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बुलडोजर ने बढ़ाया देश का सियासी तापमान

उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ बुलडोजर अब देशभर में सुर्खियां बटोर रहा है। बुलडोजर की ‘धमक’ गुजरात, मध्य प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों से होते हुए देश की राजधानी तक पहुंच गई है। पिछले दिनों भारत के दो दिवसीय दौरे पर आए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन गुजरात के वडोदरा में एक जेसीबी यूनिट में बुलडोजर पर चढ़े नजर आए थे। जॉनसन की इस तस्वीर ने सोशल मीडिया पर भी खूब जलवा दिखाया। लोगों ने बुलडोजर से लेकर बोरिस जॉनसन तक को लेकर तमाम दावे कर डाले।

 

वैसे, जॉनसन के बुलडोजर पर चढ़े नजर आने की वजह यह है कि बुलडोजर बनाने वाली कंपनी जेसीबी ब्रिटेन की है। इन दिनों जेसीबी यानी बुलडोजर का क्रेज राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आए दिन सुर्खियों में है। दरअसल दिल्ली नगर निगम इन दिनों अतिक्रमण को लेकर सक्रिय है। इसकी शुरुआत जहांगीरपुरी से हुई फिर यह बुलडोजर तुगलकाबाद पहुंचा और अब अन्य इलाकों में इसको चलाया जा रहा है लेकिन दो साल पहले नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन से देशभर में सुर्खियों में आए शाहीन बाग में इसकी आमद ने देश की राजधानी का राजनीतिक तापमान खासा बढ़ा दिया है। एमसीडी के बुलडोजर जैसे ही शाहीन बाग पहुंचे, हंगामा शुरू हो गया। लोगों के विरोध के बाद बुलडोजर वापस चले गए। इसके बाद लोगों ने यहां तिरंगा लहराया। शाहीन बाग में अतिक्रमण हटाने की मुहिम के खिलाफ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया-मार्क्सवादी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में यह कहते हुए दखल देने से इनकार कर दिया है कि याचिका किसी भी प्रभावित पक्ष की बजाय एक राजनीतिक दल ने दायर की है। कोर्ट ने कहा कि अदालत को इन सब के लिए मंच नहीं बनाया जाना चाहिए। कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने की मुहिम से प्रभावित लोगों से हाईकोर्ट जाने को कहा है।

 

बुलडोजर के इस्तेमाल की हाल फिलहाल में जो परंपरा सी चल पड़ी है, उसकी एक वजह ‘देखा- देखी की राजनीति’ भी है। उत्तर प्रदेश में अगर योगी कर सकते हैं और उनको इसका चुनाव में फायदा भी मिला, तो फिर शिवराज क्यों नहीं? शिवराज के बाद तो हर बीजेपी शासित राज्य की सरकारें ऐसा चाह रही हैं। हालांकि देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जो सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने या दंगा करने के आरोपी की संपत्ति को नष्ट करने की अनुमति देता हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में दो महत्वपूर्ण आदेश पारित किए हैं। पहला वर्ष 2009 में और दूसरा 2018 में

गौरतलब है कि पिछले महीने सांप्रदायिक झड़प की दो घटनाओं एक मध्य प्रदेश के खरगोन में और दूसरी दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके के बाद जिस तरह से प्रभावित क्षेत्रों में ध्वस्तीकरण अभियान चलाया गया है, उससे लगता है कि बुलडोजर का इस्तेमाल एक नया ट्रेंड बनता जा रहा है। उत्तर पश्चिमी दिल्ली के दंगा प्रभावित इलाके जहांगीरपुरी में निगम के अधिकारियों की निगरानी में दुकानों, अस्थायी ढांचों और एक मस्जिद के गेट के बाहर बुलडोजर चलाया गया था। यह कदम दिल्ली भाजपा प्रमुख आदेश गुप्ता की तरफ से उत्तरी दिल्ली के मेयर राजा इकबाल सिंह को दिए एक पत्र के बाद उठाया गया, जिसमें उनसे हनुमान जयंती रैली के दौरान जहांगीरपुरी में सांप्रदायिक हिंसा के बाद गिरफ्तार किए गए लोगों के ‘अवैध अतिक्रमण’ और निर्माण की पहचान करने को कहा गया था। इसके अलावा मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में रामनवमी जुलूस के दौरान एक सांप्रदायिक झड़प भी हुई थी, जिसके बाद आस-पास के क्षेत्र में ‘अवैध अतिक्रमण’ हटाने के लिए बुलडोजर चलाया गया था और जिला प्रशासन का दावा था कि इस अभियान का उद्देश्य ‘दंगाइयों और हिंसा की घटना से प्रभावित लोगों को एक संदेश भेजना था।

जहांगीरपुरी में रोकना पड़ा था एमसीडी का बुलडोजर

 

जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती के दिन हुई हिंसा के बाद वहां भी बुलडोजर से अतिक्रमण हटाया गया था। हालांकि, तब कार्रवाई बहुत ज्यादा लंबी नहीं चल सकी थी, क्योंकि इस पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश आ गया था। कोर्ट ने फिलहाल जहांगीरपुरी में अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई पर स्टे लगाया है।

क्या है अवैध कब्जा हटाने की प्रक्रिया

 

सरकार कुछ परिस्थितियां में किसी की निजी संपत्ति को ध्वस्त कर सकती है। इनमें सरकारी जमीन पर अनाधिकृत निर्माण, किसी और की संपत्ति पर अतिक्रमण वाली इमारतें या नियमों का उल्लंघन करके बनाए गए ढांचे शामिल होते हैं। वैसे देशभर के नगर निगमों को ऐसे निर्माणों को ध्वस्त करने का अधिकार हासिल है लेकिन विभिन्न राज्यों में इससे पूर्व अलग-अलग नियमों का पालन किया जाना होता है। दिल्ली नगर निगम अधिनियम 1957 की धारा 343 में अवैध तरीके से बिना मंजूरी के या भवन उपनियमों का उल्लंघन करके बनाए गए किसी भी भवन या ढांचे को गिराने से पहले नोटिस देने का प्रावधान है। इस धारा के मुताबिक,निगम मालिक या इसमें रहने वाले को इमारत गिराने के लिए पांच से 15 दिनों का नोटिस दे सकता है। ऐसा न होने पर आयुक्त स्वयं भवन को गिराने का आदेश दे सकता है। नियम स्पष्ट तौर पर यह निर्देशित करते हैं कि ‘तब तक ध्वस्तीकरण का कोई आदेश नहीं दिया जाएगा जब तक कि किसी व्यक्ति को नोटिस इस तरह से न दिया गया हो, जिसे आयुक्त उचित समझे, जो उसे ऐसा आदेश लागू न होने के कारण बताने का उचित अवसर देता हो।’ इसमें यह भी कहा गया है कि निगम के आदेश से असंतुष्ट कोई भी व्यक्ति ध्वस्तीकरण आदेश में निर्धारित अवधि के भीतर अपीली न्यायाधिकरण में अपील दायर कर सकता है। जब ऐसी अपील दायर की जाती है, तो ट्रिब्यूनल आदेश के पालन पर रोक भी लगा सकता है। इसी तरह मध्य प्रदेश जहां खरगोन जिले में रामनवमी पर झड़पों के बाद ‘अवैध अतिक्रमण’ के खिलाफ बुलडोजर अभियान चला था, में मध्य प्रदेश भूमि विकास नियम 1984 के नियम 12 में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को नोटिस भेजा जाना चाहिए, जिसकी संपत्ति नियमों का उल्लंघन करती है। नोटिस पाने वाले को या भवन छोड़ने या उसे नियमों के अनुरूप बनाने के लिए कम से कम 10 दिनों की मोहलत दी जानी चाहिए। इसके बावजूद संकट यह है कि देशभर में जहां कहीं भी इन दिनों बुलडोजर के जरिए कथित अवैध अतिक्रमण हटाया जा रहा है वहां के नागरिकों का आरोप है कि उन्हें कोई भी नोटिस नहीं दिया गया है। हालांकि खरगोन जिला प्रशासन के अधिकारियों ने कहा कि जिनके घरों और दुकानों को तोड़ा गया था, उन्हें पूर्व में नोटिस दिया गया था, जबकि कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया है कि ऐसा नहीं किया गया था।

यूपी और एमपी में तो अपराधियों और माफियाओं के खिलाफ सीएम योगी आदित्यनाथ और मामा शिवराज सिंह चौहान का बुलडोजर गरज रहा था लेकिन दिल्ली में तस्वीर थोड़ी सी अलग है। यहां अतिक्रमण के खिलाफ दिल्ली की सड़कों पर बुलडोजर निकल रहा है। लेकिन दिल्ली नगर निगम की इस मुहिम का विरोध भी हो रहा है। उत्तर प्रदेश में तो हालत यह है कि न कोई एफआईआर न कोई बात फैसला ऑन द स्पॉट की तर्ज पर अब अपराधियों को पुलिस की गोली से ज्यादा योगी के बुलडोजर से डर लगता है क्योंकि जब योगी का बुलडोजर चलता है तो क्या पेट्रोल पंप, क्या बिल्डिग, क्या मकान और क्या दुकान। अपराधी का हो या अवैध निर्माण, सब एक झटके में मलबे में बदल जाते हैं। यूपी में योगी 2 .0 के एक्शन में आते ही बुलडोजर ने जैसे टॉप गियर पकड़ लिया है। अब तो शायद ही कोई दिन गुजरता है जब बुलडोजर एक्शन पर नहीं हो।

बाबा का बुलडोजर हिट क्यों है

 

अब सवाल यह है कि अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर फॉर्मूला हिट क्यों हैं? बाबा का बुलडोजर स्टाइल क्यों फॉलो कर रहे हैं दूसरे राज्य? बुलडोजर से अपराधियों के इलाज के पीछे की वजह क्या है? दरअसल यूपी विधानसभा के चुनावी रण में कानून व्यवस्था एक अहम मुद्दा रहा। योगी सरकार ने लगातार कानून व्यवस्था के मोर्चे पर पिछली सरकारों को कठघरे में खड़ा कर माफियाओं के खिलाफ बुलडोजर चलाकर सख्त मैसेज दिया, क्योंकि कानून-व्यवस्था एक ऐसा मुद्दा है जो जनता को सीधे कनेक्ट करता है। यही वजह है कि अब देश के दूसरे राज्यों की बीजेपी सरकारें भी योगी के बुलडोजर फॉर्मूले को अपने यहां लागू कर रही हैं। बुलडोजर के इस्तेमाल की हाल फिलहाल में जो परंपरा सी चल पड़ी है, उसकी एक वजह ‘देखा-देखी की राजनीति’ भी है। उत्तर प्रदेश में अगर योगी कर सकते हैं और उनको इसका चुनाव में फायदा भी मिला, तो फिर शिवराज क्यों नहीं।

शिवराज के बाद तो हर बीजेपी शासित हर राज्य सरकारें ऐसा चाह रही हैं। मध्य प्रदेश की राजनीति के विशेषज्ञ कहते हैं, ‘अगले साल यहां चुनाव है। शिवराज सिंह चौहान बीजेपी का ‘हार्डलाइन’ वाला चेहरा नहीं रहे हैं। उनकी छवि अटल बिहारी वाजपेयी की थी जिनकी हिंदू और मुसलमानों में समान तरह की स्वीकार्यता थी लेकिन राज्य बीजेपी के नेताओं में एक-दूसरे से आगे निकलने की एक होड़-सी लगी है। उसमें लगता है कि शिवराज भी पीछे नहीं रहना चाहते हैं।

 

क्या दंगे के आरोपियों की संपत्ति गिराना जायज है

 

देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जो सार्वजनिक या निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने या दंगा करने के आरोपी की संपत्ति को नष्ट करने की अनुमति देता हो, सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में दो महत्वपूर्ण आदेश पारित किए हैं- एक वर्ष 2009 में और दूसरा 2018 में। 2009 के फैसले में कहा गया था कि हिंसा के कारण नुकसान की भरपाई के लिए कोई कानून नहीं है, इसलिए हाई कोर्ट सार्वजनिक संपत्ति को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाए जाने की घटनाओं पर स्वतः संज्ञान ले सकते हैं। जांच और मुआवजे के लिए एक मैकेनिज्म बना सकते हैं। कोर्ट के निर्देशों में यह भी कहा गया था कि हाई कोर्ट के किसी मौजूदा या सेवानिवृत्त न्यायाधीश को तब नुकसान का अनुमान लगाने और दायित्व की जांच करने के लिए ‘दावा आयुक्त’ के तौर पर नियुक्त किया जा सकता है।

बहरहाल, बुलडोजर को लेकर इस तरह की दीवानगी पहले भी नजर आ चुकी है जब सोशल मीडिया पर ‘बुलडोजर’ ट्रेंड करने लगा था। जिस तरह से ‘ठंडा’ मतलब कोका-कोला होता है उसी तरह जेसीबी को लोग अब आमतौर पर बुलडोजर के नाम से ही जानते हैं जबकि, जेसीबी सिर्फ कंपनी का नाम है जो बुलडोजर जैसी अन्य मशीनों को बनाती है। बुलडोजर आमतौर पर कंस्ट्रक्शन साइट्स पर ही नजर आता है लेकिन इन दिनों देश में इसका इस्तेमाल अवैध निर्माणों, अतिक्रमण, अपराधियों और माफियाओं के घरों को ध्वस्त करने में हो रहा है।

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