कोरोना के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन दुनिया अकेले महामारी से त्रस्त नहीं है। मानवता को हिंसा, भुखमरी और विस्थापन का दंश झेलने के लिए जिस प्रवृत्ति ने विवश किया आखिर उस पर कौन अंकुश लगाएगा
अभी तक अदृश्य कोरोना वायरस से विश्व भर में करोड़ों लोगों की मौत हो चुकी है। करोड़ों लोग संक्रमित हैं। लाखों लोगों का अस्पतालों में उपचार चल रहा है। कोरोना से हो रही मौतों के लिए चाइना को जिम्मेदार ठहराया जा रहा हो, लेकिन सत्ता लालसा के चलते विश्व भर में जो लाखों लोग मर रहे हैं, भुखमरी के कगार पर हैं, अपनी माटी, अपना वतन छोड़ रहे हैं, घर से बेदखल हो रहे हैं। आंतकवाद, नक्सलवाद, साम्राज्यवाद, आर्थिकवाद के चलते विश्व में जो अफरा-तफरी मची है, आखिर इस सबका जिम्मेदार कौन है?
ब्रिटेन के मेडिकल जर्नल ‘द लासेंट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 12 प्रतिशत आबादी हिंसाग्रस्त देशों में रह रही है। दुनिया के 37 देश अभी बुरी तरह हिंसाग्रस्त हैं। यहां पर पलायन, भुखमरी, रोजगार के साथ ही मानसिक समस्याएं गहरे पैठ जमा चुकी हैं। हिंसा व संघर्ष के कारण 6 करोड़ 90 लाख लोग जबरन विस्थापन के शिकार हुए हैं। यह दूसरे विश्वयुद्ध में विस्थापित होने वाले लोगों से बड़ी संख्या है। अफगानिस्तान, जॉर्डन, फलस्तीन, लेबनान, गाजा पट्टी, नाइजीरिया, दक्षिण सूडान, यमन, कोलम्बिया, एल सल्वाडोर, वेनेजुएला, केन्या सहित दर्जनों देश बुरी तरह हिंसाग्रस्त हैं जो विश्व की एक डरावनी तस्वीर पेश करते हैं। पूरे विश्व के 34 देश भीषण खाद्य संकट से जूझ रहे हैं। भारत का पड़ोसी अफगानिस्तान किस तरह सत्ता संघर्ष की कीमत चुका रहा है। कैसे वहां के लोग अपना वतन छोड़ शरणार्थी बनने को मजबूर हैं। वहीं पड़ोसी देश श्रीलंका में बढ़ती महंगाई के चलते फूड इमरजेंसी लागू हो चुकी है। यह वही श्रीलंका है जिसने गृहयुद्ध की भारी कीमत चुकायी थी। जिसमें 1 लाख लोग मारे गए थे। 20 हजार जवान लापता हो गए। जिसे अब श्रीलंका सरकार मृत मानकर चल रही है। दुनिया भर में जारी युद्ध की सर्वाधिक कीमत बच्चों को चुकानी पड़ रही है। यूनीसेफ की रिपोर्ट कहती है कि पिछले 15 साल यानी 2005 से 2019 के बीच बच्चों का सर्वाधिक उत्पीड़न व अपहरण हुआ। 104100 बच्चे मारे गए व घायल हुए। जिसमें 26025 अफगानी बच्चे थे। इस दौरान 14 हजार से अधिक बाल यौन उत्पीड़न की घटनायें दर्ज हुई। 25700 बच्चों का अपहरण हुआ, जिन्हें आतंकी संगठनों में भर्ती किया गया।
आज हर कोई इस सवाल का जबाव तलाश रहा है कि अमेरिका, पाकिस्तान, रूस एवं तालिबान ने अपफगानिस्तान में जो किया आखिर उससे अफगानियों और विश्व को क्या हासिल हुआ? अफगानिस्तान में 20 साल के युद्ध में 66 हजार अफगान सैनिक शहीद हो गए। ब्राउन यूनिवर्सिटी की शोध रिपोर्ट कहती है कि इस दौरान 84191 तालिबानी मारे गए। 1461 अमेरिकी सैनिक मरे। 75971 सेना व पुलिस के जवान मरे। 78000 नागरिकों की मौत हुई। 50 लाख लोग विस्थापित हुए। अपनी बादशाहत बनाने के लिए अमेरिका ने 61 लाख करोड़ रुपए भी बेवजह खर्च कर दिए। अमेरिका की दादागिरी की कीमत कई देशों ने तो चुकाई ही वहीं खुद उसे भी काफी नुकसान उठाना पड़ा। इराक में अमेरिका के 383 सैनिक मरे। 1 लाख करोड़ रुपया खर्च हुआ। कोरियाई युद्ध में 36 हजार से अधिक सैनिक मारे गए। 21 लाख करोड़ रुपया खर्च हुआ। वियतनाम युद्ध में 60 हजार सैनिक मारे गए। 64 लाख करोड़ रुपए खर्च हुए। 1955 से 1975 तक चले वियतनाम युद्ध में 58 हजार 220 अमेरिकी सैनिक मारे गए।
अमेरिका समय-समय पर अपनी दादागिरी की कीमत चुकाता रहा है। मैक्सिको-अमेरिका युद्ध (1846 से 1848) में 13,283, प्रथम विश्वयुद्ध (1916-18) में 53,402, द्वितीय विश्वयुद्ध (1941-45) में 2,91,557, कोरिया युद्ध (1950-53) में 36, 574 अमेरिकी मारे गए। पूर्व में अमेरिका ने ईरान-इराक को लड़ाकर ईरान का पक्ष लिया। पूरे इराक को बर्बाद किया। अब वह ईरान को बर्बाद करने पर तुला हुआ है।
सीरिया, इराक, यमन, सोमालिया, नायजीरिया एवं सेंट्रल अफ्रीका के देशों में आतंकी हिंसा जारी है। यही नहीं शरणार्थी समस्या व कानून व्यवस्था का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। लाखों लोग दूसरे देशों में शरण ले चुके हैं। इन देशों में अकेले सूखे से 15 लाख लोग पलायान कर चुके हैं। 1 करोड़ से ऊपर लोग मर चुके हैं। जिम्मबाबे, वर्किश फासो, जिबूती, इरीट्रिया, कांगो, माली, इथोपिया, यूगांडा, सूडान मेडागास्कर जैसे देशों की हालत लगातार बदतर होती जा रही है। उत्तरी कोरिया गरीबी व भुखमरी के दल-दल में फंस चुका है, लेकिन वहां के तानाशाह शासक किम जोंग उन अपनी हठधर्मिता से लगातार विश्व को युद्ध की स्थिति में धकेल रहे हैं। वह इराक के तानाशाह एवं हठधर्मी सद्दाम हुसैन के हश्र से भी सीख लेने को तैयार नहीं हैं। आज पूरे विश्व में पांच करोड़ से अधिक लोग यतीम हैं, जख्मी हैं। अफ्रीकी देश जिम्मबाबे के 36 लाख लोगों के पास खाने के लिए भोजन नहीं है। अनुमान तो यह लगाया जा रहा है कि कुछ ही महीनों में यह संख्या 55 लाख पहुंच सकती है। क्या इस बात को भूला जा सकता है कि दक्षिण अमेरिकी देश हैती और अफ्रीकी देश सेनेगल में खाने के लिए दंगे भड़के थे जिसमें कई लोगों की जान चली गई थी। विश्व बैंक ने तो यह भी आगाह किया है कि आने वाले समय में 50 देशों में दंगे फसाद हो सकते हैं। फिलीपीन्स, म्यांमार, वियतनाम जैसे देश जो चावल उत्पादन के लिए जाने जाते थे, आज खाद्य संकट से जूझ रहे हैं। पाकिस्तान ने जिस आंतकवाद को प्रश्रय दिया आज वही उसके विनाश का कारण बन रहा है। सभ्य कहलाने वाली 21 वीं शताब्दी में चारों तरफ भूख है। भय है। अनिश्चितता है। तमाम दुश्चिंताएं हैं। चारों तरफ मौत ही मौत मंडरा रही है। लोग शरणार्थी शिविरों में अमानवीय स्थितियों में रहने को विवश हैं। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी की एक जारी रिपोर्ट के अनुसार अकेले बीते वर्ष पूरी दुनिया भर से 7 करोड़ लोग विस्थापित हुए। अमेरिका-यमन टकराव में ढ़ाई लाख लोग मर चुके हैं। मिश्र जैसे देश में इसीलिए बगावत हुई, चूंकि वहां गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार एवं मानवाधिकारों का हनन अपने चरम पर पहुंच चुका था। दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला जो किसी समय में अपनी समृद्ध तेल अर्थव्यवस्था के लिए विख्यात था, लेकिन अब आर्थिक संकटों के चलते गृहयुद्ध की तरफ बढ़ रहा है। यहां से 45 लाख लोग अपना घर बार छोड़ पलायन कर चुके हैं, तो वहीं 93 लाख लोग दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज हैं। देश की हालत सुधारने के बजाय वहां के राष्ट्रपति निकोलए मादुरो देश की महिलाओं से 6 बच्चे पैदा करने को कह रहे हैं। ईरान समर्थित हाउती विद्रोहियों का यमन में चल रहे संघर्ष में 1 लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। सीरिया युद्ध की चपेट में बहुत कुछ गंवा चुका है। अब तक एक करोड़ से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। 10 लाख से अधिक लोग यूरोप तो लाखों अपने देश में ही घर-बार छोड़ कर इधर-उधर भटकने को मजबूर हुए हैं। गाजा पट्टी जिसे दुनिया की खुली जेल कहा जाता है, यहां अब तक 1 लाख 70 हजार से अधिक लोग बेघरबार हो चुके हैं। विश्व में जो कुछ हो रहा है वह हिंसा व प्रतिरोध की एक नई पीढ़ी को तैयार कर रहा है। जिसके पास नफरत, युद्ध एवं हिंसा के सिवाय कोई अतीत नहीं। 21वीं सदी में भी जगह-जगह अमानवीय और घिनौना अपराध बिखरा पड़ा है। लाखों लोगों के दुख दर्द की यहां अपनी कहानियां हैं। जो मानवीयता की आत्मा को झकझोरने के लिए काफी हैं।
आज आदमी इतना क्रूर हो चुका है कि कनाडा जैसे सम्पन्न देश में धर्मांतरण की खातिर एक हजार से अधिक बच्चे मार दिए जाते हैं। वहां पर सांस्कृतिक नरसंहार होता है। चार हजार से अधिक बच्चे आवासीय स्कूलों से गायब हो जाते हैं। कहा जाता है कि कैथोलिक चर्च द्वारा संचालित इन स्कूलों में बच्चों को परिवारों से जबरन दूर कर उन्हें धार्मिक शिक्षा के साथ ही उनका धर्मांतरण किया जाता था। पश्चिम अफ्रीकी देश बुर्किना फासो में जिहादियों ने 130 बच्चों की हत्या कर दी थी। कट्टरपंथी इस्लामी आंतकियों ने इन बच्चों पर हमला किया था। 2 करोड़ की आबादी वाले इस मरुस्थलीय देश में 12 लाख लोग दो साल में आंतककियों की हिंसा के चलते विस्थापित हुए जिनमें तीन लाख बच्चे भी हैं। वहां 2200 स्कूल बंद चल रहे हैं। बीते सालों में 6000 से अधिक लोगों की हत्यायें कर दी गई हैं। आतंकी संगठनों द्वारा बीते वर्ष 3200 बच्चों को सेना में भर्ती किया जाता है। भारत जैसे सांस्कृतिक देश में महाराष्ट्र के मराठवाड़ा के बीड जिले में पिछले तीन साल में महिलाओं के साढे़ चार हजार गर्भाशय निकाल लिये जाते हैं। तो क्या यह सब घटनाएं सभ्य दुनिया के क्रूर सच की तस्वीर नहीं दिखाती?
34 देशों में भीषण खाद्यान संकट
हिंसा से 6 करोड़ 90 लाख लोग विस्थापित
उत्पीड़न और अपहरण का शिकार हुए 10 लाख से ज्यादा बच्चे
भविष्य में 50 देशों में हो सकते हैं दंगे-फसाद
वर्तमान में 37 देश हिंसा से बुरी तरह त्रस्त