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यूपी में दिनोदिन कमजोर होती BSP, ऐसे कैसे होगा मिशन 2022 का सपना पूरा?

आरके चौधरी, नसीमुद्दीन सिद्दीकी बाबू सिंह कुशवाहा, इंद्रजीत सरोज, स्वामी प्रसाद मौर्या, रामवीर उपाध्याय व जुगुल किशोर जैसे कुछ बड़े नाम हैं, जिनको बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में सलिप्त पाने के बाद बाहर करने में एक मिनट का भी समय नहीं लगाया था। कल इसी कड़ी में दो नाम और सुमार हो गए है। लालजी वर्मा और राम अचल राजभर।

बसपा विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व राष्ट्रीय महासचिव राम अचल राजभर को मायावती ने कल पार्टी से बसपा से निष्कासित कर दिया। लालजी वर्मा और राम अचल राजभर बहुजन समाज पाटी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। वह स्वर्गीय कांशीराम के समय से बहुजन समाज पार्टी से जुड़े थे। इनको बसपा की मुखिया मायावती ने पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। लालजी वर्मा पार्टी के विधायक दल के नेता थे। अब शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को बसपा की तरफ से विधायक दल का नेता चुना गया है। जबकि राम अचल राजभर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं।पंचायत चुनाव के दौरान से ही पार्टी इन दोनों विधायकों से नाराज है। दोनों विधायकों ने पार्टी के उम्मीदवारों की जगह दूसरे उम्मीदवारों का समर्थन किया था।बसपा प्रमुख ने पंचायत चुनाव के दौरान इन दोनों के पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के चलते यह कड़ी कार्रवाई की है। इनके पहले भी गौतमबुद्धनगर जिले में बसपा मुखिया ने पदाधिकारियों पर कार्रवाई की थी।

विधायक लाल जी वर्मा और विधायक राम अचल राजभर की बसपा से निष्कासित करने की कार्रवाई के बाद जारी पत्र में कहा गया है कि इन दोंन विधायकों को अब पार्टी के किसी कार्यक्रम में नहीं बुलाया जाएगा। न ही बसपा की तरफ से कभी चुनाव लड़ाया जाएगा। इन दोनों दिग्गज नेताओं को पार्टी से निकाले जाने के बाद यूपी की राजनीति में सरगर्मियां और तेज हो गई हैं। बसपा में पहले भी कई बार टूट हो चुकी है। अब इन दोनों दिग्गज नेताओं का रुख क्या होगा, इस पर सबकी नजर है। बताया जा रहा है कि लाल जी वर्मा का समाजवादी पार्टी में जाना तय हो गया है। जबकि राम अचल राजभर अभी तक पार्टी से निकाले जाने के गम में बताए जा रहे है।

 जबकि मायावती की हिटलरशाही कार्यकलापों के चलते कांशीराम के साथी रहे राज बहादुर, राम समुझ, हीरा ठाकुर और जुगल किशोर और कैप्टन सिकंदर रिजवी पहले ही पार्टी छोड़ गए थे। पार्टी छोड़ने वाले दिग्गज नेताओं में राज बहादुर, डॉक्टर मसूद अहमद, सुधीर गोयल, बरखूराम वर्मा, राम लखन वर्मा, जंगबहादुर पटेल, आरके पटेल और सोने लाल पटेल भी कासीरम के राइट हेंड माने जाते थे। इन्हे बहार करने में मायावती ने पल भर भी देर नहीं लगाई।

कांशीराम के साथियों में से अब सिर्फ सुखदेव राजभर ही पार्टी में बचे हैं। रमाशंकर पाल, एसपी सिंह बघेल, राजवीर सिंह, पूर्व मंत्री अब्दुल मन्नान, उनके भाई अब्दुल हन्नान, राज्यसभा सदस्य नरेंद्र कश्यप और रामपाल यादव भी कुछ ऐसे ही नेता है जो बहार किये जा चुके है। बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्रा छोड़ दें, तो पार्टी का जो भी नेता मायावती के ज्यादा करीब पहुंचा, बहुत जल्द ही किनारे हो गया और फिर सीधे पार्टी से बाहर कर दिया गया। इस तरह पिछले पांच चार साल में मायावती अपने 11 विधायकों को बसपा से बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। अब उनकी पार्टी में सिर्फ 7 विधायक ही मायावती के पास बचे है। जबकि एक विधायक मुख्त्यार अंसारी जेल में है।  याद रहे कि 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा यूपी में महज 19 सीट जीत पाई थी।

1996 में मायावती ने पार्टी के बड़े नेता दीनानाथ भास्कर को निकाला। कुछ समय सपा में बिताकर वह 2009 में वापस बसपा में शामिल हुए। लेकिन मायावती का विश्वास जीत पाने में नाकाम रहे।  कांशीराम के क़रीबी माने जाने वाले सुधीर गोयल को आज तक पता नहीं है कि उन्हें बसपा से क्यों निकाला गया।  यह हाल बरखूराम वर्मा का भी हुआ जो लंबे समय तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे।  जंगबहादुर पटेल और सोनेलाल पटेल का भी यही हश्र हुआ। सोनेलाल ने अपनी पार्टी अपना दल बनाई लेकिन राज्य की राजनीति को कभी बहुत प्रभावित नहीं कर पाए।

अपने मुख्यमंत्रित्व काल में मायावती ने 26 प्रभावशाली नेताओं को निकाल बाहर किया। इनमें 13 मंत्री और दूसरे मंत्री स्तर के दर्जा प्राप्त लोग, सांसद और विधायक थे. पार्टी के सांसद उमाकांत यादव को मुलाक़ात के लिए मुख्यमंत्री आवास बुलाया और एक पुराने आपराधिक मामले में वहीं से गिरफ्तार करा दिया। चहेते सांसद धनंजय सिंह हों या विधायक योगेंद्र सागर को भी मायावती ने नहीं बख्शा। एनआरएचएम घोटाले के चलते मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा को भी एक झटके में मंत्रिमंडल से निकाल बाहर किया था।

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