पिछले 1 सप्ताह से उत्तर प्रदेश की सियासत का तापमान अचानक बढ़ गया है । कहा जाने लगा है कि 8 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर योगी सरकार कैबिनेट विस्तार करने जा रही है । कोरोना में जिन मंत्रियों का निधन हुआ उनकी खाली सीट भी भरी जाएगी । साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चहेते पूर्व नौकरशाह के को यूपी में महत्वपूर्ण पद पर नवाजा जाएगा । कल जिस तरह से प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल मध्य प्रदेश से दौरे को अधूरा छोड़कर वापस आई और करीब 45 मिनट तक मुख्यमंत्री योगी से बातचीत की उससे चर्चाओं को बल भी मिल गया है।
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव में भाजपा दूसरे नंबर पर रही। जबकि पहले नंबर पर समाजवादी पार्टी ने स्थान बनाया। इसके साथ ही सत्तारूढ़ भाजपा में बेचैनी बढ़ गई। जो भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में एक बार फिर से अपनी सरकार बनाने की मंशा पाले हुई थी वह धराशाई हो गई। इसी के साथ प्रदेश में रही सही कसर कोरोना बीमारी के बढ़ते प्रकोप में निकाल दी। जिसमें प्रदेश सरकार विफल रही ।
अधिकतर मरीज बिना इलाज के स्वर्ग सिधार गए। जबकि प्रदेश सरकार पर आरोप लगा कि वह अस्पतालों में मरीजों को बेड तक नहीं दिलवा पाई। ऑक्सीजन नहीं मिली, वेंटिलेटर तक नहीं मिलने के कारण बहुत से मरीजों की जान चली गई।
एक डिप्टी सीएम प्रदेश अध्यक्ष तो दूसरा बनेगा राज्यपाल
ऐसे में यूपी सरकार को मिशन 2022 की चिंता सताने लगी है। फिलहाल 8 महीने बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार को मंत्रिमंडल विस्तार की जरूरत पड़ गई है । अधिकतर भाजपाइयों की राय है कि मंत्रिमंडल विस्तार के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने बेहद करीबी और नौकरशाह और विधान सदस्य अरविंद शर्मा यानी एके शर्मा को यूपी की सियासत में सत्ता हासिल कराने की मंशा पाले हुए हैं। उनकी मंशा पूरी भी हो रही है। अरविंद शर्मा को यूपी में कैबिनेट में महत्वपूर्ण मंत्रालय के साथ ही डिप्टी सीएम बनाने की चर्चा है । जबकि चर्चा यह भी है कि उत्तर प्रदेश के दोनों डिप्टी सीएम हटाए जा रहे है। जिनमें एक डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मोर्य को यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा रहा है तो दूसरे दिनेश शर्मा को किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाने का आश्वासन दिया गया है।
क्यों आवश्यक है मंत्रिमंडल में बदलाव
1-राज्य सरकार में पार्टी के कुछ ऐसे नेता मंत्री पद पर विराजमान हैं जो सरकार से बेहतर काम संगठन में करते रहे हैं।
2-विधानसभा चुनाव होने में अब केवल कुछ समय ही बचा है ऐसे में संगठन को मजबूत करने का यही अवसर है।
3-पंचायत चुनाव में जिन मंत्रियों के क्षेत्र में पार्टी का कमजोर प्रदर्शन रहा है उस क्षेत्र को कैसे मजबूत किया जाए।
4-मंत्रिमंडल में जातीय समीकरण में बदलाव की जरूरत को देखते हुए फेरबदल की जरूरत है।
5-संगठन में कुछ ऐसे पदाधिकारी हैं जिन्होंने संगठन में रहकर काफी परिश्रम किया है और अब तक सत्ता का सुख नही मिल पाया है। उनके सरकार में आने से कार्यकर्ताओं में अच्छा संदेश जाएगा।
क्यों नहीं है मंत्रिमंडल में फेरबदल की जरूरत
1- कोरोना काल का दौर चल रहा है। यदि फेरबदल होता है राज्य सरकार को घेरने का विपक्ष को अच्छा मौका मिल जाएगा।
2-जिसे मंत्रिमंडल से हटाया जाएगा उसके क्षेत्र के कार्यकर्ताओं की नाराजगी का असर विधानसभा चुनाव में पडे़गा।
3-चुनाव होने का समय बेहद कम बचा है इसलिए अब इस तरह का जोखिम पार्टी हाईकमान लेना नहीं चाहेगा।
4 -क्षेत्रीय व जातीय समीकरण में असंतुलन होने से एक बडे़ वोट बैंक से पार्टी हाथ धो सकती है।
5- संगठन व सरकार में तालमेल बिगड़ने की पूरी संभावना रहेगी जिसका असर विधानसभा चुनाव में पड़ सकता है।
हो सकते हैं 60 मंत्री
गौरतलब है कि यूपी सरकार में फिलहाल 54 मंत्री हैं, 23 कैबिनेट मंत्री, 9 स्वतंत्र प्रभार मंत्री और 22 राज्यमंत्री शामिल हैं। कोरोना के चलते योगी कैबिनेट के तीन मंत्रियों का निधन हो चुका है। हाल ही में राज्यमंत्री विजय कुमार कश्यप का निधन हुआ था तो कोरोना की पहली लहर में मंत्री चेतन चौहान और मंत्री कमला रानी वरुण चल बसे थे। नियम के मुताबिक, यूपी में कैबिनेट मंत्रियों की अधिकतम 60 मंत्री हो सकते हैं, इस लिहाज से अभी 6 पद खाली हैं। याद रहे कि 19 मार्च 2017 को सरकार गठन के बाद 22 अगस्त 2019 को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने मंत्रिमंडल विस्तार किया था। उस दौरान उनके मंत्रिमंडल में 56 सदस्य थे।