दिल्ली विधानसभा चुनाव के साथ ही उत्तर प्रदेश की मिल्कीपुर सीट पर उपचुनाव का भी ऐलान हो गया है। 5 फरवरी को वोटिंग होगी और 8 फरवरी को रिजल्ट आ जाएगा। इस सीट को जीतने के लिए भाजपा और सपा दोनों ही दलों ने पूरा जोर लगाया हुआ है। सपा ने सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को इस सीट से पहले ही प्रत्याशी घोषित कर रखा है। कांग्रेस अपना उम्मीदवार नहीं उतारेगी। कांग्रेस का कहना है कि वह समाजवादी पार्टी प्रत्याशी का समर्थन करेगी, वहीं बीजेपी ने चंद्रभान पासवान को प्रत्याशी बनाया है। इस उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ‘करो या मरो’ की स्थिति में है। 2022 में जीती इस सीट को पार्टी गंवाने के मूड में नहीं है। पार्टी का मानना है कि इस इकलौती सीट के नतीजे का असर 2027 के समीकरण पर पड़ेगा। इसलिए नेतृत्व ने कोर संगठन से लेकर संगठनों तक के प्रमुख चेहरों को मिल्कीपुर में जुटने को कहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यहां सारा दारोमदार जातीय गणित का है जो इस सियासी लड़ाई में गेमचेंजर साबित होगी। आंकड़ों की बात करें तो यहां कुल मतदाताओं की संख्या 3 लाख 58 हजार है। ऐसा माना जाता है कि इसमें सबसे अधिक अनुसूचित जाति और फिर दूसरे नंबर पर पिछड़े वर्ग के वोटर हैं। यहां अनुसूचित जाति वर्ग में पासी समाज और ओबीसी में यादव सबसे प्रभावी हैं।
ओबीसी और दलित वोटबैंक के साथ ही मुस्लिम भी प्रभावी भूमिका में हैं। समाजवादी पार्टी को इसी समीकरण का लाभ मिलता है और इस बार के चुनाव में भी पूरा फोकस इन्हीं समुदायों पर रहेगा। यहां करीब डेढ़ लाख दलित हैं जिनमें पासी बिरादरी के वोट ही करीब 55 हजार हैं। इसके अलावा 30 हजार मुस्लिम और 55 हजार यादवों की तादाद है। इसके साथ ही सवर्ण बिरादरी में ब्राह्माण समाज के 60 हजार मतदाता हैं। क्षत्रियों और वैश्य समुदाय की तादाद क्रमशः 25 हजार और 20 हजार है। अन्य जातियों में कोरी 20 हजार, चौरसिया 18 हजार हैं। साथ ही पाल और मौर्य बिरादरी भी अहम हैं। जहां तक समाजवादी पार्टी का सवाल है पिछले महीने हुए 9 विधानसभा सीटों के उपचुनाव में सपा ने मिल्कीपुर के बगल की ही कटेहरी सीट के अलावा संभल की कुंदरकी सीट भी गंवा दी थी। अखिलेश की परंपरागत सीट करहल जीतने तक में सपा के पसीने छूट गए थे। इसलिए इस सीट के नतीजे हार के झटके से उबरने के लिहाज से भी सपा के लिए अहम हैं।
हालांकि पार्टी अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) रणनीति की सफलता को लेकर आश्वस्त है। जमीनी अमल के लिए सामाजिक समीकरणों के हिसाब से वरिष्ठ चेहरों को लगाया गया है। हर क्षेत्र और हर बूथ पर कार्यकर्ताओं व पदाधिकारियों की वोटरों से संपर्क करने के साथ ही उनको बूथ तक लाने की जिम्मेदारी तय की जा रही है। जिससे किसी भी कारण से पार्टी के वोटर मतदान से वंचित न होने पाएं। संविधान, आरक्षण, महंगाई, जातीय जनगणना के साथ ही स्थानीय मुद्दों को भी पार्टी आधार बना रही है। वहीं भाजपा भी हर कीमत यह सीट अपने पाले में करने को लेकर एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। इस एक सीट के परिणाम को लेकर कई मायने निकाले जाएंगे। इसलिए पक्ष-विपक्ष पहले से यहां पूरी ताकत से जुटे हुए हैं। भाजपा की नजर यह सीट जीतकर 2024 में अयोध्या जिले की फैजाबाद लोकसभा सीट पर मिली हार का जख्म भरने पर है। यही कारण है कि सरकार और संगठन यहां पूरी ताकत झोंक हुए हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ खुद चार बार मिल्कीपुर का दौरा कर चुके हैं।
गौरतलब है कि मिल्कीपुर के विधायक रहे अवधेश प्रसाद ने राममंदिर के लोकार्पण के कुछ महीनों बाद ही हुए लोकसभा चुनाव में अयोध्या से जीत दर्ज कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया था। इस हार का बोझ भाजपा के लिए इतना भारी रहा कि केंद्र में उसकी लगातार तीसरी पारी का जश्न फीका पड़ गया। इसके बाद से ही अवधेश प्रसाद सपा सहित विपक्ष के ‘पोस्टर बॉय’ हैं। लोकसभा सदन में उनको आगे की सीट दिलवाने में आना-कानी पर अखिलेश यादव कांग्रेस तक पर खफा हो गए थे। अब मिल्कीपुर से सपा ने अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को उम्मीदवार बनाया है। इसलिए सपा के ‘पोस्टर बॉय’ की साख यहां दांव पर लग गई है। इससे पहले 2022 विधानसभा चुनाव में एसपी ने 13 हजार वोटों से जीत दर्ज की थी। उपचुनाव में बीएसपी और कांग्रेस लड़ाई से बाहर हैं। इसलिए सपा की नजर विपक्ष के खाली स्पेस को भर अतिरिक्त वोटों को भी अपने पाले में करने पर है। इस बार उपचुनाव में मिली हार से सबक लेते हुए एसपी जमीनी तैयारियों को और पुख्ता बनाने पर जोर दे रही है तो बीजेपी ने भी इस सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बना दिया है।