एक साल पहले यानी 1 अप्रैल 2020 को ही सरकार की ओर से गठित कमेटी ने यह कह दिया था कि कोरोना की दूसरी लहर आई तो ऑक्सीजन की कमी होगी।केंद्र सरकार ने बीते साल 11 सशक्त समूह यानी एमपॉवर्ड ग्रुप गठित किए थे, जिन्हें कोरोना से लड़ने के लिए योजना बना कर उन्हें लागू करना था।
एमपॉवर्ड ग्रुप 6 की ज़िम्मेदारी निजी क्षेत्र, सरकारी उद्यमों और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के बीच समन्वय करना था। इस कमेटी ने 1 अप्रैल 2020 को ही ऑक्सीजन की कमी की चेतावनी दे दी थी। एक साल बाद ठीक इसी दिन देश कोरोना की दूसरी लहर आई जब एक ही दिन में 53 हज़ार कोरोना मामले सामने आए।
इतना सब कुछ होने के बावजूद ऑक्सीजन का औद्योगिक इस्तेमाल होता रहा, इसकी ढुलाई के लिए कोई खास इंतजाम नहीं किया गया, ऑक्सीजन की माँग बढ़ती गई, उसकी किल्लत बढ़ती गई और जल्द ही इसके लिए हाहाकार मचने लगा। आज हालात यह है कि हास्पिटल आक्सीजन की कमी की वजह से काल गृह बन गए है। ऑक्सीजन की कमी के कारण पंजाब के अमृतसर में फतेहगढ़ चूड़ियां रोड पर स्थित नीलकंठ अस्पताल में 6 मरीजों की मौत हो गई है।
दिल्ली के रोहिणी में स्थित जयपुर गोल्डन अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के चलते 20 मरीजों की मौत हो गई है।अस्पताल के एमडी ने यह जानकारी दी हैं कि ऑक्सीजन की कमी से गोल्डन अस्पताल में 20 मरीजों की मौत हो गई । देर शाम इन मरीजों ने ऑक्सीजन की कमी की वजह से अपना दम तोड़ दिया।इस अस्पताल में अब सिर्फ आधे घंटे की ऑक्सीजन बची है।
यहां 200 मरीज हैं, जिनमें से 80 प्रतिशत ऑक्सीजन पर हैं तथा 35 आईसीयू में हैं। अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि मरीजों के लिए 3600 लीटर ऑक्सीजन की जरूरत थी, लेकिन रात 12 बजे तक सिर्फ 1500 लीटर ही आपूर्ति की गई। जबकि इससे पहले दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में पिछले 24 घंटे में गंभीर रूप से बीमार 25 कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत हो गयी है । यही नहीं बल्कि यहा 60 ऐसे और मरीजों की जान भी खतरे में है।
एक दिन पहले ही महाराष्ट्र के पालघर में एक हॉस्पिटल में शार्ट सर्किट हो जाने के बाद लगी आग ने 13 मरीजों को मौत की नींद सुला दिया। जबकि इससे दो दिन पहले ही महाराष्ट्र के नासिक में एक हॉस्पिटल में हुए गैस रिसाव से 24 लोगों की मौत हो गई थी।
उधर, इस मामले पर कोरोना से देश के सबसे ज्यादा प्रभावित 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिटिंग की। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऑक्सीजन की कमी का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि यदि दिल्ली में प्लांट नहीं हैं तो क्या उसे सप्लाई नहीं मिलेगी। इसके साथ ही उन्होंने कुछ राज्यों की ओर से दिल्ली के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई को बाधित करने की बात कही थी और उनसे दखल देने की मांग की थी।
गौरतलब है कि ऑक्सीजन हवा और पानी दोनों में मौजूद होती है। लेकिन इसे कृत्रिम रूप से भी बनाया जाता है। ऑक्सीजन प्लांट में हवा में से ऑक्सीजन को अलग किया जाता है। इसके लिए एयर सेपरेशन की तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक से हवा को कंप्रेस करके फिर फिल्टर किया जाता है, ताकि अशुद्धियां उससे निकल जाएं। अब इस फिल्टर हुई हवा को ठंडा करते हैं। इसके बाद इस हवा को डिस्टिल किया जाता है, ताकि ऑक्सीजन को बाकी गैसों से अलग किया जा सके। इस प्रक्रिया में ऑक्सीजन लिक्विड बन जाती है और इसी स्थिति में ही उसे इकट्ठा किया जाता है।
मेडिकल ऑक्सीजन को बड़े कैप्सूलनुमा टैंकर में भरकर अस्पतालों तक पहुंचाया जाता है। अस्पताल में इसे मरीजों तक पहुंच रहे पाइप से जोड़ा जाता है। लेकिन हर अस्पताल में तो ये सुविधा होती नहीं, इसीलिए ऑक्सीजन के सिलेंडर बनाए जाते हैं। इन सिलेंडरों में ऑक्सीजन भरी जाती है और इनको सीधे मरीज के बिस्तर के पास तक पहुंचाया जाता है।