एक ओर जहां पूरा देश स्वतंत्रता के 75 वर्ष ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के रूप में मना रहा है। वहीं दूसरी तरफ आदिवासी उपेक्षित, शोषित और पीड़ित नजर आते हैं। राजनीतिक पार्टियां और नेता आदिवासियों के उत्थान की बात करते हैं, लेकिन उस पर अमल नहीं करते। आदिवासी किसी राज्य या क्षेत्र विशेष में नहीं हैं, बल्कि पूरे देश में फैले हैं। जल, जंगल और जमीन को लेकर इनका शोषण निरंतर चला आ रहा है। इन समुदायों के लोग अभी भी दोयम दर्जे के नागरिक जैसा जीवन-यापन कर रहे हैं। ऐसे में मुंबई के वारली आदिवासी समुदाय के लोगों का अस्तित्व न केवल मुंबई शहर बल्कि दुनिया के मानचित्र पर भी मौजूद नहीं था। लेकिन आज वारली समुदाय के लोगों को पूरी दुनिया के तमाम अखबारों और मैगजीनों में तस्वीरें छपने लगी हैं और इसमें सबसे बड़ा योगदान कैसेंड्रा नाजरेथ का है जो इस समुदाय की मसीहा बन गई हैं। पेश हैं ‘दि संडे पोस्ट’ संवाददाता आयशा से हुई कैसेंड्रा की बातचीत के मुख्य अंशः
कैसेंड्रा कहती हैं कि वे आज से तकरीबन आठ साल पहले पेड़ों को बचाने के लिए आरे जंगल में गई थीं। वहां उन्होंने वारली आदिवासियों के कई गांवों की खोज कर आदिवासी महिलाओं और बच्चों की मदद करने का फैसला किया और पिछले छह सालों से अपनी टीम के साथ आरे जंगल के 13 गांवों में रह रहे करीब 2 हजार 500 परिवारों और मढ़ आईलैंड के चार गांवो के 1 हजार 200 परिवारों की मदद कर रही हैं।
जंगल के बीच थोड़ी-सी जमीन और बिल्कुल कम साधनों के साथ रहने वाले ये परिवार सांस्कृतिक रूप से काफी धनी हैं। इसलिए उनकी कला और संस्कृति को ही उनकी ताकत बना अपनी संस्था की मदद से #T Ribal Lunch नाम का एक कार्यक्रम शुरू किया। इसके जरिए यहां की महिलाओं के पकाए पारंपरिक खाने का स्वाद को पहचान दिलाई। इसके अलावा कई तरह के कार्यक्रमों की शुरुआत भी की। जिनमें 45 बायो- टॉयलेट, 11 घरेलू आटा चक्की और सिलाई मशीन जैसी कई सुविधाएं मुहैया कराई ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें। समय-समय पर मेडिकल कैंप से लेकर साक्षरता और कंप्यूटर ज्ञान के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम तक आयोजित कराती हूं। हमारी टीम ने यहां की महिलाओं और बच्चियों के जीवन स्तर में बड़े पैमाने पर बदलाव लाने के लिए #Surekha Menstrual Cup Project के माध्यम से 2 हजार 500 से अधिक परिवारों के लिए मेंस्ट्रुअल हाइजीन यानी पीरियड्स के दिनों में साफ-सफाई की व्यवस्था भी की है। वहीं इन महिलाओं को खाना पकाने के लिए धुआं रहित गैस स्टोव भी मुहैया कराया। इतना सब कुछ करने के बाद भी कैसेंड्रा रुकी नहीं हैं। उनका मानना है कि जब तक वारली आदिवासी महिलाएं अपने प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं बन जातीं तब तक यह समाज विकसित नहीं कहलाएगा।
मैं वर्ष 2015 में समाजसेवा से जुड़ी। महाराष्ट्र के ‘आरे के जंगलों’ में पेड़ बचाओ अभियान में अपनी टीम के साथ पेड़ लगाने पहुंची थी। जंगल में पहुंचने के बाद वहां बहुत-से लोग मिले। ये लोग वारली समुदाय’ के लोग थे। जो भारतीय संस्कृति से काफी धनी लोग थे लेकिन रोज़-मर्रा के जीवन की सुविधाएं इनको अभी तक नहीं मिल पाई थी। इनकी हालत देख यकीन ही नहीं हुआ कि देश की प्रगति में जिस शहर की मिसाल दी जाती है वहां के आदिवासी आज के इस आधुनिक युग में मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं। तब मैंने यहां के आदिवासियों को सक्षम और आत्मनिर्भर बनाने का फैसला किया और यहां के आदिवासियों के लिए अकेले ही काम करने लगी, बढ़ते संकल्प और दृढ़ निश्चय के साथ कई अभियान चलाये। जिनमें ट्राइबल लंच- ट्राइबल तड़का सहित सभी अभियानों ने वारली समुदाय को खासा प्रभावित किया है।
ट्राइबल लंच-ट्राइबल तड़का
इस अभियान द्वारा महिलाओं के पास मौजूद खाना बनाने की कला का सदुपयोग करने की शुरुआत की। जिससे यहां की महिलाओं को न केवल कारोबार मिला बल्कि वे आत्मनिर्भर भी बनीं और उन्हें आय अर्जित करने का भी रास्ता मिल पाया। इस ट्राइबल लंच का मकसद न केवल आय अर्जित करना था बल्कि इसके जरिए लोगों को आरे जंगलां के आदिवासियों की तरफ आकर्षित करना था और मुंबई के लोग भरपूर खाने का लुत्फ उठाने के लिए यहां आने लगे, इसका और विस्तार करने के लिए हमने सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल किया जिससे उन्हें इसका काफी फायदा भी हुआ। धीरे-धीरे यहां की औरतों ने अपने पकवानों को बढ़ाया और बेचना शुरू किया है। जैसे कि सूखे पापड़, अचार, लड्डू, थेपला और कई तरह के पकवान बनाने शुरू किए। यहां तक की आज ट्राइबल लंच खुद के बनाए खाने को जंगलों से निकल कर अलग-अलग राज्यों में अपना स्टॉल लगाते हैं। वारली की महिलाएं आज के समय में इतनी सक्षम हो चुकी हैं कि वे अपने घरों को अपने दम पर चला रही हैं।
बत्ती जलाओ अभियान
यहां बिजली की भी एक बहुत बड़ी समस्या थी। रात के समय में भी बिजली की कोई भी सुविधा मौजूद नहीं थी। जबकि आरे जंगल कैंपस के वीमेन हॉस्टल जाने वाले 25 फुटा रोड के बराबर में ही मौजूद है। कैंपस में तो बिजली की सुविधा दी गई थी लेकिन जंगल को बिजली से वंचित रखा गया था। वर्ष 1972 में सरकार ने वारली समुदाय के लोगों की जमीन तो ले ली थी लेकिन इनकी जरूरतों को नजरअंदाज कर दिया गया। यह बात अविश्वसनीय तो लगती है कि आज के समय में भी ऐसी जगह लोग रहते हैं जहां बिजली ही नहीं है लेकिन यह हमारे देश का वह सत्य है जिसे हमेशा आरे जंगलों के लोगों की तरह छुपा दिया जाता है। बिजली जैसे बड़े संकल्प को पूरा करने के लिए मैंने 65 हजार 432 वारली आदिवासियों के हस्ताक्षर के साथ बिजली की समस्या को सुलझाने के लिए 14 अगस्त 2017 को याचिका डाली, जिसके 9 महीने बाद 3 जून 2018 को एनओसी मिली और 30 जून 2018 को आरे जंगल में बिजली की सुविधा दी गई। वारली समुदाय के अंधकारमय जीवन में रोशनी लेकर आई।
बायो टॉयलेट
वारली के लोगों के पास टॉयलेट का न होना बेहद गंभीर विषय था। यहां की महिलाएं एवं लड़कियां रात को जंगल में टॉयलेट के लिए जाया करती थीं जिससे उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। मनुष्य जीवन के लिए स्वच्छता एक बड़ा विषय है जिसको देखते हुए गांव में 45 बायो टॉयलेट लगवाए जिससे लोग टॉयलेट का इस्तेमाल करने लगे और गंदगी के कारण होने वाली बीमारियों से उनका बचाव हुआ।
आटा चक्की और सिलाई मशीन का इस्तेमाल आटा और दाल पीसने वाली चक्कियों के लिए यहां के लोगों को तकरीबन 10 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तय करनी पड़ती थी। यह दूरी जंगल के बीच में थी इसलिए यहां के लोगों को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता था इसलिए यहां के घरों के आस-पास 11 घरेलू आटा चक्कियां लगवाई, आटा चक्की के साथ-साथ महिलाओं को और सक्षम बनाने के लिए सिलाई मशीन जैसी कई सुविधाएं मुहैया कराई, क्योंकि यहां की महिलाओं को सिलाई मशीन का इस्तेमाल करना नहीं आता था इसलिए न केवल मशीन लगवाई बल्कि उन्हें इसका सही इस्तेमाल भी करना सिखाया। जिससे आज यहां की महिलाएं कपड़े के थैले, मेजपोश, दरी, चादर आदि को बेच कर आय अर्जित कर रही हैं। इन कार्यों के साथ-साथ हमारी टीम समय-समय पर मेडिकल कैंप से लेकर साक्षरता और कंप्यूटर ज्ञान के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम भी आयोजित कराती हैं।
सुरेखा मेंस्ट्रुअल कप प्रोजेक्ट
महिलाओं में साक्षरता के साथ उनकी सुरक्षा और स्वच्छता के लिए यहां की महिलाओं और बच्चियों के जीवन स्तर में बड़े पैमाने पर बदलाव लाने के लिए #Surekha Menstrual Cup Project के माध्यम से 2 हजार 500 से अधिक परिवारों के लिए मेंस्ट्रुअल हाइजीन यानी पीरियड्स के दौरान महिलाओं की स्वच्छता की व्यवस्था भी की है। धुआं रहित गैस स्टोव भी मुहैया कराया।
कोरोना काल और समस्याएं
कोरोना काल के दौरान घरों में बंद हुई दुनिया की तरह वारली समुदाय के कारोबार पर भी पूर्ण विराम लग गया जिससे खाने की समस्या अधिक उत्पन्न होने लगी। उन तक खाना पहुंचाना बेहद कठिन हो गया था। क्योंकि हमारी टीम के पास किसी भी आर्गेनाईजेशन और सरकार की तरफ से कोई भी मदद मुहैया नहीं होती थी। इसलिए फंड की बहुत परेशानी होने लगी। ऐसे समय में जब खाना खरीदना और उन तक पहुंचाने में बहुत पैसों का खर्चा आने लगा तो मैंने अपने निजी कारोबार और अपने घर से पूरा करने की कोशिश की। हमें किसी भी संस्था से कभी मदद प्राप्त नहीं हो पाई। हमारे पास केवल हमारा निजी कारोबार और वारली के लोगों द्वारा कमाया गया पैसा ही हमारे कार्यों को पूरा किया। यह बेहद मुश्किल दौर था। शुरू में हमारे पास कुछ नहीं था जैसे-तैसे हमने यह अभियान चलाया लेकिन अब वारली समुदाय के अभियानों से बहुत लोग जुड़ चुके हैं जिससे अभी यह दिक्कत पूरी तरह से खत्म तो नहीं हुई, लेकिन कम जरूर हुई है।
सेव आरे अभियान
#Save Aarey अभियान आरे की जल, जंगल और जमीन को बचाने का प्रयास सक्षम रहा है। हमारी परियोजनाओं में उन्हें अपना आधार और पैन कार्ड प्राप्त करने की सुविधा देना शामिल है। प्रोजेक्ट रूट्स, जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए वर्तमान में चल रही परियोजना है। इनके पास महिलाओं और बच्चों के लिए एक सतत प्रोटीन परियोजना भी लाई गई है। जिसमें बच्चों और महिलाओं को पौष्टिक आहार मुहैया कराया जाता है। नाजरेथ फाउंडेशन ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक सचेत प्रयास किया है कि हमारा काम लोगों और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हो।
कैसेंड्रा और उनकी टीम
मेरे साथ तीन स्वयं सेवी भी इस लक्ष्य में मदद कर रहे हैं। जिनमें महेश बारिया, ब्लासिया पिंटो और रीटा न्यूनेस शामिल हैं। हम चार लोगों की टीम इन सभी अभियानों को चलाते हैं। हमने आरे में 12 से अधिक गांवों, संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के 11 गांवों और मधद्वीप के 6 गांवों में महिलाओं को बुनियादी सुविधाएं प्रदान कर उनके लिए आजीविका बनाने का काम किया है।
फाउंडेशन के प्रमुख कार्यक्रम ट्राइबल तड़का के माध्यम से हम गांवों में समुदायों के जीवन को बदलने में सक्षम हुए हैं। आज की महिलाएं जनजातीय तड़का दोपहर के भोजन या नाश्ते के कार्यक्रमों के साथ-साथ पिस्सू बाजार की मेजबानी करने में सक्षम हैं और आने वाले किसी भी व्यक्ति को गांव का अनुभव प्रदान करने में सक्षम हैं। इस कार्यक्रम में वारली कला और शिल्प कार्यशाला भी शामिल है जिसमें विलेज वाक और शानदार भोजन शामिल है। जनजातीय तड़का कार्यक्रम के अलावा, फाउंडेशन Change-org@battijalao याचिका के माध्यम से नौशचा पाड़ा के लिए बिजली के लिए सफलतापूर्वक अभियान चलाने में भी सक्षम रहा है।