राष्ट्रपति पद के लिए होने वाले चुनाव के महज कुछ ही दिन बचे हैं। इस पद के लिए जहां देश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा के समर्थन वाली एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाया है वहीं विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा को विपक्ष का उम्मीदवार बनाया गया है।इसमें ममता बनर्जी की अहम भूमिका रही। लेकिन इस चुनाव में एनडीए का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है। क्योंकि एनडीए की समर्थन वाली प्रत्याशी आदिवासी समाज से हैं, आज तक के इतिहास में भारत के सर्वोच्च पद पर कोई आदिवासी नहीं बैठ सका है, ऐसे में अगर एनडीए की जीत होती है, तो द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन जाएंगी। जिसका सियासी फायदा भाजपा को आने वाले चुनावों में मिलेगा।
लेकिन अब इसी सियासी फायदे के लिए विपक्ष के भी इरादे बदलते हुए नजर आ रहे हैं । इस दौरान ममता बनर्जी ने द्रौपर्दी मुर्मू को लेकर उदार रुख़ अपनाते हुए कहा कि अगर वह एनडीए की उम्मीदवारी को लेकर पहले से जान रही होतीं तो स्थिति बिल्कुल अलग होती। अगर ‘हमें पता होता कि भाजपा आदिवासी महिला या अल्पसंख्यक समुदाय से किसी को उम्मीदवार बनाने वाले हैं तो हम इस पर विचार कर सकते थे। हमारे मन में आदिवासियों और महिलाओं को लेकर बहुत आदर है। लेकिन अब हमारे गठबंधन में 16-17 पार्टियां हैं और मैं एकतरफा अपने कदम पीछे नहीं खींच सकती हूं ।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति पद के लिए 18 जुलाई को मतदान होना है और 21 जुलाई को नतीजा आएगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को ख़त्म हो रहा है और संविधान के मुताबिक़ नए राष्ट्रपति का चुनाव उससे पहले पूरा हो जाना चाहिए।
ममता की मजबूरी
यशवंत सिन्हा को विपक्ष का उम्मीदवार बनाने में ममता बनर्जी की अहम भूमिका रही है। लेकिन अब ममता बनर्जी को डर सताने लगा है कि पश्चिम बंगाल में आदिवासियों की आबादी और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली आदिवासी इलाक़ों में बड़ी जीत से उन्हें अपने वोट बैंक का डॉ सताने लगा है ।दूसरी वजह है कि द्रौपदी मुर्मू महिला हैं और ममता ख़ुद कहती हैं कि वह महिलाओं को लेकर आग्रही हैं। कहा जा रहा है कि द्रौपदी मुर्मू को लेकर ममता बनर्जी की इस टिप्पणी के कारण उनकी पार्टी के विधायक और सांसद असमंजस में हैं। पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी और सुकांत मजूमदार ने ममता बनर्जी को चिट्ठी लिख द्रौपदी मुर्मू के लिए समर्थन मांगा है। हालांकि यह कोई पहली बार नहीं है जब ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव में अपना रुख़ बदला हो इससे पहले वर्ष 2012 में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने एपीजे अब्दुल कलाम के लिए एक और कार्यकाल की मांग की थी। लेकिन अब्दुल कलाम ने शर्त रख दी थी कि अगर सभी पार्टियाँ उनकी उम्मीदवारी के लिए सहमत होंगी तभी वह फिर से राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार बनेंगे। ऐसे में ममता बनर्जी ने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी को समर्थन कर दिया था।
इस बार लेकिनअभी तक स्पष्ट नहीं है कि ममता बनर्जी का द्रौपदी मुर्मू को लेकर उदार रुख़ आदिवासी वोट बैंक के कारण है या कोई और मुद्दा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल में आदिवासियों की आबादी छह फ़ीसदी थी। यह आबादी दक्षिण और उत्तर बंगाल में केंद्रित है। ममता बनर्जी ने ही राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम शुरू की थी। वह दिल्ली आई थीं इस दौरान 15 जून को 17 विपक्षी पार्टियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी। इसमें कांग्रेस भी शामिल हुई थी।
द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में एनडीए के अलावा भी कई विपक्षी पार्टियों का समर्थन बढ़ रहा है। महाराष्ट्र में शिव सेना के टूटने और बाग़ी खेमे के एकनाथ शिंदे का बीजेपी के साथ सरकार बनाने के बाद कई लोगों को लगता है कि ममता बनर्जी की राष्ट्रपति चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है। बीजेपी के समर्थन से एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने के बाद महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गई थी। राष्ट्रपति चुनाव में एक हफ़्ते से कम समय बचा है और यशवंत सिन्हा पश्चिम बंगाल में चुनावी कैंपेन के लिए नहीं गए हैं।