बिहार की राजनीति में भारी उथल-पुथल का दौर चल रहा है। 13 बरस तक भाजपा संग सत्ता सुख भोग चुके नीतीश कुमार पहली दफे बैकफुट पर हैं। भले ही हालिया संपन्न विधानसभा चुनावों में कम सीटें आने के बाद भी नीतीश को गठबंधन सरकार का मुखिया चुना, जमीनी हालात सुशासन बाबू के पक्ष में स्पष्ट तौर पर नहीं नजर आ रहे हैं। जद(यू) को इन चुनावों में भारी असफलता हाथ लगी और वह 71 सीटों से सीधे 43 सीटों पर आ गई। दूसरी तरफ 2015 में 53 सीटों वाली भाजपा ने ऊंची छलांग लगा 73 सीटें कब्जा ली हैं। नतीश कुमार का संकट नई सरकार के गठन साथ ही बढ़ना शुरू हो गया है। पिछली दफा सरकार में सिर्फ वह अकेले ‘बहादुर’ थे, अबकी बार हालात ठीक उलट हैं। भाजपा ने उनके साथ अपने दो डिप्टी सीएम तैनात कर डालेे हैं। खबर पटना में गर्म है कि दोनों डिप्टी सीएम राज्य सरकार के हर फैसले में दखल दे रहे हैं। हालांकि गृह मंत्रालय नीतीश बाबू के पास है लेकिन प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की तैनाती भाजपा अपने तरीके से कर रही है। राज्य के नए पुलिस महानिदेशक का फैसला सूत्रों की माने तो भाजपा की पसंद अनुसार किया गया है। इतना ही नहीं 31 दिसंबर की रात 27 आईएस और 38 आईपीएस अफसरों का तबादला करने के पीछे भी भाजपा नेताओं का हाथ बताया जा रहा है।
समीकरण ऐसे हैं कि इधर कुंआ उधर खाई
बिहार की राजनीति जानने-समझने वालों का आकलन है कि जद(यू) -भाजपा गठबंधन भारी तनाव के दौर से गुजर रहा है। भाजपा राज्य विधानसभा में दूसरा सबसे बड़ा दल है। उसके पास 73 विधायक हैं। राष्ट्रीय जनता दल के पास 75 सीटे हैं। राज्य विधानसभा में कुल 243 सीटे हैं। सरकार बनाने के लिए सामान्य बहुमत 122 सीटों का बनता है। ऐसे में एनडीए के पास भाजपा की 73, जद(यू) की 43, ‘विकासशील इंसान पार्टी’ की 4 और ‘हिन्दुस्तान अवाम पार्टी’ की 4 सीटें मिलाकर कुल जोड़ 125 बनता है। दूसरी तरफ राजद के 75, कांग्रेेस के 19, लेफ्ट के 16 विधायक मिलाकर बनते हैं, कुल 110। ऐसे में जद(यू) के बगैर न तो एनडीए की सरकार बन सकती थी, न ही यूपीए की।
नीतीश कुमार का असल संकट आने वाले समय में सीएए को लेकर होना तय है। यदि भाजपा असम और पश्चिम बंगाल चुनावों से पहले सीएए कानून को लागू करने की कवायद शुरू करती है तो नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्ष छवि खतरे में आ जायेगी। ऐसे में नीतीश के पास विकल्प केवल एक बार फिर से पाला बदलने का बचेगा। यदिवे ऐसा करते हैं तो भी उनके सामने अपने विधायक दल को एकजुट रखने की बड़ी चुनौती होगी। पटना में खबर गर्म है कि भाजपा अरूणाचल प्रदेश की तरफ बिहार में भी कोई ‘चमत्कार’ करने के मिशन में जुट चुकी है।
इतना ही नहीं राजद भी पूरे दमखम के साथ जद(यू) विधायकों को अपनी तरफ करने में लग चुकी है।
कुल मिलाकर जो संकेत पटना से मिल रहे हैं उनसे स्पष्ट नजर आ रहा है कि वर्तमान परिदृश्य में भारी बदलाव आना तय है। यह बदलाव राज्य को मध्यावधि चुनाव की तरफ धकेलेगा या फिर नीतीश एक बार फिर से पाला बदल ‘धर्मनिरपेक्ष’ हो जायेंगे कहना अभी कठिन हैं।