आजम खान कभी उत्तर प्रदेश की राजनीति का वह नाम था जिनके इर्द – गिर्द पूरी सियासत घूमती थी,लेकिन 45 साल बाद उस क्षेत्र की सियासत से वे इतने दूर हो गए हैं कि शायद ही कभी राजनीति में नजर आएं। एक समय था जब भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार आजम का गढ़ कहे जाने वाले रामपुर में चुनाव लड़ने से डरते थे अब आज़म अपने ही गढ़ में न तो चुनाव लड़ सकते,और न ही वोट कर सकते हैं। कहा जाता है कि राजनीति में सब कुछ स्थिर नहीं रहता। हमेशा एक ही के हाथों में सत्ता नहीं रहती यह बदलती रहती है इसकी आज की सबसे बड़ी मिसाल है आज़म खान के गढ़ का ढह जाना।
दरअसल उत्तर प्रदेश के रामपुर में हुए विधानसभा उपचुनाव में भाजपा का कमल खिल गया है। भाजपा के प्रत्याशी आकाश सक्सेना ने आजम के करीबी आसिम रजा को बड़े अंतर से शिकस्त दी है।आकाश सक्सेना भाजपा के पूर्व विधायक शिव बहादुर सक्सेना के बेटे हैं। रामपुर में भाजपा की यह जीत कई लिहाज से बेहद अहम मानी जा रही है। रामपुर सीट पर आज तक के इतिहास में भाजपा की यह पहली जीत है। राजनीतिक विशेषज्ञों का तो कहना है कि रामपुर सदर सीट पर पहली बार भाजपा ने जीत हासिल की है। ऐसे में सपा का नाराज होना लाजिमी है। राजनीति में यह नहीं कह सकते हैं कि हमेशा एक ही के हाथों में सत्ता रहती यह बदलती रहती है।आज रामपुर की जनता ने बदलाव को चुना है। इसका सम्मान करना चाहिए। निर्वाचन आयोग के मुताबिक,भाजपा के पक्ष में 81 हजार से ज्यादा वोट पड़े हैं। जबकि समाजवादी पार्टी को उसके करीब 47 हजार वोट मिले है। यह साफ दिखता है कि यह जीत भाजपा के लिए कितना महत्वपूर्ण है।
आजम का सियासी सफर
आजम खान ने 1980 में पहली बार जनता दल (सेक्युलर) के टिकट पर विधायक का चुनाव जीता और अगले कई दशकों तक रामपुर की सियासत में जम गए। लेकिन उत्तर प्रदेश की सियासत ने 2017 के चुनाव में करवट ली और भाजपा सत्ता में आई और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही आजम खां पर संकट के बादल मंडराने लगे। एक के बाद एक मुकदमे उनके खिलाफ कायम होते गए, जिसमें कुछ मामले में वो बरी हो गए हैं, लेकिन 2019 के हेट स्पीच मामले में तीन साल की सजा हो गई। न्यायालय से सजायाफ्ता होने के चलते आजम खान खुद तो चुनाव नहीं ही लड़ सकते थे उनके वोट डालने का अधिकार भी छिन गया। इस तरह से विपरीत परिस्थितियों में आजम खां खुद की न तो सियासत बचा पाए और न ही रामपुर के दुर्ग को सुरक्षित रख पाए। रामपुर उपचुनाव में आसिम रजा को सपा प्रत्याशी बनाया तो आजम खां के तमाम मजबूत साथी साथ छोड़कर भाजपा के खेमे में चले गए। आजम के विरोधी पहले से ही भाजपा खेमे में मजबूती से खड़े थे। लोकसभा के बाद विधानसभा क्षेत्र में भी कमल खिलाने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक रखी थी। मुख्यमंत्री योगी से लेकर उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक सहित भाजपा के तमाम दिग्गज नेता डेरा जमाए हुए थे। सुरेश खन्ना, जितिन प्रसाद और दानिश रजा अंसारी रामपुर में कैंप कर रहे थे।वहीं, रामपुर में आजम खान अकेले आसिम रजा को जिताने के लिए मशक्कत कर रहे थे। चुनाव के आखिरी वक्त में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने रामपुर में पहुंचे आजम खान का हौसला बढ़ाया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम वोटों के साथ-साथ दलित समुदाय को भी साधने की कवायद की, लेकिन भाजपा के सियासी चक्रव्यूह को आजम खान तोड़ नहीं सके और अपनी परंपरागत व 10 बार की जीती हुई सीट गंवा दी। तो वहीं भाजपा के आकाश सक्सेना ने विधायक बनकर इतिहास रच दिया है। आजम खां को हेट स्पीच मामले में तीन साल की अदालत से सजा मिल चुकी है, जिसके चलते वो अब 9 सालों तक चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। आजम खान न तो 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ पाएंगे और न ही 2027 का विधानसभा चुनाव तक सब ठीक रहा तो वह 2031 में चुनाव लड़ पाएंगे। आजम खान 74 साल के हो चुके हैं और 2031 में 83 साल के हो जाएंगे। इस तरह अगले 9 सालों में सियासत भी काफी बदल जाएगी। आजम उम्र के साथ-साथ तमाम बीमारियों से जूझ रहे हैं। इस तरह से आजम की सियासी सफर का यह अंत ही माना जा रहा है। आकाश सक्सेना ने जीत के साथ ही कह दिया है कि रामपुर में आजम खां का चैप्टर पूरी तरह से खत्म हो गया है।