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भाजपा का गहराता संकट

पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव केंद्र और इन पांच राज्यों में से चार में सत्ताधारी भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुके हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का लगातार बढ़ रहा जनाधार, उत्तराखण्ड में कांग्रेस से मिल रही जबरदस्त टक्कर और गोवा, मणिपुर तथा पंजाब में मुकाबले का बहुकोणीय होना भाजपा नेतृत्व की चिंताओं में इजाफा कर रहा है। यदि इन पांच राज्यों में भाजपा का प्रदर्शन कमतर रहता है तो इसका सीधा असर वर्ष के अंत में प्रस्तावित हिमाचल और गुजरात के विधानसभा चुनावों पर तो पड़ेगा ही, 2024 में प्रस्तावित आम चुनाव में भी विपक्ष साझी रणनीति बना भाजपा को करारी टक्कर देने की स्थिति में आ जाएगा

 

देश में राजनीतिक पारा चरम पर है। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी है। सभी राजनीतिक पार्टियां इन राज्यों में सक्रिय हैं। लेकिन सबकी निगाहें उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई हैं। पिछले एक साल तक चले किसान आंदोलन, लखीमपुर खीरी घटना, लगातार बढ़ती महंगाई उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखण्ड में अहम मुद्दा है। उत्तर प्रदेश में विशेषकर इन घटनाओं के चलते सत्तारूढ़ भाजपा बैकफुट पर जाती नजर आ रही है। समाजवादी पार्टी समेत सभी राजनीतिक दल इन्हें अपने पक्ष में भुनाने में जुटे हैं। इन चुनावों को 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल भी माना जा रहा है। इसलिए राजनीतिक दृष्टि से यह काफी अहम है।

केंद्र और राज्यों के सत्ताधारी दलों के लिए यह चुनाव काफी मायने रखते हैं। भाजपा नेतृत्व इन चुनावों को बेहद गंभीरता से ले रहा है। पांच चुनावी राज्यों में से चार में पार्टी सत्ता में है। इसलिए पार्टी को अपनी सत्ता बचाने की सबसे बड़ी चुनौती है। भाजपा इन राज्यों में वापसी कर 2024 में होने वाले आम चुनाव के लिए सत्ता विरोधी माहौल को कम कर सकेगी। गौरतलब है कि जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर में भाजपा सत्ता में है। भाजपा नेतृत्व ने हाल में जिन राज्यों में चेहरे को बदला है, उसे पार्टी की भावी रणनीति के मद्देनजर महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसके जरिए पार्टी ने अपने सत्ता विरोधी माहौल को खत्म करने की कोशिश की है।

दरअसल, कोरोनाकाल में लोगों की बढ़ी दिक्कतों के बाद सरकार और मंत्रियों को लेकर नाराजगी देखने को मिली थी। इन नाराजगियों को दूर करने के लिए कृषि कानूनों को वापस लिया गया। उत्तराखण्ड में दो बार मुख्यमंत्री का चेहरा बदला गया। इस बदलाव के साथ पार्टी लोगों में फिर से विश्वास जगाना चाहती है। आमतौर पर चुनाव स्थानीय और तत्कालीन मुद्दों पर होते हैं। लेकिन इनके जरिए राजनीतिक दल जनता की नब्ज को भी टटोलती है। जिसे आगे के महत्वपूर्ण चुनावों में रणनीति बनाने में महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए भी भाजपा सहित विपक्षी दलों के लिए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। जनता राज्य सरकारों के कामकाज पर अपना फैसला देगी। यह भविष्य की राजनीतिक संकेत भी होंगे। यदि भाजपा की इन चुनावों में शिकस्त होती है तो विपक्ष एकजुट होने का प्रयास कर 2024 में मोदी का मुकाबला करने की रणनीति पर काम करेगा।

पांच में से चार राज्यों पंजाब, उत्तराखण्ड, गोवा और मणिपुर में कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए लड़ाई लड़ रही है। वहीं उत्तर प्रदेश में वह प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व में पहले से बेहतर करने की उम्मीद पाले है। अभी पंजाब में कांग्रेस की सरकार है। इसलिए यह चुनाव कांग्रेस के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। यदि कांग्रेस चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करती है तो न पार्टी के अंदर हाईकमान के प्रति बढ़ती नाराजगी कम होगी, बल्कि विपक्षी दलों में भी पार्टी की स्वीकार्यता बढ़ेगी। यदि वह एक से अधिक राज्यों में वापसी नहीं कर पाती है तो भविष्य में उसकी मुश्किलें और बढ़ेंगी। पंजाब और गोवा में आम आदमी पार्टी भी लंबे समय से प्रयासरत है। इस बार उसने उत्तराखण्ड में भी अपनी पैठ बढ़ाई है। पंजाब पर उसकी उम्मीदें टिकी हैं। यदि उसे सफलता मिलती है तो वह पहली क्षेत्रीय पार्टी होगी जो दूसरे राज्य में भी सरकार बनाने में कामयाब होगी।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो उत्तर प्रदेश का चुनाव सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। भाजपा ने पिछली बार प्रचंड बहुमत से विधानसभा चुनाव जीते थे। लेकिन इस बार उसके लिए चुनौतियां कम नहीं हैं। पिछला चुनाव जहां उसके लिए एकतरफा जीत वाला साबित हुआ था। इस बार का चुनाव दोकोणीय होता नजर आ रहा है, जबकि मौजूदा राजनीतिक हालात में त्रिकोणीय या बहुकोणीय चुनाव भाजपा के लिए कहीं ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता था। लेकिन अभी तक की जो स्थिति है, उसमें भाजपा-सपा आमने-सामने दिख रहे हैं।

उत्तराखण्ड में भी भाजपा को कांग्रेस से कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। राज्य में भाजपा ने तीन मुख्यमंत्री बदले हैं लेकिन इसके बावजूद उसका मुकाबला कड़ा है। पंजाब में भाजपा के साथ अकालियों का साथ नहीं है। इस दफा कैप्टन अमरिंदर नए साथी बने हैं। इसलिए वहां मुकाबला कांग्रेस और आप के बीच होता दिख रहा है। चुनाव से ठीक पूर्व दलित मुख्यमंत्री बनाकर और लोक लुभावन घोषणाएं करके कांग्रेस ने जनता की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की है। हालांकि गोवा में मुख्य मुकाबला भाजपा-कांग्रेस के बीच रहता आया है। इस बार आप और तृणमूल कांग्रेस ने उसे रोचक बना दिया है। ऐसे में भाजपा को बढ़त मिलती दिख रही है। मणिपुर में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार है। लेकिन कांग्रेस वहां भाजपा को चुनौती दे रही है। केंद्र में आने के बाद भाजपा ने पूर्वोत्तर पर विशेष रूप से ध्यान दिया है। इसलिए मणिपुर में उसे अपनी मौजूदा स्थिति को बनाए रखना बेहद जरूरी है।

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