हरियाणा में विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है. नब्बे सीटों वाली हरियाणा विधानसभा के चुनाव के लिए 21 अक्टूबर 2019 को मतदान होगा और नतीजे 24 अक्टूबर 2019 को आएंगे । फिलहाल यहां भाजपा हर- हर के नारे के साथ जोश खरोश से मैदान में हैं जबकि कांग्रेस अपने नेताओ की गुटबाजी से डर- डरकर मैदान में डटी है। जबकि दुसरी तरफ अन्य दलों के नेता चुनावी मौसम की तरह टर्र – टर्र तक सिमटते दिखाई दे रहे है।
चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो वर्ष 2014 में बीजेपी ने 47 सीटें जीतकर प्रदेश में पहली बार अपने दम पर सरकार बनाई थी और कांग्रेस को केवल 15 सीटें मिली थीं, जबकि आईएनएलडी को इस चुनाव में 19 सीटें मिली थीं ।
संघ की पृष्ठभूमि से आए मनोहर लाल खट्टर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और कई सियासी विवादों के बावजूद अब तक बने हुए हैं । ताजा लोकसभा चुनाव ने यह तो राजनीतिक इशारा कर दिया है कि इस चुनाव में कांग्रेस के लिए बेहतर संभावनाएं नहीं हैं । जबकि बीजेपी बेहतर स्थिति में दिखाई दे रही है। क्योंकि बीजेपी में कांग्रेस की तरह गुटबाजी प्रभावी नही है। हालाकि विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे ज्यादा प्रभावी होते हैं, लिहाजा ये विधानसभा चुनाव जहां बीजेपी के लिए दुबारा सरकार बनाने के लिए चुनौती बने हैं । वहीं कांग्रेस पार्टी में एका कर ले तो यह उसके लिए राजनीतिक अवसर माने जा रहे हैं ।
हरियाणा में कानून व्यवस्था का बड़ा मुद्दा है । जिसका जवाब बीजेपी को तलाशना है, तो धारा 370 का मुद्दा बीजेपी के पक्ष में है । हरियाणा में यह मुद्दा इसलिए खास है कि सेना में यहां के जवान हैं । इसलिए केन्द्र सरकार के इस निर्णय में जनता बीजेपी के साथ है । लेकिन, मंदी और किसानों की समस्याएं बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकती हैं ।
कांग्रेस अच्छी स्थिति में तो नहीं है । परन्तु शेष विपक्ष के कमजोर पड़ने की हालत में कुछ करिश्मा दिखा सकती है । कांग्रेस ने कुमारी शैलजा को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष तो बना दिया है, किन्तु प्रदेश के नेताओं की महत्वकांक्षाएं हरियाणा में कांग्रेस की सफलता में सबसे बड़ी बाधा है।
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चुनाव प्रबंधन के नजरिए से बीजेपी के मुकाबले कांग्रेस कमजोर है । बावजूद इसके कांग्रेस के पास वर्ष 2014 का रिकार्ड सुधारने का मौका तो है ही। लेकिन इससे पहले उसे अपनी पार्टी की आंतरिक कलह से निबटना होगा। जो फिलहाल तो मुश्किल दिखाई दे रहा है।