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भाजपा नेताओं के बयान ही बढ़ा रहे अपने नेतृत्व की दिक्कतें

नई दिल्ली। आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर जहां विपक्षी पार्टियां महागठबंधन नहीं बना पा रही हैं, वहीं भाजपा के सामने भी अपने सहयोगियों को जोड़े रखने की चुनौती है। ऊपर से पार्टी नेताओं के बयान नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को असहज कर रहे हैं।
पहले पार्टी की वरिष्ठ नेता व विदेश मंत्री सुष्मा स्वराज ने विधानसभा चुनावों के बीच चुनाव न लड़ने की इच्छा जाहिर कर विपक्ष को हमलावर होने का मौका दिया। उनकी बात का विपक्ष ने तत्काल सियासी अर्थ निकाला कि सुष्मा जी को अहसास हो चला है कि भाजपा 2019 में सत्ता में नहीं लौटने वाली। अब केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के एक बयान के राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं कि भाजपा में सबकुछ ठीक नहीं है। पार्टी के बड़े नेताओं में आपसी मतभेद गहरा चुके हैं। हालांकि गडकरी स्पष्ट कर चुके हैं कि उनके बयान को तोड़-मोड़कर पेश किया गया, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक और विपक्ष इसे भाजपा के अंदरूनी मतभेदों के तौर पर ही देख रहे हैं।
दरअसल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव के बाद गडकरी ने कहा कि अगर मैं पार्टी का अध्यक्ष हूं और मेरे विधायक या सांसद अच्छा नहीं करते तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार है। उनके इस बयान को अप्रत्यक्ष तौर पर भाजपा आलाकमान के नेतृत्व पर निशाना माना जा रहा है। गडकरी ने इससे पहले भी एक बयान में कहा था कि नेतृत्व को हार और विफलता की भी जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए। कोई भी सफलता की तरह विफलता की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता है।

उन्होंने कहा था, ‘सफलता के कई पिता हैं, लेकिन विफलता अनाथ है। जब भी सफलता मिलती है को उसका श्रेय लूटने की होड़ मच जाती है, लेकिन जब विफलता होती है तो हर कोई एक दूसरे पर उंगली उठाना शुरू कर देता है।’ उन्होंने यह बयान पुणे जिला शहरी सहकारी बैंक एसोसिएशन लिमिटेड द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में दिया था।

हालांकि गडकरी कह चुके हैं कि वह किसी ‘दौड़’ या ‘प्रतिस्पर्धा’ में नहीं हैं। कुछ विपक्षी दलों और मीडिया के एक वर्ग ने उनके बयान को तोड़ मरोड़कर पेश किया है, फिर भी कुछ राजनीतिक विश्लेषक और विपक्षी दल अब भी यही मानकर चल रहे हैं कि भाजपा के भीतर सबकुछ ठीक नहीं है। पार्टी के बड़े नेता नेतृत्व से रुष्ट होते जा रहे हैं तो शिव सेना जैसे सहयोगी उसके लिए सिर दर्द बन रहे हैं।

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