गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी बिसात बिछाई जा चुकी है। पहले चरण में 89 सीटों पर 1 दिसंबर, तो दूसरे चरण में 93 सीटों पर 5 दिसंबर को मतदान होना है,जबकि गुजरात चुनाव के नतीजे हिमाचल प्रदेश के साथ ही 8 दिसंबर को आएंगे। ऐसे में देखना है कि भाजपा अपना सियासी वर्चस्व बनाए रखने में कामयाब हो पाती है या कांग्रेस की वापसी होगी या फिर आम आदमी पार्टी के सिर ताज सजता है।
गुजरात की सत्ता पर पिछले 27 सालों से काबिज भाजपा फिर से अपना दबदबा कायम रखना चाहती है,इसके लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सियासी कमान संभाल रखी है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार चुनावी रैलियां कर रहे हैं। इस दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर पर हमला भी किया है। दरअसल पिछले दिनों महाराष्ट्र में मेधा पाटकर कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुई थीं,जिसके बाद कांग्रेस पार्टी ने राहुल के साथ उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की थी,जिसके सामने आते ही मोदी ने 20 नवंबर को गुजरात के राजकोट जिले के धोराजी की चुनावी रैली में कांग्रेस पर जमकर हमला किया। उन्होंने कहा कि ‘कांग्रेस के नेता एक ऐसी महिला के साथ पदयात्रा निकालते देखे गए जिन्होंने तीन दशक तक नर्मदा डैम प्रोजेक्ट को रोक रखा था। आप सोचिए कि नर्मदा डैम नहीं बना होता तो आज क्या होता’ ‘गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने भी कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘मेधा पाटकर को अपनी यात्रा में प्रमुख जगह देकर राहुल गांधी ने एक बार फिर गुजरात और गुजरातियों के प्रति अपनी दुश्मनी दिखाई है।’ वो उन तत्वों के साथ खड़े हैं जिन्होंने दशकों तक गुजरातियों को पानी से वंचित रखा।’ ‘गुजरात इसे बर्दाश्त नहीं करेगा।’ ‘इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर से 21 नवंबर को कांग्रेस पर हमला किया। इस बार गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले की एक रैली में मोदी ने ‘नर्मदा विरोधियों’ को सजा देने की अपील की है,उन्होंने कहा कि ‘लोकतंत्र में वे पद के लिए यात्रा कर सकते हैं,लेकिन जिन्होंने मां नर्मदा को गुजरात में प्रवेश करने से रोका और 40 सालों तक इस परियोजना को अदालतों में मुकदमों कर रोके रखा’, ऐसे लोगों के हाथ पकड़ कर और कंधे पर हाथ रख कर पदयात्रा करने वाले को गुजरात के लोग सजा देंगे।’
गौरतलब है कि,जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मेधा पाटकर का नाम ले रहे हैं ।उससे ऐसा लग रहा है कि भाजपा इसे एक चुनावी मुद्दा बना रही है।चूंकि मेधा पाटकर ने ‘नर्मदा घाटी परियोजना’ से होने वाले विस्थापन के खिलाफ आंदोलन चलाया था। इसलिए राहुल गांधी से उनकी मुलाकात ने भाजपा को कांग्रेस को घेरने का मौका दे दिया है। कांग्रेस ने साल 2017 के चुनाव में गुजरात में भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। भाजपा को 99 सीटों से संतुष्ट होने पर मजबूर कर दिया था। कांग्रेस ने 77 सीटें जीती थीं। भाजपा के लिए ये बड़ा झटका था क्योंकि 2012 में उसने यहां 115 सीटें जीती थीं हालांकि इस बार के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के जोर-शोर से उतरने से चुनाव त्रिकोणीय संघर्ष में बदलता दिख रहा है,लेकिन विशेषज्ञों का तो कहना है कि गुजरात के ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस का जनाधार ज्यादा कमजोर नहीं है। इसलिए भाजपा के लिए कांग्रेस, आम आदमी पार्टी की तुलना में ज्यादा बड़ी प्रतिद्वंद्वी है यही वजह है कि राहुल से मेधा पाटकर की मुलाकात को भाजपा कांग्रेस पर हमले के धारदार हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है,लेकिन गुजरात में यह मुद्दा बहुत पुराना हो गया है,क्योंकि नर्मदा डैम बन चुका है। एक जमाने में मेधा पाटकर के खिलाफ गुजरात की जनता में नाराजगी थी लेकिन अब वो बात नहीं है। इससे भाजपा को ज्यादा फायदा नहीं मिलने वाला है।
मेधा पाटकर बनाम नर्मदा घाटी परियोजना
गुजरात में भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मेधा पाटकर पर इस तरह का हमला करना इसलिए आसान बन गया है क्योंकि नर्मदा घाटी परियोजना के तहत बनने वाले सरदार सरोवर बांध के निर्माण के खिलाफ मेधा पाटकर ने लगभग साढ़े तीन दशक से भी ज्यादा वक्त तक आंदोलन चलाया था। हालांकि लंबी अदालती लड़ाई के बाद उच्चतम न्यायालय ने बांध बनाने की इजाजत दी थी,जिससे अब पानी और बिजली का लाभ गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश को मिल रहा है। सरदार सरोवर बांध से ढाई करोड़ लोगों को पीने का पानी देने का लक्ष्य रखा गया है। इससे 21 हेक्टेयर जमीन में सिंचाई होती है और 1450 मेगावाट बिजली पैदा की जाती है,लेकिन दूसरी ओर बांध की वजह से नर्मदा घाटी में बसे 40 हज़ार परिवारों के विस्थापित होने की आशंका है और 37500 हेक्टेयर जमीन डूब क्षेत्र में आ गई है। इस बांध के बनने से कई लोग बेघर भी हुए हैं उनमें ज्यादातर आदिवासी और किसान हैं। मेधा पाटकर और उनके आंदोलन की वजह से वर्ल्ड बैंक ने 1993 में इस बांध के लिए फंडिंग रोक दी थी। वर्ल्ड बैंक ने इसके लिए 45 लाख डॉलर देने का ऐलान किया था,जो बांध के खिलाफ आंदोलन कर रहे लोगों के लिए बड़ी जीत मन गया था।और मेधा पाटकर तभी से गुजरात में इस बांध की समर्थक सरकारों की आंख की किरकिरी बन गई थीं। इसमें कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारें शामिल थीं। सरदार सरोवर बांध का काम रुकने से गुजरात के लोगों को पेयजल, सिंचाई के लिए पानी और बिजली देने का वादा करने वाली सरकारों के लिए मतदाताओं का सामना करना मुश्किल हो गया था।
इस मुद्दे को ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ के तहत आंदोलनकारी उच्चतम न्यायालय भी ले गए थे और साल 1996 में बांध निर्माण पर स्टे हासिल कर लिया था।लेकिन 18 अक्टूबर 2000 को उच्चतम न्यायालय ने अपना आखिरी फैसला सुनाया और बांध के निर्माण की इजाजत दे दी थी,जिसका उद्घाटन साल 2017 में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। इसके अलावा कई अन्य वजहों से भी मेधा पाटकर भाजपा के निशाने पर रही है। वो 2002 में गुजरात में हुए दंगों के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई कर चुकी हैं,जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। साल 2006 में तो खुद प्रधानमंत्री मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए नर्मदा कंट्रोल अथॉरिटी के सामने 51 घंटे के धरने पर बैठे थे ताकि सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई कम न की जाए।वहीं पाटकर बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने के खिलाफ धरने पर बैठी थीं। वो प्रोजेक्ट से प्रभावित लोगों के लिए सही मुआवजे की मांग कर रही थीं।