देश में जब से नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) पारित हुआ है तब से लगातार इस कानून के खिलाफ और समर्थन में विरोध-प्रदर्शन होता रहा है ।इस समय देश में कृषि कानूनों को लेकर किसानों का आंदोलन और तेज हो गया है। अगले दो – तीन महीनों में पश्चिम बंगाल , असम , केरल ,तमिलनाडु और पुड्डुचेरी सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं ,ऐसे में सीएए और एनआरसी का मुद्दा देशभर में फिर उठने लगा है । इसके लिए केंद्र सरकार बहुचर्चित नागरिकता कानून के नियम तैयार कर रही है। इस बीच अब पांच विधानसभाओं के चुनावों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) का ठंडा पड़ा मुद्दा फिर से गरमाने लगा है। भाजपा विरोधी दल इसे हर राज्य में जनता के बीच ले जा रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि वे इसे लागू नहीं होने देंगे। दूसरी तरफ भाजपा इस मुद्दे को अपनी राजनीतिक रणनीति के अनुसार उठा रही है। भाजपा पश्चिम बंगाल में सीएए लागू करने की बात कर रही है, लेकिन असम में वह इस मुद्दे से ही बच रही है।
पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव की तैयारियों में सभी राजनीतिक पार्टियां जुट गई हैं। पश्चिम बंगाल में इस बार राज्य की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच जबर्दस्त भिड़ंत के आसार बन रहे हैं। भाजपा की पूरी कोशिश है कि वह इस बार ममता बनर्जी के गढ़ में अपना झंडा गाड़ डाले ।
जैसे -जैसे विधानसभा चुनाव जितने नजदीक आ रहे हैं अलग -अलग मुद्दे गरमाने लगे हैं। इससे हर राज्य का माहौल भी अलग-अलग बन रहा है। इनमें एक बड़ा मुद्दा सीएए का है। भाजपा विरोधी दलों ने जनता के बीच जाकर कहना शुरू कर दिया है कि वे अपने राज्य में सीएए को लागू नहीं होने देंगे। केरल में माकपा नेता इस तरह के वादे कर रहें है। वहां पर लगभग 30 फीसदी आबादी मुस्लिम है और इसका लाभ भी सत्तारूढ़ एलडीएफ को मिल सकता है।
बंगाल में भाजपा लाभ उठाने की कोशिश में
पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा घमासान है। भाजपा वहां पर सीएए लागू करने की बात कर रही है। पार्टी ने नेता बंगाल में अपनी रैलियों में कह रहे हैं कि कोरोना टीका लगने के बाद सीएए को जमीन पर उतारा जाएगा। जबकि असम में भाजपा इस मामले पर चुप्पी साधे हुए है। दरअसल असम व पूर्वोत्तर राज्यों में सीएए को लेकर काफी विरोध है। ऐेसे में भाजपा असम में इस मुद्दे से बच रही है। हालांकि कांग्रेस असम में खुलकर इसे मुद्दा बना रही है और कह रही है कि राज्य में सीएए को किसी कीमत पर लागू नहीं होने दिया जाएगा। असम में लगभग 28 फीसदी मुस्लिम व 20 फीसदी आदिवासी आबादी है। ऐसे में कांग्रेस इस मुद्दे का लाभ लेने की कोशिश में है।
असम में मुद्दा गरमाया तो भाजपा को हो सकता है नुकसान
गौरतलब है कि बीते साल गुवाहाटी और उपरी असम के आठ जिलों सीएए को लेकर लोग सड़क पर उतर आए थे। बाद में यह मामला शांत हो गया था, लेकिन अब चुनाव के दौरान कांग्रेस ने इसे फिर से मुद्दा बनाया है तो भाजपा इसे दबाने में लगी हुई है। उसके नेता कह रहे हैं कि राज्य में सीएए नहीं विकास का मुद्दा है। मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ऊपरी असम से आते हैं और भाजपा को पिछली बार सबसे ज्यादा सीटें इसी क्षेत्र में मिली थीं। एनआरसी पर भी भाजपा उच्चतम न्यायालय में मामला होने की बात कह कर इससे बच रही है। गौरतलब है कि दिसंबर 2019 में संसद से इस बारे में कानून पारित किया गया था, लेकिन अभी तक इसे अमली जामा पहनाने के लिए नियम कायदे सामने नहीं आ सके हैं।