जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की कमान संभाली है तब से पहली बार ऐसा होता दिख रहा है जब राज्य इकाइयों के नेता शीर्ष नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं
देश में इन दिनों एक ओर जहां जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासत गरमाई हुई है। वहीं दूसरी तरफ इसी साल के अंत में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों के साथ-साथ अगले साल होने वाले नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों के चलते हाल में हुआ भाजपा के इस मंथन से अमृत काम विष ज्यादा निकलता नजर आ रहा है। दरअसल, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की कमान संभाली है तब से पहली बार ऐसा होता दिख रहा है जब पार्टी के प्रदेश के नेता अपने शीर्ष नेतृत्व को चुनौती दे रहे हैं या उसके निर्देशों की अनदेखी करके स्वतंत्र राजनीति कर रहे हैं। आमतौर पर भाजपा में इन चीजों में बहुत अनुशासन होता है और नरेंद्र मोदी, अमित शाह के भाजपा की कमान संभालने के बाद यह अनुशासन और सख्त हो गया था। मौजूदा समय में लेकिन ऐसा लग रहा है कि लंबे समय तक केंद्र और राज्यों की सत्ता में रहने और बाहर से बड़ी संख्या में नेताओं के भाजपा में आने से अनुशासन डगमगाने लगा है। बहरहाल, कारण चाहे जो भी हो लेकिन राजस्थान से लेकर कर्नाटक और झारखंड से लेकर पश्चिम बंगाल, बिहार तक में भाजपा के भीतर गुटबाजी चल रही है। इसे खत्म करने के लिए पार्टी नेताओं को लगातार इन राज्यों में दौड़ लगानी पड़ रही है।
गौरतलब है कि पिछले एक महीने में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तीन बार राजस्थान की यात्रा कर चुके हैं। पिछले 15 दिन में ही दो बार नड्डा राजस्थान गए और पार्टी नेताओं के साथ बैठक की। लेकिन प्रदेश के नेता अपनी बातों पर अड़े हुए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का खेमा अपनी इस बात पर कायम है कि पार्टी को उनकी कमान में ही अगला विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए तो दूसरी ओर प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने एलान कर दिया कि अगला चुनाव पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ेगी। उसके बाद से तनाव और बढ़ा है। उधर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की कई दिल्ली यात्राओं और अमित शाह की कर्नाटक यात्रा के बाद भी मामला सुलझ नहीं पा रहा है। मुख्यमंत्री बोम्मई और प्रदेश अध्यक्ष नलिन कुमार कतिल का कोई खास मतलब नहीं दिख रहा है। एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा हैं तो दूसरी ओर भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष हैं। झारखण्ड में एक पूर्व मुख्यमंत्री जेएमएम-कांग्रेस की सरकार गिरा कर किसी तरह से अपनी सरकार बनाने के पक्ष में हैं तो दो पूर्व मुख्यमंत्री और अन्य कई नेता मध्यावधि चुनाव चाहते हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस से आए नेताओं के सहारे भाजपा चल रही है और उसके नेता एक-एक करके पार्टी छोड़ रहे हैं। बिहार में भाजपा के नेता नीतीश कुमार समर्थक और नीतीश कुमार विरोधी खेमे में बंटे हुए हैं।
मौजूदा समय में पार्टी के भीतर गुटबाजी सबसे ज्यादा राजस्थान में देखने को मिल रही है। दरअसल, पिछले कई महीनों से भाजपा की राजस्थान इकाई के भीतर की दरार पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के लिए चिंता का विषय रही है। यही वजह है कि पिछले सप्ताह राज्य में हुई राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक के दौरान यह मुद्दा अंदर ही अंदर हावी रहा। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इस साल दिसंबर में चुनाव होने हैं लेकिन बीजेपी ने कई कारणों से इन राज्यों के बजाय राजस्थान में अपने पदाधिकारियों की बैठक आयोजित करने का विकल्प चुना।
इसके अलावा भाजपा के भीतर की लड़ाई को एक और महत्वपूर्ण कारक कहा जाता है और जयपुर में कॉन्क्लेव आयोजित करने का उद्देश्य दरार से निपटने के लिए एक और अवसर पैदा करना था। इन प्रयासों के तहत, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पिछले कुछ हफ्तों में राज्य के तीन दौरे किए। 19-21 मई तक तीन दिवसीय पदाधिकारियों की बैठक में शामिल होने से पहले वे 10-11 मई को राजस्थान के गंगानगर और हनुमानगढ़ के दो दिवसीय दौरे पर थे। इससे पहले जेपी नड्डा ने 19 अप्रैल को दिल्ली में राजस्थान के वरिष्ठ भाजपा नेताओं-पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, राज्य इकाई के प्रमुख सतीश पूनिया और जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत के साथ बैठक की थी। पार्टी सूत्रों के मुताबिक 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की राजस्थान इकाई में मतभेद पार्टी के लिए रोड़ा बन सकते हैं। राजे, पूनिया, शेखावत और पूर्व गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया सीएम पद के दावेदार बताए जा रहे हैं।
फिर सक्रिय हुई वसुंधरा
वसुंधरा राजे एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हो गई हैं। हाल में हुए भाजपा के सम्मेलन में वह सबसे आगे दिखी। जबकि उस घटनाक्रम से अलग रहीं, जब तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ विद्रोह किया था और भाजपा ने कथित तौर पर सरकार को गिराने के लिए गहलोत पर हमला किया था। राजे भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। वह जयपुर में 19-21 मई तक तीन दिवसीय सम्मेलन के दौरान सभी कार्यक्रमों में भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा के साथ मौजूद थी। पूरे राजस्थान में अपनी पकड़ रखने वाली भाजपा की एकमात्र नेता राजे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान पार्टी के प्रचार अभियान में अहम भूमिका निभा सकती हैं।
2018 में पिछले राज्य चुनाव हारने के लगभग चार साल बाद सक्रिय मोड़ पर लौटने की चर्चा तब शुरू हुई जब उन्होंने उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्रियों की शपथ ग्रहण समारोह में भाग लिया। राजे ने बजट सत्र के दौरान संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी।
गौरतलब है कि भाजपा को 2023 में राजस्थान की सत्ता में लौटने की उम्मीद है। भाजपा ने 2014 और 2019 में राज्य की सभी 25 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। 2018 के राज्य चुनावों के दौरान राजे के खिलाफ काफी नाराजगी थी, लेकिन तब से लगता है कि स्थिति में सुधार हुआ है। अतीत में, राजे ने राज्य में प्रमुख पदों पर अपनी पसंद के नेताओं को नियुक्त करने के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के प्रयासों को विफल कर दिया था।