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  •  वृंदा यादव, प्रशिक्षु

 

भाजपा एक तरफ जहां मोदी सरकार के 8 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रही है वहीं दूसरी तरफ हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन कर उसने दक्षिण भारत में अपने पांव पसारने की मुहिम छेड़ दी है


देश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा एक तरफ मोदी सरकार के 8 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रही है तो दूसरी तरफ उसने मिशन विस्तार के तहत हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन कर दक्षिण भारत में अपने पांव पसारने की मुहिम छेड़ दी है। राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो 2014 के बाद भाजपा राजस्थान, छत्तीसगढ़, दिल्ली, पंजाब और दक्षिण भारत के राज्यों के विधानसभा चुनावों को छोड़कर अन्य राज्यों में जीत हासिल कर रही है लेकिन भाजपा अभी तक दक्षिण भारतीय राज्यों में अपना जनाधार नहीं बढ़ा सकी है।


पिछले कुछ दशकों में कर्नाटक ऐसा राज्य है जहां भाजपा ने जीत हासिल करना शुरू किया और आज भी वहां भाजपा की सरकार है। केंद्र शासित पुड्डूचेरी में भी सरकार में भाजपा शामिल है। तमाम कोशिशों के बावजूद केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु उसके लिए अभी भी अभेद किले बने हुए हैं।


पिछले कुछ महीने पहले संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में चार राज्यों में मिली जीत से देश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा अब साल के अंत में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ अगले साल होने वाले नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों की तैयारी में जुट गई है। खासकर दक्षिण भारत के राज्यों को लेकर पार्टी सक्रिय नजर आ रही है। इसके लिए हाल ही में पार्टी ने तेलंगाना में 18 साल बाद दो दिवसीय बैठक आयोजित की। इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 350 नेता शमिल हुए। बैठक का उद्देश्य वैसे तो आर्थिक और राजनीतिक प्रस्तावों पर चर्चा का था। लेकिन तेलंगाना की आर्थिक और सामाजिक स्थिति पर भाजपा का फोकस रहा। नरेंद्र मोदी ने इस बैठक में पिछड़े वर्ग को ध्यान रख कहा कि जब तक हर वर्ग की ओर ध्यान नहीं दिया जाएगा तब तक मोदी का तेलंगाना में ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वाश और सबका प्रयास’ का सपना पूरा नहीं हो पाएगा।

 


इस दौरान टीआरएस के परिवारवादी शासन पर व्यंग्य करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि, ‘तेलंगाना के लोग देख रहे हैं कि जब एक परिवार को समर्पित पार्टियां सत्ता में आती हैं, तो कैसे उस परिवार के सदस्य भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा चेहरा बन जाते हैं। परिवारवादी पार्टियां सिर्फ अपना विकास करती हैं, अपने परिवार के लोगों की तिजोरियां भरती है। जहा-जहां परिवारवादी पार्टियां हटी हैं, वहां विकास के रास्ते भी खुले हैं। अब इस अभियान को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी तेलंगाना के मेरे भाइयों- बहनों की है। ‘राजनीतिक वंशवाद के कारण देश के युवाओं, प्रतिभाओं को राजनीति में आने का मौका भी नहीं मिलता। परिवारवाद ऐसे युवाओं के हर सपने को कुचल देता है। राजवंशों से मुक्ति, पारिवारिक पार्टियों से मुक्ति भी 21वीं सदी के भारत के लिए एक संकल्प है।’


तेलंगाना को ही क्यों चुना
वर्तमान में भाजपा ने मुख्य रूप से तेलंगाना को ही अपना लक्ष्य बना रखा है। तेलंगाना को लक्ष्य बनाने का कारण यह है कि तेलंगाना को सत्तारूढ़ टीआरएस सरकार का गढ़ माना जाता है। अगर भाजपा को दक्षिण भारत में अपने पैर जमाने हैं तो इसके लिए उसे सबसे पहले तेलंगाना में अपनी सरकार बनानी होगी।


गौरतलब है कि 2007 में भाजपा ने पहली बार दक्षिण भारत के एक राज्य कर्नाटक में सत्ता स्थपित की थी। उसके बाद से यह दक्षिण भारत के किसी अन्य राज्य मे अपने कदम नहीं जमा पाई है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को तेलंगाना में मात्र 6 .98 फीसदी वोट मिले थे। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति को 41.71 फीसदी वोटों से जीत हासिल हुई तो वहीं बीजेपी को लोकसभा की 4 सीटों पर 19.5 फीसदी वोटों से जीत मिली जो उसके लिए बड़ा बूस्ट साबित हुई। यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा को तेलंगाना राजनीति मे स्थान बना लेने कि पूरी उम्मीद है। जिसके लिए उन्होने अपने कार्यालय में एक बड़ी-सी घड़ी लगा रखी है जिसमें लिखा है कि तेलंगाना सरकार के महज इतने दिन बचे हैं। जिसमे रोज एक-एक दिन कम होता जा रहा है।


तेलंगाना में भाजपा सरकार की बढ़ती लोकप्रियता के कारण तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्र शेखर राव खुद को खतरे में महसूस कर रहे हैं। लेकिन अगर दूसरी ओर से देखा जाए तो इन्होंने खुद यह समस्या पैदा की है। क्योंकि टीआरएस सरकार ने खुद को तेलंगाना में मजबूत बनाने के बदले कांग्रेस को गिराने में अपनी सारी ताकत लगा दी। यह निरंतर कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने का काम कर रही थी जिसके कारण तेलंगाना में कांग्रेस भले ही कमजोर हो लेकिन मौके का फायदा उठाते हुए भाजपा उस खालीपन को भरने के लिए सामने आ चुकी है। हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आने वाले 30 से 40 सालों तक भाजपा का शासन होगा और अगले दशकों में भारत विश्व गुरु बन जाएगा। जल्द ही भाजपा तेलंगाना और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से परिवारवाद को खत्म कर देगी।


विरोध में बोले चंद्रशेखर
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के इस बयान बाद भाजपा और टीआरएस के बीच जंग छिड़ गई है। चंद्रशेखर ने भाजपा को चुनौती देते हुए कहा है ‘मैं तेलंगाना में अपनी सरकार को गिराने के लिए भारतीय जनता पार्टी का इंतजार करूंगा।’ उन्हांने कहा कि ‘हैदराबाद के कुछ केंद्रीय मंत्री दावा कर रहे हैं कि महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की सरकार गिराने के बाद अब तेलंगाना में टीआरएस की सरकार गिरने का वक्त आ गया है। तो ठीक है, हमारी सरकार गिरा दीजिए। मैं भी इस पल का इंतजार करूंगा, ताकि मैं आजाद हो जाऊं और इसके बाद केंद्र की सरकार गिरा दूं।’


लक्ष्य की ओर पहला कदम
भारतीय जनता पार्टी ने दक्षिण भारत में मजबूती से पैर जमाने के अभियान की शुरुआत कर दी है। अगले साल तेलंगाना में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी ने पूरी ताकत लगा रखी है। हैदराबाद में दो दिवसीय कार्यक्रम के बाद अब पार्टी द्वारा किए गए चार राज्यसभा मनोनयन सदस्यों के नामों से साफ हो गया है कि पार्टी के एजेंडे में दक्षिण भारत पहले स्थान पर पर है।
राज्यसभा में पीटी ऊषा, इलैयाराजा, वीरेंद्र हेगड़े और वी विजयेंद्र कुमार के मनोनयन के पीछे पार्टी की बड़ी सोच नजर आती है। इन चारों जानी-मानी हस्तियों के मनोनयन में सबसे उल्लेखनीय पहलू चारों का दक्षिण भारत से होना है।


सियासी जानकारों का मानना है कि इन चारों हस्तियों के मनोनयन के जरिए भाजपा ने दक्षिण भारत में पार्टी को मजबूत बनाने का अपना इरादा जाहिर कर दिया है। हिंदी भाषी राज्य में पार्टी की पकड़ पहले ही दूसरे दलों की अपेक्षा काफी मजबूत है मगर अब पार्टी दक्षिण भारत पर पूरा फोकस करना चाहती है।


राज्यसभा के लिए मनोनीत की गई मशहूर एथलीट पीटी ऊषा का ताल्लुक केरल से है। दलित समाज से ताल्लुक रखने वाले मशहूर संगीतकार इलैयाराजा तमिलनाडु से जुड़े हुए हैं। प्रसिद्ध स्क्रीन राइटर और डायरेक्टर विजयेंद्र प्रसाद आंध्र प्रदेश से जुड़े हुए हैं जबकि वीरेंद्र हेगड़े कर्नाटक के प्रसिद्ध धर्मस्थल टेंपल के के प्रमुख हैं। विजयेंद्र प्रसाद आरआरआर, बजरंगी भाईजान और बाहुबली सीरीज के फिल्मों के लिए जाने जाते हैं।


जानकारों का कहना है कि राज्यसभा में इन चारों प्रमुख हस्तियों के मनोनयन के जरिए भाजपा ने आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और तेलंगाना में समीकरण साधने की शुरुआत कर दी है। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने लगातार ट्वीट करके इन चारों हस्तियों के योगदान की प्रशंसा की और कहा कि इन चारों हस्तियों के मनोनयन से उच्च सदन को नई रोशनी मिलेगी।
दरअसल भाजपा ने दक्षिण भारत के जिन पांच राज्यों पर नजरें टिका रखी हैं उन्हें सियासी नजरिए से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा इन राज्यों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकी थी। इन पांच राज्यों में लोकसभा की 129 सीटें हैं मगर भाजपा इनमें से सिर्फ 30 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी। इनमें से भी 26 सीटें अकेले कर्नाटक से हैं। इससे समझा जा सकता है कि बाकी के चार राज्यों में भाजपा सिर्फ चार सीटें ही जीतने में कामयाब हो सकी।
भाजपा का शीर्ष नेतृत्व दक्षिण भारत के इन राज्यों में पार्टी की कमजोर पकड़ को लेकर चिंतित है और इसीलिए अब दक्षिण भारत पर ज्यादा फोकस किया जा रहा है। भाजपा को दो साल बाद 2024 की बड़ी सियासी जंग में उतरना है। इसलिए पार्टी दक्षिण भारत में अपनी पकड़ को मजबूत बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस के खिलाफ भी पार्टी ने जोरदार अभियान छेड़ रखा है। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हैदराबाद में आयोजित करने के पीछे भी भाजपा की यही सोच रही है।

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