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खुशी को आजादी दिलाने के बहाने भाजपा MLC का राजनीतिक ‘ब्राह्मण शस्त्र’

29 जून 2020 को शादी। 30 जून को विदाई। 2 जुलाई की रात की कानपुर घटना (बिकरू कांड)। 3 जुलाई को पुलिस ने उठाया। 4 जुलाई को सुहाग उजड़ा। 5 जुलाई को जेल।

सिर्फ 7 दिन की यह सनसनीखेज  कहानी खुशी दुबे की है। वह खुशी दुबे जिसकी 5 दिन पहले ही शादी हुई और छठे दिन उसका सुहाग उजड़ गया। उसे आज तक यह पता नहीं चला कि विधाता ने उसके साथ ऐसा खेल क्यों खेला?

खेला तो उसके साथ यूपी पुलिस ने भी खूब खेला। पिछले 10 महीने से वह जेल में बंद है। पुलिस आज तक भी उस पर आरोप सिद्ध नहीं कर सकी है। इस दौरान वह जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है।

वह खुशी दुबे जिसके तार यूपी पुलिस विकरू कांड से जोड़ने का तालमेल बिठा रही है। लेकिन पिछले दस साल से यह तालमेल पुलिस का सटीक नहीं बैठ रहा है । कभी शादी का वीडियो पुलिस सामने रखती है तो कभी उसके नाबालिग होने पर सवाल उठाती है । लेकिन हर बार पुलिस अपने ही सवालों में घिर जाती है।

 

खुशी दुबे की जब 10 महीने पहले गिरफ्तारी हुई थी, तब भी हमने इसका विरोध किया था। और आज भी विरोध कर रहे हैं। यह सब एक राजनीतिक द्वेष भावना के तहत किया जा रहा है । जिस लड़की को 3 दिन ससुराल में ब्याह कर आने पर यह नहीं पता था कि उसके घर में कौन-कौन है उस पर विकरू कांड की साजिश का आरोप लगा कर गिरफ्तार करना मानव अधिकारों का खुला उल्लंघन है। फिलहाल योगी सरकार को मानवता दिखाते हुए खुशी को रिहा कर देना चाहिए ।

-पीतांबर शर्मा , प्रदेश अध्यक्ष अखिल भारतीय ब्राह्मण सभा उत्तर प्रदेश

 

इस बार यूपी पुलिस और खुद अपनी ही सरकार को सवालों के घेरे में  लिया है विधान परिषद सदस्य उमेश द्विवेदी ने। उमेश त्रिवेदी ने खुशी दुबे प्रकरण पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र लिखकर उसकी रिहाई की मांग कर डाली है। खुशी दुबे का मुद्दा उठाकर एक बार फिर सूबे की  राजनीति में  सियासत का बाण चला दिया गया है। इस बाण का निशाना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर है। राजनीतिक पंडितों की माने तो खुशी दुबे के बहाने एक बार फिर उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण राजनीति में उथल-पुथल मचाने की तैयारी शुरू की जा चुकी है।

भाजपा के विधान परिषद् सदस्य उमेश द्विवेदी ने सीएम योगी को लिखे अपने पत्र में कहा है कि 10 माह पूर्व बिकरू कांड में एक महिला खुशी दुबे की शादी 9 दिनों पहले ही हुई थी और उसे गिरफ्तार किया गया। आज 10 महीने बाद भी उसके ऊपर कोई आरोप तय नहीं हुआ है।

इसके बावजूद भी उसे जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ रहा है। पत्र में आगे जिक्र करते हुए उमेश द्विवेदी ने लिखा कि खुशी दुबे का स्वास्थ्य ठीक नहीं है। खुशी गंभीर अवस्था में राजधानी लखनऊ के मेदांता अस्पताल में जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रही है। ऐसी स्थिति में उसका बेहतर इलाज किया जाए और यदि अब तक उसके ऊपर कोई आरोप सिद्ध नहीं हुआ है तो उसे रिहा कर दिया जाए।

गौरतलब है कि कानपुर के चौबेपुर थाना के बिकरु गांव में 2 जुलाई की रात गैंगस्टर विकास दुबे और उसकी गैंग ने 8 पुलिसवालों की हत्या कर दी थी। अगली सुबह से ही यूपी पुलिस विकास गैंग के सफाए में जुट गई। 9 जुलाई को उज्जैन के महाकाल मंदिर से सरेंडर के अंदाज में विकास की गिरफ्तारी हुई थी।

10 जुलाई की सुबह कानपुर से 17 किमी पहले पुलिस ने विकास को एनकाउंटर में मार गिराया था। इस मामले में मुख्य आरोपी विकास दुबे समेत छह एनकाउंटर में मारे गए थे। जिनमे से एक विकास दुबे का भतीजा अमर दुबे भी था। ख़ुशी दुबे अमर दुबे की नवविवाहिता पत्नी थी।

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