मां, माटी और मानुष का नारा देकर पश्चिम बंगाल में तीन दशकों से कायम वामपंथी शासन को दरकाने वाली ममता बनर्जी के किले में भी भाजपा सेंधमारी की तैयारी में जुट गई है। इस सियासी सेंधमारी की जिम्मेदारी ली है खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने। मिदनापुर में प्रधानमंत्री मोदी की दहाड़ को आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा की आक्रमकता के तौर पर देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी की मिदनापुर रैली में भले ही भाजपा का टेंट गिर गया। कुछ लोग इस हादसे में घायल भी हुए। लेकिन बारिश के बीच वह अपने प्रतिरोध की बिजली चमकाने में कामयाब रहे। उनकी रैली में जुटी अप्रत्याशित भीड़ को कुछ लोग ममता बनर्जी के सिंहासन के लिए खतरा भी बता रहे हैं। पश्चिम बंगाल के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव की अहमियत सिर्फ केंद्र की सत्ता तक ही नहीं सिमटी है। अलबत्ता इसकी तैयिरयों, रणनीति और नतीजे प्रदेश में कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों का भी मुस्तकबिल इससे तय हो जाएगा।
सोलह जुलाई को मिदनापुर रैली में प्रधानमंत्री ने वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर जबरदस्त ढंग से हमला बोला। मोदी ने आरोप लगाया कि पश्चिम बंगाल में सिंडिकेट शासन चला रहा है, यहां तुष्टिकरण की राजनीति की जा रही है। दशकों के वामपंथी शासन ने पश्चिम बंगाल को जिस हाल में पहुंचाया, आज इसकी हालत उससे भी बदतर हो गयी है। यहां कोई नई कंपनी खोलनी हो। नए अस्पताल और स्कूल क्यों न खोलना हो। बिना सिंडिकेट को चढ़ावा दिए, उसकी स्वीकøति लिए कुछ भी नहीं हो सकता है। बकौल मोदी, केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद हमारी सरकार ने किसानों को डेढ़ गुणा समर्थन मूल्य देने का फैसला लिया है। किसानों के लिए हमने इतना बड़ा फैसला किया है कि आज तृणमूल को भी इस सभा में हमारा स्वागत करने के लिए झंडे लगाने पड़े और उनको अपनी तस्वीरें लगानी पड़ी यह भाजपा की नहीं हमारे किसानों की जीत है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने 17 दिन पहले ही पुरुलिया जिले में जनसभा की थी। शाह ने अपनी रैली में इस बात का दावा किया कि उनकी पार्टी पश्चिम बंगाल में 42 लोकसभा सीटों में से 22 से अधिक पर जीत हासिल करेगी। असल में भाजपा ने इस प्रदेश में बहुत तेजी के साथ अपनी जडं़े जमाई हैं। भाजपा सूबे में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी है। हाल ही में हुए पंचायत चुनावों और उपचुनावों में भाजपा की ताकत पहले के बनिस्पत बढ़ी है।
भाजपा को ऐसा लग रहा है कि वह उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पिछले बार 2014 वाली बढ़त बरकरार नहीं रख पाएगी। इसलिए अपनी बढ़त को बढ़ाने के लिए उसने निशाने पर कुछ राज्यों को रखा है उसमें पश्चिम बंगाल भी है। भाजपा को लगता है कि वह 2019 की लोकसभा चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन करने वाली है। भाजपा का मिशन बंगाली लोकसभा चुनाव तक ही सीमित नहीं है। वह इस प्रदेश से तृणमूल की प्रमुख ममता बनर्जी के शासन को भी उखाड़ फेंकने की मुहिम में जुटी है। मिशन बांगल के मद्देनजर पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में नया जोश-खरोश भरने के लिए केंद्रीय मंत्रियों नेताओं के दौरे में गति आई है। अमित शाह के बाद दो दिन सुरेश प्रभु कोलकाता में थे, उनके जाते ही अगले दिन पीयूष गोयल पहुंच गए। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष के मुताबिक इस साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य के विभिन्न हिस्सों में कम से कम पांच रैलियों को संबोधित करेंगे। इस लिहाज से देखें तो शासन अब साल के बाकी महीनों में मोदी और अमित शाह सरीखे नेता कई दफा राज्य का दौरा करेंगे। भाजपा अध्यक्ष शाह अगस्त के प्रथम सप्ताह में एक बार फिर दो दिवसीय दौरे पर आ सकते हैं।
सोलह जुलाई को मिदनापुर में हुई प्रधानमंत्री की रैली के जवाब में अब सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस भी रैली कर अपनी शक्ति प्रदर्शन में जुट गई है। वह 21 जुलाई को शहीद रैली में करने जा रही है। इस रैली के निशाने पर प्रधानमंत्री मोदी ही रहेंगे। पार्टी की दलील है कि खुद भाजपा के शासन वाले महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्याएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं और मोदी यहां रैली के नाम पर किसानों का हितैषी बनने की कोशिश कर रहे हैं। किसानों की रैली महाराष्ट्र में होनी चाहिए थी। भाजपा यहां ममता बनर्जी के खिलाफ अफवाह फैलाने और धर्म के नाम पर लोगों को बांटने की राजनीति के तहत मोदी को ला रही है।
मेदनापुर जिले में बीते पंचायत चुनाव में मिली कामयाबी के आसरे अपनी जमीन और मजबूत करने के लिए ही मोदी को यहां ला रही है। कारण कि यह उसी मिशन बंगाल का आगाज है। इसमें कोई दो राय नहीं कि ममता बनर्जी सेल्फ मेड हैं। उन्होंने जिस दिलेरी से तीन दशकों से लगातार चल रहे वामपंथी शासन का खात्मा किया वह काबिलेतारीफ है लेकिन इस क्रम में वह उन्हीं खामियों का शिकार हो गईं जिनके खिलाफ उनका संघर्ष था। कहने का आशय यह कि माकपा का जो बदनाम कैडर था वह अब ममता बनर्जी के साथ है। स्थानीय लोगों का भी मनना है कि माकपा की वह तमाम बुराइयों जिनका कभी ममता बनर्जी विरोध करतीं उन्हें अब तृणमूल कांग्रेस ने आत्मसात कर लिया है। यह चीज पार्टी के साथ-साथ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी नुकसान पहुंचा रही है। ऐसे में जबकि मोदी-शाह के वह निशाने पर हैं और विपक्षी एकता की तरफ से राहुल, मायावती के बाद उनके नाम की भी चर्चा हो रही है, उससे ममता बनर्जी को सतर्क हो जाना चाहिए।