”अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में हम केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य की त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की उपलब्धियों के अलावा मेरे कार्यकाल के दौरान की जा रही विभिन्न पहलों के साथ लोगों के बीच जाएंगे.”
यह कहना है उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का। रावत ने कुमाऊँ दौरे पर मीडिया के समक्ष यह दावा किया है। लेकिन पार्टी के राजनीतिक सूत्रों की मानें तो 2022 में उत्तराखंड में केन्द्रीय हाई कमान असम फार्मूला की तरह रणनीति के तहत काम करेंगे। असम फार्मूला के तहत असम के विधानसभा चुनाव से पूर्व भाजपा ने कोई सीएम चेहरा घोषित नही किया।
असम फॉर्मूला अपनाया के तहत भाजपा ने वहां मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के रहते हुए भी उनको बतौर मुख्यमंत्री पेश नहीं किया गया था। बल्कि चुनाव मैदान में उतरे हेमंत बिस्वा सरमा को परोक्ष रूप से आगे बढ़ाया था। बाद में जब सरकार बहुमत से जीती तो हेमंत बिस्वा सरमा है को ही मुख्यमंत्री बनाया गया।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में महज 8 महीने बाकी है। यहां फरवरी में चुनाव हो सकता है। इससे पहले ही भाजपा ने यहां नेतृत्व परिवर्तन का दांव खेला। पूर्व में यहां त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री थे। करीब साढे 4 साल तक वह सत्ता का सुख भोंगते रहे। इस दौरान प्रदेश में भाजपा विरोधी माहौल बन गया। यहां तक की त्रिवेंद्र सिंह रावत से खुद उनकी सरकार के मंत्री जी नाराज हो गए यह। इसे त्रिवेंद्र सिंह रावत की कार्यप्रणाली से नाराजगी के रूप में देखा गया।
इसके बाद पार्टी हाईकमान ने पोढी के सांसद तीरथ सिंह रावत पर दांव खेला। लेकिन भाजपा का यह दांव फिलहाल उल्टा पड़ता नजर आ रहा है। कारण यह है कि तीरथ सिंह रावत को प्रदेश के लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। वह जिस तरह की बयानबाजी दे रहे हैं, उससे पार्टी को लगता नहीं है कि उनके नाम पर वह 2022 में सत्ता वापसी कर सकती है।
हालांकि पार्टी के आधिकारिक सूत्रों ने अभी तक यह घोषणा नहीं की है कि पार्टी 2022 का चुनाव किस चेहरे पर लड़ेगी। लेकिन यह तय माना जा रहा है कि 2017 की तरह ही उत्तराखंड में एक बार फिर भाजपा बिन चेहरे के ही चुनाव में उतर सकती है।
उत्तराखंड में पार्टी के किसी एक नेता के चेहरे पर दांव न लगाने के पीछे एक रणनीति यह भी मानी जा रही है कि यहां भाजपा में मुख्यमंत्री पद के लगभग आधा दर्जन दावेदार हैं। सभी दावेदार अपने-अपने क्षेत्र के मजबूत नेता माने जाते हैं। ऐसे में पार्टी सामूहिक नेतृत्व के साथ आगे बढ़ सकती है। इसी रणनीति के तहत भाजपा उत्तराखंड में मिशन 2022 की तैयारियों में जुट गई है।
महज 70 सीटों वाला पहाडी राज्य उत्तराखंड छोटा होने के बाद भी राजनीतिक रूप से भाजपा को जीत के लिए काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जब से उत्तराखंड राज्य बना है तब से यहा भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से होता रहा है।
इस विधानसभा चुनाव में इस बार आम आदमी पार्टी ने भी एन्ट्री मारी हैं। आम आदमी पार्टी के कुछ क्षेत्रों में उभार पर भी नजर है। लेकिन वह शायद ही सत्ता के लिए अपनी दावेदारी पेश कर सके। हालांकि यह कहा जा रहा है कि भाजपा और कांग्रेस से टिकट न मिलने पर बहुत से असंतुष्ट नेता आप के टिकट पर चुनाव लड़कर अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी कर सकतें है।