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नेहा सिंह राठौर के खिलाफ जौनपुर में मुकदमा

बिहार में का बा’ फेम सिंगर नेहा सिंह राठौर के खिलाफ जौनपुर में की गई जौनपुर में मुकदमा दर्ज किया गया है। आरोप है कि नेहा के गाने चला ‘देखि आई जौनपुर के बीएड काॅलेज’ में बीएड करने वाली लड़कियों की छवि बिगाड़ने की कोशिश की गई है। नेहा के खिलाफ 12 जनवरी को एसीजेएम चतुर्थ की कोर्ट में केस दर्ज किया गया। गाना जारी होने के बाद वकील हिमांशु श्रीवास्तव और उपेंद्र विक्रम सिंह ने लीगल नोटिस जारी कर नेहा से लिखित मांफी के लिए कहा था। गायिका की तरफ से जवाब न मिलने पर बरसठी के पुरेसवा निवासी रवि प्रकाश पाल की तरफ से मुकदमा दायर किया गया है। कोर्ट ने सुनवाई के लिए 20 फरवरी की तारीख तय की है।

आरोप है कि गायिका द्वारा इस गाने में अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किया गया। इसे सोशल मीडिया पर प्रमोट किया गया। गाने की शैली एवं भाव-भंगिमा के साथ शब्दों को अभद्र कहा गया है। गाने में यहां से बीएड करने वाली महिलाओं के बारे में अपमानजनक शब्द कहे गए हैं। इससे महिलाओं की गरिमा गिरी है। वादकारियों को भी मानसिक कष्ट पहुंचा है। 17 दिसंबर 2020 को वादी व गवाह धनंजय तिवारी व प्रमोद यादव ने गाना सुना। उन्होंने कहा कि गाने में महिलाओं के बारे में नकारात्मक छवि समाज में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया। पब्लिसिटी स्टंट के लिए गाने में अनर्गल, बेबुनियाद, मिथ्या एवं आधारहीन शब्दांे का प्रयोग किया गया है। कानूनन दंडनीय अपराध की श्रेणी में आते हैं।

कोर्ट से एफआईआर दर्ज कराने की मांग की गई है। नेहा के गाने को लेकर विवाद का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले नेहा ने अपने गाने से इलाहाबाद विश्वविद्यालय की छात्र संस्कृति को निशाना बनाया था। इलाहाबाद के छात्रों को बम, कट्टा, झगड़ा करके कर्नल गंज से कटरा तक परेशान करने वाला बताया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने की वजह सिर्फ चुनाव लड़ना ही गायिका की ओर से बताया गया था। इलाहाबाद के छात्र-छात्राओं ने नेहा के इस गीत का काफी विरोध किया था। ट्वीटर और फेसबुक अकाउंट को रिपोर्ट भी की गई थी।  नेहा ने ट्वीटर पर सफाई दी थी कि आपको इतना भावुक होने की आवश्यकता नहीं है। क्यों बात-बात पर आहत हो जाते हैं? जिस इलाहाबाद विश्वविद्यालय की संस्कृति को अपमानित करने का आरोप आप मुझ पर लगा रहे हैं।

वो निश्चित रूप से महान हुआ करता था, विश्वविद्यालय को ‘आक्सफोर्ड आॅफ ईस्ट’ भी कहा जाता था। पर अब ऐसा है क्या? एक ऐतिहासिक बुलंद इमारत में डिग्री काॅलेज बनकर रह गया है इलाहाबाद विश्वविद्यालय। और इसके जिम्मेदार हैं कुछ ऐसे ‘समझदार’ लोग, जो बिना बात, बात-बात पर आहत होने का स्वांग करते हैं, और विश्वविद्यालय के मूल्यों को नष्ट करते हैं। नेहा ने कहा था कि मूल को भूलकर, हर शाखा के एक वृक्ष बनने की क्षमता की कांट-छांट करने के बाद अगर आप उम्मीद करते हैं कि ये प्यारा विश्वविद्यालय अपनी खोई हुई गरिमा वापस पा सकेगा। आप गलत सोच रहे हैं। जिस तरह से राजनीतिज्ञों की आलोचना को संविधान की आलोचना नहीं माना जा सकता। विश्वविद्यालय के मठाधीशों की आलोचना को विश्वविद्यालय की आलोचना नहीं समझा जाना चाहिए।

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