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बंगाल में NRC – CAA पर बैकफुट पर भाजपा

 2 अक्टूबर 2019 को पश्चिम बंगाल में एनआरसी पर एक जनजागरण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में एनआरसी लागू होना तय है। लेकिन उससे पहले सरकार नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के ज़रिए हिंदू, सिख, जैन, ईसाई और बौद्ध शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दे देगी। एनआरसी पर सरकार का रुख़ साफ़ करते हुए शाह ने कहा था कि किसी भी हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध शरणार्थी को देश से बाहर नहीं जाने दिया जाएगा। इसके साथ ही किसी भी घुसपैठिए को भारत में रहने नहीं दिया जाएगा। यही नहीं बल्कि भाजपा की और से कहा गया कि एनआरसी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बेहद ज़रूरी है और इसे हर हाल में जनवरी 2021 तक लागू किया जाएगा।

इस मामले में अमित शाह ने ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस पर एनआरसी को लेकर लोगों को गुमराह करने का आरोप भी लगाया था। लेकिन अब इस मुद्दे पर केंद्र सरकार खासकर गृह मंत्री अमित शाह रहस्यमय चुप्पी साध गए है। पिछले दिनों पश्चिमी बंगाल गए अमित शाह सार्वजानिक मंच पर ही नहीं बल्कि मीडिया के सामने इस मुद्दे पर बोलने से बचते रहे। राजनितिक पंडितो का मानना है कि अगर पश्चिमी बंगाल में भाजपा एनआरसी के मुद्दे को उठाती है तो इस पर उसे आगामी विधानसभा चुनावों में नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके चलते ही भाजपा ने फ़िलहाल इस मुद्दे से किनारा करने में ही भलाई समझी है।

याद रहे कि केंद्र की मोदी सरकार ने बीते साल 11 दिसंबर को नागरिकता संशोधन विधेयक संसद से पास करा लिया था। जिसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से ये कानून भी बन गया। लेकिन एक साल बाद भी इस कानून को अमलीजामा पहनाने के नियम सरकार नहीं बना पाई है।  अब जबकि बंगाल में चुनाव सिर पर हैं तो यहां एनआरसी और सीएए की डिमांड हो रही है। यहां यह भी बताना जरुरी है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय अपनी रैलियों में यह बात कई बार कह चुके हैं कि पश्चिम बंगाल में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम यानी सीएए जनवरी से लागू हो जाएगा।  इसके बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।

राजनितिक पंडितो का यह भी मानना है कि भाजपा असम में एक खतरनाक खेल खेल रही है।  पासपोर्ट एन्ट्री के नियमों में संशोधन करने और नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू करने के जरिये उसने कारगर ढंग से असम समझौते को खारिज कर दिया है और यह बात पूर्णतः स्पष्ट कर दी है कि वह नागरिकता और आप्रवासन के मुद्दे को साम्प्रदायिक रूपरेखा के आधार पर तय करना चाहती है। जिसमें मुसलमानों को बहिष्कृत कर दिया जायेगा और उनके साथ प्रतिकूल बरताव किया जायेगा। शायद यही वजह है कि पश्चिमी बंगाल के साथ ही असम और त्रिपुरा की जनता ने नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ प्रतिक्रिया दी।

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