मणिपुर में जारी हिंसा के शुरुआती दौर से ही प्रधानमंत्री मोदी ने खामोशी अख्तियार कर यहां की जनता को नाराज करने का काम किया जिसका बड़ा असर 2024 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिलता है। प्रधानमंत्री की मणिपुर को लेकर खामोशी पर विपक्ष हमलावर रहा। हिंसा की आग में जल रहे मणिपुर पर प्रट्टाानमंत्री की खामोशी अंततः पूरे एक साल बाद राज्यसभा में टूटी थी तब प्रट्टाानमंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान मणिपुर के हालातों पर चिंता व्यक्त करते हुए सदन को आश्वस्त करने का प्रयास किया था और कहा कि वहां के हालात सुधरने लगे हैं। राज्य में शांति बहाली के सभी प्रसास किए जा रहे हैं। मोदी का आश्वासन लेकिन धरातल पर सफल नहीं हुआ है और एक बार फिर से मणिपुर सुलगने लगा है
मणिपुर एक बार फिर से हिंसा की आग में उबलने लगा है। गत् सप्ताह यहां के पांच जिलों में इंटरनेट सेवाओं को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने के साथ ही इनमें से तीन जिलों में बेमियादी कर्फ्यू भी लगा दिया गया। हालात इतने विकट हैं कि इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, थौबल, विष्णुपुर और काकचिंग में न केवल मोबाइल इंटरनेट सेवाएं, बल्कि लीज लाइन, ब्राडबैंड और वीपीएन सेवाओं को भी बंद कर दिया गया है। राज्य के गृह विभाग ने इस संबंध में जारी अपने आदेश में कहा है, ‘‘ऐसी आशंका है कि कुछ असमाजिक तत्व जनभावनाओं को उकसाने वाली तस्वीरें, नफरती भाषण और वीडियो संदेश प्रसारित करने के लिए बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं जिससे कानून- व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है।’’ गौरतलब है कि गत् वर्ष भारी हिंसा बाद राज्य में 3 मई से इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था जिसे आठ महीने बाद 3 दिसंबर को बहाल किया गया था। ताजा हिंसा का दौर 7 सितंबर से तब शुरू हुआ जब असम से सटे एक गांव मोंगबुक में संदिग्ध कुकी उग्रवादियों ने मैतई समुदाय के एक बुजुर्ग की उनके घर में घुस हत्या कर दी। इसके बाद फैली हिंसा की चपेट में मणिपुर के कई जिले आ गए। सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार ताजा हिंसा भी मैतई और कुकी जनजाति के बीच जारी जातीय हिंसा का हिस्सा है।
डेढ़ बरस से सुलग रहा है मणिपुर
मणिपुर आज से लगभग डेढ़ बरस पूर्व तब देश और विदेशों तक में चर्चा का विषय बना था जब राज्य की हाईकोर्ट के एक आदेश बाद यहां की दो प्रमुख जनजातियों में भारी संघर्ष छिड़ गया था। 27 मार्च, 2023 को दिए गए इस आदेश में होईकोर्ट ने मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने संबंधी मांग पर सरकार को जल्दी फैसला लेने का निर्देश दिया था। हाईकोर्ट के इस आदेश चलते मैतई और कुकी जनजातियों के मध्य भारी हिंसा शुरू हो गई थी जिसमें 200 से अधिक मारे गए हजारों की संख्या में लोग बेघर हुए और करोड़ों की सार्वजनिक संपत्ति खाक में मिला दी गई थी।
कुकी और मैतई संघर्ष के कारण
मैतई समुदाय मुख्यतः मणिपुर के घाटी क्षेत्र में बसा है। यह समुदाय खुद को आदिवासी (दलित) घोषित किए जाने की मांग करता रहा है। इस मांग को यदि स्वीकार लिया जाता है तो मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में मैतई को जमीन खरीदने के अट्टिाकार मिल जाएंगे। कुकी समुदाय जो पहाड़ी इलाकों में वास करता है अपने विशेष अधिकारों और पहचान की रक्षा के लिए मैतई को दलित दर्जा दिए जाने के सख्त खिलाफ है। दोनों समुदायों के मध्य भूमि का स्वामित्व तनाव की मूल वजह है। राजनीतिक दल समय-समय पर इस विवाद को अनावश्यक बयानबाजी कर मंडराते रहे हैं। 2017 से ही यहां एनडीए गठबंधन की सरकार है जिसका नेतृत्व भाजपा नेता एन. बिरेन सिंह कर रहे हैं। मुख्यमंत्री बिरेन सिंह के प्रति मणिपुर की आम जनता में खासी नाराजगी वर्तमान में देखने को मिल रही है। कुकी समुदाय उन्हें मैतई समुदाय का समर्थक मानता है और आदिवासियों के हितों विरूद्ध काम करने का आरोप लंबे अर्से से लगाता आ रहा है। दूसरी तरफ मैतई समुदाय भी एन. बिरेन सिंह के खिलाफ अब खुलकर आरोप लगाने लगा है।
प्रधानमंत्री मोदी से भी नाराज है मणिपुर में जारी हिंसा के शुरूआती दौर से ही प्रधानमंत्री मोदी ने खामोशी अख्तियार कर यहां की जनता को नाराज करने का काम किया था जिसका बड़ा असर 2024 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिलता है। यहंा की दोनों लोकसभा सीटों को कांग्रेस जीत पाने में न केवल सफल रही, बल्कि एनडीए का मत प्रतिशत मात्र 16 प्रतिशत तक सिमट गया। लोकसभा चुनाव दौरान विपक्ष लगातार प्रधानमंत्री की मणिपुर को लेकर खामोशी पर हमलावर रहा था। 3 मई, 2023 से जल रहे मणिपुर पर प्रधानमंत्री की खामोशी अंततः पूरे एक साल बाद 3 जुलाई, 2024 को राज्यसभा में टूटी थी। तब प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान मणिपुर के हालातों पर चिंता व्यक्त करते हुए सदन को आश्वस्त करने का प्रयास किया था कि अब वहां के हालात सुधरने लगे हैं और राज्य में शांति बहाली के सभी प्रसास किए जा रहे हैं। मोदी का आश्वासन लेकिन धरातल पर सफल नहीं हुआ है और एक बार फिर से मणिपुर सुलगने लगा है।
राहुल ने जीता मणिपुर का दिल
कांग्रेस नेता राहुल गांधी मणिपुर को लेकर प्रधानमंत्री मोदी से कहीं अधिक संवेदनशील रहे हैं। उन्होंने 29 मई, 2023 को मणिपुर का दौरा कर वहां जारी हिंसा और सामाजिक तनाव की बाबत विभिन्न समुदायों से बात की थी। राहुल की इस यात्रा ने न केवल मणिपुर के मुद्दों को राष्ट्रीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय फलक पर उठाने का काम तब किया था।
सुलगते सवाल
मणिपुर की समस्या बेहद जटिल है जिसके मूल में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक पहलू शामिल हैं। मुख्य रूप से मणिपुर तीन सुलगते सवालों से झूझ रहा है जिनके उत्तर तलाशे बगैर यहां स्थाई शांति स्थापित हो पाना संभव नहीं है।
1. जातीय पहचान का संघर्षः मणिपुर में मुख्यतः तीन समुदायों, मैतई, कुकी और नागा के मध्य अपनी सांस्कृतिक पहचान को लेकर संघर्ष रहता आया है। ये समुदाय अपनी पहचान के साथ-साथ आर्थिक संसाधनों के लिए भी संघर्षरत रहते आए हैं।
2. आर्थिक असमानताः विभिन्न समुदायों के मट्टय आर्थिक असमानता एक बड़ा मुद्दा है। यह सवाल उठता है कि कैसे सभी समुदायों के लिए आर्थिक अवसरों का समान वितरण किया जाए। मैतई समुदाय यहां का आर्थिक रूप से मजबूत समाज है तो नागा और कुकी समाज आर्थिक दृष्टि से खासा पिछड़ा हुआ है।
3. भूमि स्वामित्व का संघर्ष: कुकी और नागा बाहुल्य पहाड़ी इलाकों में भूमि स्वामित्व के अधिकारों का मुद्दा वर्तमान हिंसा के पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण है जिसका समाधान ही स्थाई शांति की राह तैयार कर सकता है।
निष्कर्ष
उक्त बुनियादी सवालों का उत्तर ही मणिपुर की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को बेहतर समझने और स्थाई समाधान का एक मात्र मार्ग है। जब तक आर्थिक समानता के अवसर, भूमि अधिकार पर स्पष्ट नीति और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने की छटपटाहट को समझते हुए सभी पक्षों से संवाद कर सर्वमान्य हल नहीं तलाशा जाएगा, मणिपुर उबलता रहेगा और सवाल सुलगते रहेंगे।