सुरेश प्रभु, टीजी वेंकटेश और वाईएस चौधरी तीनों रिटायर हो जाएंगे। भाजपा को एक सीट का नुकसान झारखंड में होगा और एक सीट का नुकसान छत्तीसगढ़ में भी होगा।
ऐसी स्थिति में राजनीतिक विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि इन पांच सीटों की भरपाई भाजपा कहां से करेगी? बाकी जिन राज्यों में राज्यसभा के चुनाव होने हैं वहां उत्तराखण्ड को छोड़ कर बाकी सब जगह यथास्थिति रहेगी। उत्तराखण्ड में भाजपा को एक सीट का फायदा होगा। बिहार में पांच सीटों पर चुनाव होने वाले हैं, जिनमें से दो भाजपा को मिलेगी और दोनों उसी की सीट होगी। कर्नाटक में तीन में से दो सीटें भाजपा को मिलेंगी और दोनों उसी की सीट है। इसी तरह महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी भाजपा के जितने सदस्य रिटायर होंगे उतने की ही वापसी होगी। मनोनीत सांसदों में से सात रिटायर हो रहे हैं, जिनमें से पांच भाजपा के सदस्य हैं और बाकी दो नरेंद्र जाधव व मैरीकॉम ने पार्टी की सदस्यता नहीं ली थी। ऐसे में संभव है कि इस बार सभी सात ऐसे लोग मनोनीत हों, जो जीतने के बाद अपने को भाजपा का सदस्य घोषित करें। अगर ऐसा होता है तो तब भी भाजपा की संख्या सौ से एक कम रह सकती है।
ताजा चुनाव में बीजेपी को मिलीं तीन सीटें
अभी हुए चार सीटों के चुनाव में बीजेपी ने त्रिपुरा सीट वहां की विधानसभा में अपनी ताकत की बदौलत जीत ली। नागालैंड में बीजेपी ने एक महिला कैंडिडेट एस. फांग्नोन कोनयक को उतारा था जो निर्विरोध जीत गईं। वही नागालैंड से राज्यसभा पहुंचने वाली पहली महिला हैं। असम की दो सीटों पर हुए चुनाव में वहां के सात कांग्रेस विधायकों ने भी बीजेपी-यूपीपीएल गठबंधन का साथ दिया। इसका श्रेय मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व सरमा को जाता है। गठबंधन को दोनों सीटें जीतने के लिए चार और वोटों की जरूरत थी।
जुलाई तक और कमजोर हो जाएगी कांग्रेस
कांग्रेस के मौजूदा सांसद रिपुन बोरा से उनकी सीट छिन गई। बीजेपी कैंडिडेट पबित्र मार्गेरिटा और गठबंधन दल यूपीपीएल के रवांग्रा नार्जरी चुने गए। इस तरह, राज्यसभा में बीजेपी के तीन और सदस्य बढ़ गए और कुल संख्या 100 हो गई। वहीं कांग्रेस पार्टी की ताकत 33 से घटकर 32 हो गई। जुलाई आते-आते कांग्रेस के 13 और राज्यसभा सांसद रिटायर हो जाएंगे और इनमें से ज्यादातर सीटों पर दुबारा उसके जीतने के चांस ना के बराबर हैं। तब बीजेपी की एकतरफा जीत लगभग तय है।
कैसे–कैसे बढ़ी बीजेपी
राज्यसभा में कांग्रेस के बाद सबसे बड़ा विपक्षी दल तृणमूल कांग्रेस है जिसके 13 सांसद हैं। उसके बाद डीएमके 10 सांसदों के साथ तीसरे जबकि बीजू जनता दल (बीजेडी) नौ सीटों के साथ तीसरे नंबर पर है। सीपीआई-एम, टीआरएस, वाईएसआरसीपी के छह-छह सदस्य हैं। 1952 में कांग्रेस के 146 जबकि बीजेपी के मात्र एक राज्यसभा सांसद थे। फिर 1962-64 के दौरान कांग्रेस के 162 जबकि बीजेपी के 4, 1972-74 में कांग्रेस के 128 जबकि बीजेपी के 14, 1982-84 के दौरान कांग्रेस के 152 जबकि बीजेपी के 8, 1988-90 में कांग्रेस 108 जबकि बीजेपी के 17, 1990-92 में कांग्रेस के 99 और बीजेपी के 45, 2012-13 में कांग्रेस को 72 जबकि बीजेपी के 47 और अब 2022 में कांग्रेस के 29 जबकि बीजेपी के 100 सासंद हो गए हैं।
राजीव की कमाई, सोनिया ने गंवाई
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार के दौरान वर्ष 1988 में आखिरी बार राज्यसभा में कांग्रेस के 100 से ज्यादा सांसद थे। तब संसद में बीजेपी की ताकत सिर्फ दो लोकसभा सांसदों की थी, लेकिन अभी उसके 303 लोकसभा सदस्य हैं। बहरहाल, 245 सदस्यों वाली राज्यसभा में 123 की मेजॉरिटी है और बीजेपी नेतृत्व का एनडीए अब सभी साधारण विधेयकों को बिना कठिनाई के पास करवाने में सक्षम हो गया है। बीजेपी के गठबंधन साथी जेडीयू के राज्यसभा में चार सांसद हैं। वहीं, पांच सांसदों वाली एएआईडीएमके और नौ सदस्यों वाली बीजेडी भी मुद्दों पर आधारित समर्थन देती रही है।
सपा–आप की भी बढ़ी ताकत
जुलाई के बाद राज्यसभा और बदल जाएगी। समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियां भी राज्यसभा में ताकतवर हो रही हैं। आप को पंजाब से पांच राज्यसभा सीटें मिल चुकी हैं जिससे सदन में उसके सांसदों की संख्या बढ़कर आठ हो गई है। कुल मिलाकर राज्यसभा की स्थिति यह है कि बीजेपी से मुकाबले के लिए समूचे विपक्ष को एकजुट होना पड़ेगा। उनके पास नंबर नहीं हैं, इसलिए अब धारदार बहस के सिवा अपनी बात मनवाने का कोई और तरीका विपक्ष के पास बचा नहीं है।