मध्य प्रदेश में लगातार राजनीतिक उठा-पटक के बाद बुधवार को कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल हो गए। सिंधिया से भाजपा में जाने के बाद कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई है। हालांकि, कांग्रेस और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ का कहना है कि इससे हमारी सरकार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। हमारे विधायक हमारे साथ हैं।
जबकि सिंधिया के साथ उनके समर्थक विधायकों ने भी इस्तीफा दिया है। जिससे बीजेपी मध्यप्रदेश में सरकार बनाने की कोशिश लगी हुई है। इससे पहले जब मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार थी तभी शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री बनने की रेस में फिर से शिवराज सिंह चौहान का नाम सामने आ रहा है। लेकिन इसी बीच ये भी खबर आ रही है कि अगर बीजेपी की तरफ से पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को फिर से सीएम बनाया गया तो पार्टी के कुछ नेता बागी हो सकते हैं।
गौरतलब है कि मंगलवार को कांग्रेस के 22 विधायकों ने विधानसभा में स्पीकर एनपी प्रजापति को अपना इस्तीफा दे दिया था। इसी से संबंधित बीजेपी ने मंगलवार को ही एक बैठक भी रखी थी। सूत्रों के मुताबिक, उस बैठक में चर्चा हुई थी कि अगर कमलनाथ अपनी सरकार बचाने में विफल रहते हैं तो एक नए विधायक को मुख्यमंत्री के रूप में चुना जाएगा। जिसमें भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि गोपाल भार्गव की जगह पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को विधायक दल का प्रमुख चुना जाए। जिससे कुछ नेताओं ने विरोध किया।
कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफा के बाद केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रहलाद सिंह पटेल, भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और कुछ नेताओं ने राजनीतिक हलचल को लेकर एक-दूसरे से मुलाकात की थी। बीजेपी के एक नेता ने कहा, “जैसा कि चौहान ने मोर्चा संभाला और पार्टी में विभिन्न स्तरों पर उनसे सलाह ली गई, भोपाल को संदेश दिया गया कि उन्हें सतर्क रहना चाहिए।”
वहीं शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने की खबर से बौखलाए एक अन्य भाजपा नेता ने कहा कि पार्टी में एक भावना है कि अन्य नेताओं को एक मौका दिया जाना चाहिए। चौहान का 13 वर्षों तक मुख्यमंत्री का कार्यकाल रहा है और 2018 में हार के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
दूसरी तरफ मध्यप्रदेश बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा की नाराजगी भी किसी से छुपी नहीं है। प्रभात को लगता है कि उनकी राज्यसभा की सीट छीन कर सिंधिया को दे दी जाएगी। इससे खासे नाराज प्रभात झा के बारे में ये कहा जा रहा है कि वो पार्टी से इस्तीफा दे सकते हैं।
जबकि पार्टी के वरिष्ठ नेता नरोत्तम मिश्रा भी मुख्यमंत्री के पद के लिए खुद को दावेदार मानते हैं। नरोत्तम समर्थकों ने कांग्रेस में सियासी संकट के दौरान शिवराज की भूमिका को लेकर सवाल भी उठाए हैं। हालांकि, मध्यप्रदेश में शिवराज के कद का नेता बीजेपी में दूर-दूर तक कोई नहीं है। उनके पास सरकार चलाने का लंबा अनुभव है।
शिवराज सिंह ने इस राजनीति कस्साकस्सी के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी में शामिल होने पर बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट किया जिसमें उन्होंने लिखा है, ”स्वागत है महाराज, साथ है शिवराज।” वहीं राज्य के भाजपा मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर ने कहा, “ऐसा कुछ नहीं है ये सिर्फ मीडिया की अटकलें हैं। बैठक का एजेंडा केवल राज्यसभा चुनाव था। किसी अन्य मुद्दे पर चर्चा नहीं की गई है।”
ऐसा भी माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर तालमेल न दिखने पर पार्टी वीडी शर्मा का नाम आगे कर सभी को चौंका सकती है। पीएम मोदी के करीबी और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र तोमर के नाम की भी चर्चा है। बताया जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को मोदी सरकार में वाणिज्य या भारी उद्योग जैसा पद मिल सकता है। उनके समर्थकों को बोर्ड, कॉर्पोरेशन और समितियों में पद देकर संतुष्ट किया जा सकता है।
कहा जा रहा है कि कांग्रेस विधायकों को जयपुर भेजने के बाद कमलनाथ कैंप में सन्नाटा पसरा हुआ है। मुख्यमंत्री कमलनाथ की तरफ से कोई नया बयान तो नहीं आया पर दिग्विजय सिंह ने फ्लोर टेस्ट की बात जरूर दोहराई है। उन्होंने बुधवार शाम को कहा कि हम फ्लोर टेस्ट करवाएंगे। माना जा रहा है कि 15 या 16 तारीख को फ्लोर टेस्ट हो सकता है।
बता दें कि मध्य प्रदेश विधान सभा में सीटों की संख्या 228 है। ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल होने और कुछ अन्य विधायकों का इस्तीफा देने के बावजूद कांग्रेस के पास अपने 114 विधायकों समेत 7 अन्य का समर्थन हासिल है। ऐसे में उनके पास 121 विधायक हैं। वहीं अगर इन इस्तीफा देने वाले 22 विधायकों की संख्या को विधासनभा की कुल सीटों में से घटा दें तो यह घटकर 206 हो जाएगी। ऐसे में विधानसभा बहुमत के लिए 104 सीटों की जरूरत होगी।