गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव से पहले कहा जा रहा था कि राज्य में सत्ताधारी पार्टी को एन्टी इन्कम्बेंसी के चलते काफी नुकसान हो सकता है लेकिन चुनाव परिणामों में भारतीय जनता पार्टी ने लगातार सातवीं जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया है। इस चुनाव में भाजपा ने अभी तक के सभी रिकॉर्ड ध्वस्त कर डाले हैं
गुजरात ने हमेशा इतिहास रचने का काम किया है। पिछले दो दशक में वर्तमान पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने गुजरात में विकास के सभी रिकॉर्ड तोड़े और इस विधानसभा चुनाव में भी जनता ने उसे आशीर्वाद देकर जीत के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। तमाम अटकलों और कयासों के बीच गुजरात विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। 27 सालों से काबिज भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर गुजरात में सभी पार्टियों को पछाड़ सरकार बनाने जा रही है। ‘चप्पा-चप्पा भाजपा’ का नारा एक बार फिर गुजरात में सच साबित हो गया है। यहां विधानसभा चुनावों में बीजेपी की टक्कर में कोई पार्टी खड़ी नहीं हो पाई है। राज्य में बीजेपी की मुख्य विरोधी कांग्रेस जहां पूरी तरह धराशायी हो गई तो वहीं बीजेपी का जलवा इस बार कुछ ऐसा रहा है कि दिल्ली और पंजाब में काबिज हो चुकी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई।
खास बात यह है कि बीजेपी ने इस चुनाव में अपने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। यह दावे खुद गृह मंत्री अमित शाह भी कर चुके हैं। उन्होंने अपनी तमाम रैलियों, सभाओं में कहा था कि उनकी पार्टी अपने सभी पिछले रिकॉर्ड तोड़कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने जा रही है। जो सच में तब्दील हो चुका है।
वर्ष 2002 में बीजेपी को मिली थी 127 सीटें
गुजरात की सत्ता पर बीजेपी 27 सालों से काबिज है। नरेंद्र मोदी अक्टूबर 2001 में पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे और 2002 में पार्टी ने उनके नेतृत्व में पहला चुनाव लड़ा। मोदी का चेहरा इतना पावरफुल साबित हुआ कि पार्टी ने चुनाव में पहली बार 127 सीटें हासिल की थी। बीजेपी का मोदी के नेतृत्व में यह पांचवां विधानसभा चुनाव था, जहां एग्जिट पोल में भी अनुमान लगाया जा रहा था कि इस बार पार्टी अपने पिछले सभी रिकॉर्ड को ध्वस्त कर सरकार बना सकती है। एग्जिट पोल में बीजेपी को 151 सीट तक मिलने का अनुमान था।
वर्ष 2017 में कैसा था सीटों का हिसाब-किताब
गुजरात विधानसभा में 2017 के चुनावों में कांग्रेस का काफी बेहतर प्रदर्शन रहा था, लेकिन बहुमत का जादुई आंकड़ा बीजेपी को मिला। बीजेपी को 99 सीटों पर, जबकि कांग्रेस को 77 सीटों पर जीत मिली लेकिन बहुमत के लिए 92 सीटें लाना जरुरी था इसलिए जीत बीजेपी की हुई। उससे पहले साल 2012 में जब गुजरात में चुनाव हुए थे, उस समय भारतीय जनता पार्टी तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (अब प्रधानमंत्री) के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही थी। तब बीजेपी को 115 सीटों पर जीत मिली थी। कांग्रेस केवल 61 सीटों पर सिमट गई थी। इन चुनावों में बीजेपी को 2 सीटों का नुकसान, जबकि कांग्रेस को 2 सीटों का फायदा रहा था।
इसी तरह 2007 में बीजेपी को 117 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस 59 सीटें ही हासिल कर पाई थी। साल 2002 में गुजरात की 127 सीटों पर बीजेपी जीती थी। 2002 से लेकर अब तक तक भाजपा के प्रदर्शन में उतार- चढ़ाव जरूर आए हैं, लेकिन इस बार परिणामों में गुजरात विधानसभा में बीजेपी की सबसे बड़ी जीत देखने को मिली है।
साल सीट
1998 117
1995 121
1990 67
1985 11
1990 9
आंकड़ों पर गौर करें तो मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने पहली बार 2002 में 127 सीटें, 2007 में 117 सीटें और 2012 में 115 सीटें हासिल की थी।
पीएम मोदी के लिए साबित हो सकती है सबसे बड़ी जीत
आंकड़ों के मुताबिक 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सिर्फ 99 सीटें जीती, जो 1990 के चुनाव के बाद सबसे कम है।
गुजरात में किस्मत आजमामाने वाले बड़े चेहरे
इस चुनाव में साल 2017 में पाटीदार आंदोलन का चेहरा बने हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी भी उम्मीदवार बतौर लड़ रहे थे। अल्पेश ठाकोर भाजपा के पूर्व मंत्री शंकर चौधरी भी इस चुनावी जंग में शामिल थे। हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर भाजपा में शामिल हो चुके थे। गांधीनगर दक्षिण से अल्पेश ठाकोर और वीरमगाम से हार्दिक पटेल चुनाव लड़ रहे थे। वीरमगाम सीट से हार्दिक पटेल ने जीत हासिल की है। वहीं अल्पेश और जिग्नेश मेवाणी भी अपनी सीट पर जीत गए हैं। इनके अलावा चाणस्मा से दिलीप ठाकोर, सिद्धपुर से बलवंत सिंह राजपूत, खेड़ा
ब्रह्मा से अश्विन कोटवाल, जमापुर खाडिया से भूषण भट्ट, दसक्रोई से बाबू जमना पटेल, नडियाद से पंकज देसाई, शहेरा से जेठा भरवाड, सावली से केतन इनामदार, वडोदरा के मांजलपुर से योगेश पटेल, वेजलपुर से अमित ठाकर, छोटा उदेपुर से राजेंद्र सिंह राठवा और करजण से अक्षय पटेल जैसे दिग्गज भी चुनावी मैदान में उतरे थे।
अगर इस सवाल का जवाब जानना है कि गुजरात में दूसरी पार्टी क्यों नहीं आ पाती है तो खुद से सिर्फ इतना सवाल कीजिए कि क्या गुजरात में बीजेपी के सामने कोई विकप्ल खड़ा हो पाया है? जवाब शायद नहीं ही है। 2017 में भले ही पाटीदार आंदोलन ने उसको डेंट दिया था लेकिन इस बार के चुनाव में यह मुद्दा मौजूद नहीं था। दूसरी तरफ 2017 में बीजेपी के खिलाफ हवा बनाने वाले थ्री मस्केटियर अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी फैक्टर को बीजेपी ने पहले ही चित्त कर दिया था।
2017 के चुनावों में इन्होंने बीजेपी को चुनौती दी थी और तब इन्हें बीजेपी के ‘राम’ (रूपाणी-अमित-मोदी) के खिलाफ प्रमुख विपक्षी कांग्रेस के ‘हज’ (हार्दिक-अल्पेश-जिग्नेश के लिए) के रूप में देखा गया। हालांकि मौजूदा चुनावों से महीनों पहले, हार्दिक ने बीजेपी में जाने के लिए कांग्रेस छोड़ दी जबकि अल्पेश ने 2019 में ही यह काम कर दिया था।
इसके अलावा भी कई ऐसे मुद्दे रहे जिसको समय रहते बीजेपी ने साध लिया। कोरोना काल में कुप्रबंधन के कारण जब गुजरात के स्थानीय अखबार मरे लोगों की याद में भरे जाने लगे तो लगा कि जनता का गुस्सा चुनाव में फूटेगा। लेकिन चुनाव आते आते यह हवा हो गया और इसका असर नहीं दिखा।
जो पार्टी पिछले 27 साल से सत्ता में हो उसके खिलाफ एन्टी इन्कम्बेंसी एक मुद्दा होता है। बीजेपी ने इसका तोड़ निकाला। सीएम बदला और ढेर सारे विधायकों के टिकट काटे। साथ ही मोरबी केबल ब्रिज हादसा उस तरह से चुनावी मुद्दा नहीं बन पाया जैसा कांग्रेस या ‘आप’ चाहती थी। इसके अलावा गुजरात में मोदी फैक्टर बीजेपी का तुरुप का इक्का तो रहा ही है। पीएम मोदी ने इस चुनाव में बीजेपी और उसके उम्मीदवारों के लिए चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी और पार्टी को इसका फायदा भी मिला है।
भाजपा को भारी बहुमत
भाजपा ने यह सफलता प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व और पार्टी की संगठनात्मक रणनीति के कारण ही हासिल की है। कुछ साल पहले 99 सीटों तक सीमित रहने वाली भारतीय जनता पार्टी अब 150 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल कर अपने ही 127 सीटों और वर्ष 1985 में कांग्रेस द्वारा जीती गई 149 सीटों के रिकॉर्ड को तोड़ चुकी है।