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नीतीश से चिंतित भाजपा 

अगले दो तीन महीनों यानी जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सियासत गरमाने लगी है। चुनाव को लेकर देश की सत्ताधारी भाजपा ने राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। सबसे पहले पार्टी की ओर से जिन नेताओं से संपर्क किया गया है उनमें पहला नाम नीतीश कुमार का है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि नीतीश कुमार भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री हैं फिर भाजपा को उनकी चिंता क्यों करनी पड़ रही है ? जबकि नीतीश कुमार के पास महज 45 विधायक हैं, और भाजपा 78 विधायकों के साथ बिहार विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी है इसके बावजूद उसने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया है। इसलिए कायदे से उसे नीतीश कुमार की चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन भाजपा को सबसे ज्यादा चिंता उन्हीं की है। इसके लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्री और बिहार के पूर्व प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान को पटना भेजा गया।

 

  इस दौरान बिहार प्रदेश भाजपा के नेता इस मामले से दूर रहे। प्रधान ने इस मुलाकात के दौरान करीब दो घंटे नीतीश कुमार के साथ बिताए। कहा जा रहा है कि उन्होंने राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनाव के बारे में नीतीश से बात की। इस बात की भी चर्चा है कि दोनों के बीच नीतीश की भूमिका को लेकर भी बातचीत हुई। दरअसल पिछले कुछ दिन से यह चर्चा है कि नीतीश बिहार छोड़ कर केंद्रीय भूमिका में जा सकते हैं। उनके एक, अणे मार्ग खाली कर सात, सरकुलर रोड जाने से भी इस चर्चा को बल मिला है।

 
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो भाजपा की चिंता का असल मुद्दा  नीतीश कुमार का ट्रैक रिकॉर्ड है। उन्होंने राष्ट्रपति के पिछले दो चुनावों में गठबंधन से अलग हट कर वोट किया था।  वर्ष 2012 में राष्ट्रपति चुनाव के समय नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा थे लेकिन उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया था। इसी तरह 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के समय नीतीश राजद और कांग्रेस के महागठबंध का हिस्सा थे, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का समर्थन किया था, जबकि कांग्रेस ने बिहार की दलित नेता मीरा कुमार को उम्मीदवार बनाया था। इसी ट्रैक रिकॉर्ड को लेकर भाजपा चिंतित है।
 
गौरतलब है कि नीतीश कुमार ने जब दूसरी बार यानी 2017 में जब महागठबंधन की बजाय एनडीए का समर्थन किया था तभी वे एनडीए में वापस भी लौटे थे। जुलाई 2017 में ही राष्ट्रपति का चुनाव हुआ, जिसमें उन्होंने कोविंद का समर्थन किया और जुलाई के आखिर में वे एनडीए में लौट गए। इस बार भी कहीं ऐसी कहानी न दोहराई जाए इसलिए भाजपा पहले से घेराबंदी कर रही है। नीतीश को पता है कि उनके पास भले 45 विधायक हैं लेकिन उनके बगैर किसी की सरकार नहीं बनेगी। वे जिधर जाएंगे उधर की सरकार बनेगी। इसलिए भीतर – भीतर  भाजपा को चिंता है कि कहीं 2017 की तरह उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के साथ गठबंधन बदल लिया तो राज्य में राजद, कांग्रेस गठबंधन की सरकार बन सकती है और अगला लोकसभा चुनाव जीतना भाजपा के लिए मुश्किल हो सकता है। तभी भाजपा की भागदौड़ राष्ट्रपति चुनाव के लिए नहीं है, बल्कि बिहार की सरकार और आगे की चुनावी संभावना के लिए है।

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