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मलिक के भंवरजाल में फंसती भाजपा

  •         विजय साहनी

 

जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक एक के बाद एक खुलासे कर रहे हैं जिससे केंद्र सरकार और भाजपा की मुसीबतों में लगातार इजाफा हो रहा है। भाजपा उनके आरोपों को अभी तक नजरअंदाज करती आई है। अब लेकिन पुलवामा मामले को लेकर पत्रकार करण थापर और रवीश कुमार संग मलिक की बेबाक बातचीत ने भाजपा और केंद्र सरकार को डिफेंसिव मोड में ला दिया है। दोनों ही समझ नहीं पा रहे हैं कि मलिक के आरोपों का जवाब कैसे दिया जाए

किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की शागिर्दी में अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले सतपाल मलिक 21वीं सदी की शुरुआत में भाजपा के बगलगीर हो गए थे। उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और फिर मोदीकाल में राज्यपाल के पद पर बैठाने वाली भाजपा के लिए लेकिन अब मलिक बागी हो बड़ी मुसीबत का कारण बनते जा रहे हैं। वोट बैंक की राजनीति चलते भाजपा न तो मलिक के खिलाफ कोई कार्रवाई कर पा रही है और न ही उनके द्वारा लगाए जा रहे आरोपों पर खुलकर कुछ बोल रही है। भाजपा और केंद्र सरकार की दुविधा को समझते हुए मलिक अब दोनों को ही ललकारते हुए कह रहे हैं कि वे किसान समुदाय से आते हैं और उनके पीछे जाट समुदाय के लोग और किसान खड़े हैं। यदि भाजपा ने उन्हें नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया तो उसकी दुर्गति हो जाएगी। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या आगामी विधानसभा और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों से ठीक पहले भाजपा सतपाल मालिक पर नकेल कसेगी या फिर वोट बैंक में नुकसान होने के कारण चुप्पी साधे रहेगी।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा को सतपाल मलिक ने ऐसे भंवर जाल में फंसा दिया है कि उसकी स्थिति ऐसी हो गई है जैसे एक तरफ कुआं है तो दूसरी ओर खाई। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से संबंध रखने वाले सतपाल मलिक कई राजनीतिक दलों से जुड़े रहे हैं। सत्तर के दशक में चौधरी चरण सिंह के ‘भारतीय क्रांति दल’ में शामिल होकर उन्हें पहली बार विधायक बनने का अवसर मिला था। इसके बाद उन्होंने कई दलों के साथ अपनी राजनीतिक पारी खेली। अस्सी के दशक में वे कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे। इससे पहले वे ‘लोकदल पार्टी’ से राज्यसभा सदस्य बन चुके थे। कुछ वर्ष तक कांग्रेस पार्टी में रहने के बाद पार्टी छोड़ उन्होंने ‘जन मोर्चा पार्टी’ बनाई। लेकिन वह पार्टी ज्यादा समय तक नहीं रही। नब्बे के दशक में उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया। आखिर में वे भाजपा में आ गए और उन्हें पार्टी के किसान मोर्चे को मजबूत करने का जिम्मा मिला। कुछ समय बाद मलिक को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया। यहीं से पार्टी में उनका कद बढ़ता चला गया और वे कई राज्यों के राज्यपाल बनते गए। लेकिन जब से सतपाल मलिक ने पुलवामा हमले को लेकर कुछ खुलासे किए तब से यह विषय चर्चा का मुद्दा बना हुआ है। दरअसल मलिक ने 2019 के पुलवामा हमले के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार बताते हुए कई सनसनीखेज दावे किए हैं। ख्याति प्राप्त पत्रकार करण थापर और रवीश कुमार के अलग-अलग बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया है कि 2019 में कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुआ हमला सिस्टम की अक्षमता और लापरवाही का नतीजा था। इसके लिए उन्होंने सीआरपीएफ और केंद्रीय गृह मंत्रालय को विशेषतौर पर जिम्मेदार ठहराया। बकौल मलिक सीआरपीएफ ने सरकार से अपने जवानों को ले जाने के लिए विमान उपलब्ध कराने की मांग की थी, लेकिन गृह मंत्रालय ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। सीआरपीएफ का काफिला जाते वक्त रास्ते की उचित तरीके से सुरक्षा जांच न कराने का भी आरोप उन्होंने सरकार पर लगाया है। मलिक ने पुलवामा हमले को लेकर जो खुलासा किया है, उससे भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की छवि को नुकसान पहुंचा है। कांग्रेस एवं दूसरे विपक्षी दल मलिक के बयानों को जमकर भुना रहे हैं।

मलिक किसान आंदोलन के दौरान से ही केंद्र की भाजपा सरकार को लेकर मुखर होने लगे थे। उन्होंने कई अवसरों पर भाजपा और इसके शीर्ष नेतृत्व को अपने बयानों से असहज स्थिति में डाल दिया था। तब बागपत में किसानों की सभा में मलिक ने कहा था कि दिल्ली की सीमाओं पर 700 किसान मारे गए। इतना कुछ होने के बावजूद भी प्रधानमंत्री की तरफ से संवदेना का एक संदेश तक नहीं आया। मेघालय के राज्यपाल रहते हुए उन्होंने यह बयान दिया था कि किसान आंदोलन खत्म नहीं हुआ है। यदि किसानों की मांगें नहीं मानी गईं तो किसान फिर से खड़ा हो सकता है। केंद्र सरकार किसानों को दबाकर नहीं रख सकती। वे अपना हक लेना जानते हैं।

गत वर्ष हरियाणा के जींद में आयोजित एक सम्मान समारोह में भी मलिक ने किसानों से कहा था कि लड़ने से पहले सवालों को समझें। सबसे पहले राज बदलें, फिर एकजुट होकर अपनी सरकार बनाएं।
सियासी जानकारों का भी मानना है कि सतपाल मलिक जाट और किसान समुदाय से जितने समर्थन की अपेक्षा रखते हैं, संभव है कि उन्हें उतना न मिले पर यह बात बिल्कुल सही है कि उन्होंने राज्यपाल के पद पर रहते हुए किसानों के हक की बात की है। गौरतलब है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में जाट समुदाय के मतदाता हैं। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान जाट समुदाय ने भाजपा के समर्थन में मतदान किया था। किसान आंदोलन के चलते लेकिन भाजपा मुश्किल में आ गई थी। राजनीतिक नुकसान से बचने के लिए केंद्र सरकार ने तीनों कृषि कानून को वापस ले लिया था। अब सभी राजनीतिक दल 2024 के लोकसभा चुनाव की रणनीति बना रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि किसानों के मुद्दे पर सरकार पहले से ही बैकफुट पर है और सतपाल मलिक खुलकर किसानों का साथ दे रहे हैं। यदि पार्टी की तरफ से उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई होती है तो इससे जाट बीजेपी से नाराज हो सकते हैं। यूपी में बीजेपी भले ही सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही हो लेकिन जाटों की पार्टी के प्रति नाराजगी दूर नहीं हुई है। ऐसे में पार्टी सीधे तौर पर सतपाल मलिक पर किसी तरह का ऐक्शन लेकर एक महत्वपूर्ण तबके की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहेगी। हालांकि, पार्टी ने जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाकर जाटों की नाराजगी को कम करने का प्रयास तो जरूर किया है। लेकिन इसका असर कितना हुआ है यह अगामी चुनाव में पता लगेगा। राजस्थान में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। वहां भी जाट वोट काफी निर्णायक हैं। ऐसे में पार्टी किसी भी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहेगी।

अडानी मामले में पीएम से मांगा जवाब

पिछले साल जून में सतपाल मलिक ने अडानी कंपनी पर निशाना साधते हुए कहा था कि प्रधानमंत्री कुछ तो बताएं ये कैसे मालदार हो रहे हैं, जबकि लोग बबार्द हो रहे हैं। इससे पहले उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री जी के एक मित्र पानीपत में 50 एकड़ क्षेत्र में गोदाम बनाकर सस्ते भाव में गेहूं खरीदने का सपना पाले हुए हैं। 22 अगस्त 2022 को हरियाणा के नूंह में एक कार्यक्रम में मलिक ने नरेंद्र मोदी सरकार को सीधे निशाने पर लिया। उन्होंने कहा कि एमएसपी लागू नहीं करने के पीछे पीएम नरेंद्र मोदी का मित्र अडानी है। उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों में अडानी एशिया का सबसे अमीर आदमी बन गया है। इसके इशारे पर ही सरकार कार्य कर रही है। उन्होंने आगे कहा कि अडानी को बंदरगाह, एयरपोर्ट जैसी प्रमुख योजनाएं दी गई हैं। एक तरह से देश को बेचने की तैयारी है, लेकिन हम ऐसा न होने देंगे।

मलिक के समर्थन में आई खाप पंचायतें
पिछले हफ्ते हरियाणा समेत देश के अन्य राज्यों की खापें जो कि जाट समुदाय की सर्वोच्च पंचायत व्यवस्था है, सतपाल मलिक से बैठक करने पहुंची थी। जहां पुलिस ने बैठक करने की परमिशन न होने की बात कहते हुए उन्हें रोक हिरासत में लिया। पुलिस कुछ समर्थकों को आरके पुरम थाने में ले गई। जबकि कुछ को कुंजपुरा थाने ले गई थी। जहां से करीब 3 घंटे बाद पुलिस ने उन्हें छोड़ा। मामला मलिक की टिप्पणी के बाद आए सीबीआई की चिट्ठी से जुड़ा हुआ था। बीकेयू प्रधान गुरनाम सिंह चढूनी कहते हैं कि दिल्ली के आरके पुरम इलाके में कई खाप प्रतिनिधियों के साथ लंच का कार्यक्रम था। जहां दिल्ली पुलिस पहुंची और सभी को हिरासत में ले लिया। इसके बाद हरियाणा के किसानों के सड़क जाम करने, प्रदर्शन करने समेत अन्य तरह से विरोध जाहिर करने बाबत मुझे फोन आ रहे हैं। जिसके लिए मैं सभी साथियों से कहूंगा कि कोई भी इस तरह का कदम न उठाए। मगर सभी अलर्ट मोड में भी रहें।

हरियाणा में पानीपत जिले के उग्रा खेड़ी गांव में भी सतपाल मलिक के मामले पर खाप की पंचायत हुई। मलिक बिरादरी के गांव राजाखेड़ी, रिसालू, निबरी, कुटानी, उग्रा खेड़ी, नांगल खेड़ी, कुराड़ गांव के पदाधिकारी एकजुट हुए और उग्रा खेड़ी गांव में पंचायत आयोजित हुई। जिसमें सभी गांवों ने सतपाल मलिक को अपना समर्थन दिया।

सतपाल मलिक के समर्थन में विपक्ष
इस प्रकरण में विपक्ष भी खड़ा नजर आ रहा है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मलिक के समर्थन में ट्वीट करते हुए कहा ‘पूरा देश आपके साथ है। खौफ के इस दौर में आपने बहुत साहस दिखाया है, सर। वह कायर है, सीबीआई के पीछे छिपा है। जब-जब इस महान देश पर संकट आया, आप जैसे लोगों ने अपने साहस से उसका मुकाबला किया।’ वहीं कांग्रेस ने कहा कि ‘आखिरकार पीएम मोदी से रहा नहीं गया। सतपाल मलिक ने देश के सामने उनकी कलई खोल दी। अब सीबीआई ने मलिक को बुलाया है। यह तो होना ही था।’

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