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राजस्थान में भाजपा के भीतर जबर्दस्त घमासान चल रहा है। पार्टी के एक गुट की रणनीति है कि वसुंधरा राजे किसी भी तरह से 2023 का चेहरा न हों। दूसरी तरफ वसुंधरा राजे के समर्थकों ने एक ऐसी मजबूत टीम खड़ी कर ली है, जिसे भाजपा के समानांतर एक नए संगठन की तरह देखा जा रहा है

राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुधरा राजे सिंधिया एक बार फिर अपनी पार्टी से नाराज हैं। इस बार कारण बना है राजस्थान में विधानसभा उपचुनाव। राजस्थान में आगामी 17 अप्रैल को विधानसभा की तीन सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं। इनके लिए पार्टी ने अपने मजबूत प्रत्याशी मैदान में उतार दिए हैं। विधानसभा उपचुनाव जीतने के लिए सत्तासीन कांग्रेस भी पूरी जान लगा रही है। जिसके मद्देनजर कांगे्रस ने अपनी पार्टी के नाराज चल रहे युवा नेता सचिन पायलट तक को मना लिया है। लंबे समय से जो सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत दूरियां बनाए हुए थे, वे अब अचानक एक साथ आ गए हैं। दोनों एक साथ हेलिकाॅप्टर के जरिए चुनावी रैलियों में पहुंच रहे हैं। चुनाव के लिए कांग्रेस एकजुट हो चुकी है, लेकिन राजस्थान भाजपा ने अभी तक एकजुटता के प्रयास तक नहीं किए गए हैं, जबकि भाजपा सीटें जीतने का दावा कर रही है। माना जा रहा है कि यह तीनों विधानसभा सीटों का चुनाव आगामी 2023 के विधानसभा चुनाव का रुख तय करेगा।

राजस्थान भाजपा यह उपचुनाव पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के बिना जीतकर दिखाने की कोशिश में जुटी है। सिंधिया विरोधी गुट यह दिखाना चाहता है कि आगामी 2023 का विधानसभा चुनाव सिंधिया को चेहरा बनाए बिना ही जीता जा सकता है। शायद यही वजह है कि उपचुनाव के पोस्टरों में भाजपा ने वसंुधरा राजे के फोटो तक नहीं लगाए हैं। इससे वसुंधरा राजे सिंधिया नाराज हो गई हैं। वे अपनी पार्टी के प्रत्याशियों की नामांकन रैलियों में नहीं गई हैं। राजस्थान में भाजपा की गुटबाजी उस समय खुलकर सामने आई थी जब पिछले साल सचिन पायलट ने अपनी ही पार्टी के प्रति बगावती सुर अपनाए थे। सचिन पायलट के बारे में कहा जाने लगा था कि वह ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह ही कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाएंगे?

जोरों से चर्चा चली थी कि 20-25 विधायकों को साथ लेकर सचिन पायलट भाजपा के सहयोग से सरकार बनाएंगे। तब यह भी कहा गया कि भाजपा के केंद्रीय नेता भी इसके लिए तैयार थे। लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया तैयार नहीं थी। उन्होंने अपनी पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति के खिलाफ काम किया। उन्होंने अंदरखाने कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अपना समर्थन देने की योजना तक बना ली थी। वसुंधरा राजे सिंधिया को तब यह लगने लगा था कि अगर सचिन पायलट भाजपा में आ जाएंगे तो राज्य में उनकी राजनीति खत्म हो सकती है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि राजस्थान की विधानसभा में कुल 200 सदस्य हैं जिनमें कांगे्रस के 101 थे जो अब बसपा से आए छह विधायकों के साथ 107 की संख्या में हो गए हैं। इसके अलावा 75 विधायक भाजपा के पास हैं। जिनमें 72 भाजपा के और 3 विधायक आरएलपी के हैं।

कहा जाता है कि 73 विधायकों में से अधिकतर वसुंधरा राजे सिंधिया के समर्थक हैं। इसके चलते ही पिछले साल सचिन पायलट को मुख्यमंत्री चेहरा बनाने की रणनीति से पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को कदम पीछे खींचने को मजबूर होना पड़ा था। ऐसे में अगर केंद्रीय नेतृत्व भूलकर भी सचिन को पार्टी में ले आता और मुख्यमंत्री बनाने की कोशिश करता तो वसुंधरा की जिद्द के आगे असफल साबित हो जाता। सब जानते हैं कि सिंधिया घराने के राजनेताओं में सबसे ज्यादा जिद्दी वसुंधरा राजे को ही माना जाता रहा है। यह वही वसुंधरा हंै जिन्होंने पार्टी के सीनियर लीडर और तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के आगे घुटने नहीं टेके थे। एक बार राजनाथ सिंह भी पार्टी के मुखिया रहते वसुंधरा की जिद्द से अच्छी तरह वाकिफ हो चुके थे। एक बार फिर कुछ ऐसी ही जिद्द वसुंधरा ने तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव में कर दी है जिसमें वह चुनाव प्रचार में रुचि नहीं ले रही हैं।

फिलहाल चुनावी पोस्टरों से वसुंधरा राजे सिंधिया के फोटो गायब होना भी सियासी चर्चा का केंद्र बना हुआ है। इस सबसे आजीज आकर अब वसुंधरा अपनी अलग दाल पकाने की तैयारियों में हैं।उनके समर्थकों ने तो बकायदा भाजपा के समानांतर एक नया संगठन खड़ा कर दिया है जिसका नाम दिया गया है वसुंधरा राजे समर्थक राजस्थान मंच। इसके अलावा दूसरा संगठन है टीम वसुंधरा। वसुंधरा राजे समर्थक राजस्थान मंच ने तो बकायदा हर जिले में अपने अध्यक्ष बना डाले हैं। इनमें युवा संगठन भी है और महिला संगठन भी। भाजपा में यह पहली बार है जब पार्टी संगठन के समानांतर एक नया संगठन बनाया गया है।

गौरतलब है कि 17 अप्रैल को होने वाले तीन विधानसभा सीटों के उपचुनाव में भाजपा ने सहाडा में रतनलाल जाट, सुजानगढ़ में खेमाराम मेघवाल एवं राजसमंद में दीप्ति महेश्वरी को पार्टी प्रत्याशी बनाया है। डाॅ रतनलाल जाट भाजपा के पुराने नेता हैं और राज्यमंत्री रह चुके हैं। खेमाराम मेघवाल सुजानगढ़ सीट से ही विधायक और राज्य में मंत्री रह चुके हैं। मेघवाल की पत्नी मनभरी देवी पिछले साल हुए चुनाव में पंचायत समिति प्रधान चुनी गई थी। आजादी के बाद सुजानगढ़ में पहली बार भाजपा का प्रधान बना था। भाजपा ने तीनों ही उम्मीदवार मजबूत उतारे हैं, लेकिन देखना यह होगा कि चुनाव में वह कितनी मजबूती बना पाते हैं।

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