उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सभी पार्टियों ने अलग-अलग जातियों को साधना शुरू कर दिया है। इन राजनीतिक दलों के टारगेट में ओबीसी के साथ ब्राह्मण मतदाता है। सभी सियासी दल सम्मेलन आयोजित कर ब्राह्मण वोट को साधने में जुट गए हैं। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने भी अपनी चुनावी रणनीति एक बार फिर से बदलते हुए बसपा महासचिव सतीश मिश्रा को उत्तर प्रदेश में प्रबुद्ध सम्मेलन आयोजित करवाने का जिम्मा सौंप ब्राह्मण मतदाता को बसपा की तरफ आकर्षित करने की मुहिम शुरू कर दी है। 23 जुलाई को अयोध्या में पहला ऐसा आयोजन किया गया। प्रबुद्ध सम्मेलन के प्रथम चरण का समापन 7 सितंबर को लखनऊ में हुआ। इस कार्यक्रम में बसपा प्रमुख मायावती खुद शामिल हुईं।
मायावती ने अपने भाषण में कहा कि ‘दलित समाज के लोगों पर शुरू से हमें गर्व रहा है कि उन्होंने बिना गुमराह हुए और बहकावे में आए कठिन से कठिन दौर में भी पार्टी का साथ नहीं छोड़ा। दलित समाज के लोग मजबूत चट्टान की तरह पार्टी के साथ खड़े रहे हैं। उम्मीद है कि बहुजन समाज पार्टी से जुड़े अन्य सभी समाज के लोग इसी तरह हमारे साथ खड़े रहेंगे।’
बसपा प्रमुख मायावती ने साथ ही कहा कि ‘अब ब्राह्मण समाज के लोग भी मानने लगे हैं कि भाजपा के प्रलोभन भरे वादों में आकर उन्होंने बहुमत की सरकार बनाकर बहुत बड़ी गलती की है। बहुजन समाज पार्टी की सरकार ने ब्राह्मण समाज के साथ सुरक्षा, सम्मान, तरक्की के मामले में हर स्तर पर अनेक ऐतिहासिक कार्य किए हैं।’
मायावती ने कार्यक्रम में कहा कि हमारी सरकार बनती है तो वो अब सिर्फ यूपी के विकास पर ध्यान देगी न कि पार्क और स्मारक बनाने पर। इस दौरान उन्होंने आरएसएस प्रमुख पर हमला बोलते हुए कहा ‘मैं उनसे पूछना चाहती हूं कि अगर भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के पूर्वज एक जैसे हैं तो आरएसएस और उनकी बीजेपी मुसलमानों के साथ सौतेला व्यवहार क्यों करते हैं?
क्यों महत्वपूर्ण हैं उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की संख्या लगभग 13 प्रतिशत है। इसलिए सभी राजनीतिक पार्टियां ब्राह्मण समाज को साधने के प्रयास कर रही हैं। बता दें कि उत्तर प्रदेश में सत्ता की चाबी 13 प्रतिशत ब्राह्मण और 23 प्रतिशत दलित के हाथों में होती है। 2007 में बहुजन समाज पार्टी ने 403 सीटों में से 206 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। तब उसे राज्य में ब्राह्मण समाज का जबरदस्त साथ मिला था।
ब्राह्मण और भाजपा
देश में ‘मंडल’ और ‘कमंडल’ की राजनीति से पहले उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण कांग्रेस पार्टी के साथ थे। जैसे ही भाजपा ने देश में राम जन्मभूमि आंदोलन की शुरुआत की धीरे-धीरे कांग्रेस राज्य में कमजोर होती गई। 1993 से 2004 तक जब प्रदेश में किसी एक दल को बहुमत नहीं मिल पाया था, तब भाजपा को ब्राह्मणों का समर्थन मिला।
लोकनीति और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) के अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2004 तक आधे से अधिक ब्राह्मण मतदाताओं ने हमेशा भाजपा को वोट दिया। हालांकि 2007 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के लिए ब्राह्मणों का समर्थन 40 प्रतिशत से कम हो गया इस समाज का एक बड़ा वर्ग बसपा का समर्थक बन गया था।
सीएसडीएस के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में 2014 के बाद समीकरण फिर से बदल गए। 2014 के लोकसभा चुनाव ब्राह्मणों के 72 फीसदी तो 2019 के लोकसभा चुनाव में 82 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे। वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में 80 फीसदी ब्राह्मणों ने भाजपा को वोट किया था।
भाजपा से ब्राह्मणों की नाराजगी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ब्राह्मण मतदाताओं में भाजपा के प्रति इस बार भारी नाराजगी है। खास तौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर नाराजगी ज्यादा देखी जा रही है। विकास दुबे एनकाउंटर मामले पर योगी सरकार कठघरे में है। ब्राह्मण समाज का मानना है कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था सुधारने के बहाने उन पर अन्याय किया गया है। ऐसी स्थिति में उत्तर प्रदेश के अन्य राजनीतिक दल नाराज ब्राह्मण को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं।