देश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा इस साल के अंत में होने वाले कई राज्यों और अगले साल 2024 के आम चुनाव को लेकर अपने पुराने सहयोगियों को एक बार फिर से साधने की कोशिश करती नजर आ रही है। एनडीए से नाता तोड़कर अलग हुए दलों को फिर से जोड़ने की इस कवायद की कमान सीधे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संभाल ली है। तेलगु देशम पार्टी के नेता चंद्रबाबू नायडू की गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से हालिया मुलाकात को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है
अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव-2024 के लिए विपक्षी दलों की एकजुटता के प्रयासों से आशंकित भाजपा ने गत सप्ताह हाईलेवल बैठक की है। इस बैठक के बाद भाजपा अपने पुराने सहयोगियों को फिर से साथ लाने की कोशिश में जुट गई है। इस लक्ष्य में उसकी कोशिश पहले एनडीए से नाता तोड़कर अलग हुए दलों को फिर से जोड़ने की है। तेलगु देशम पार्टी (टीडीपी) के नेता चंद्रबाबू नायडू की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से हालिया मुलाकात को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। बताया जा रहा है कि बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा और बिहार में चिराग पासवान के साथ मुकेश सहनी की वीआईपी को भी एनडीए में लाने के प्रयास तेज कर दिए हैं।
माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन को लेकर तीनों नेताओं के बीच बातचीत हुई। यहां तक कहा जा रहा है कि तेलंगाना में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी और टीडीपी के चुनावी गठबंधन पर मुहर लग जाएगी। बीजेपी और टीडीपी न सिर्फ आंध्र प्रदेश बल्कि तेलंगाना विधानसभा चुनाव और 2024 का लोकसभा चुनाव भी गठबंधन के तहत लड़ेंगे। आंध्र प्रदेश में टीडीपी बड़े भाई की भूमिका में होगी तो तेलंगाना में टीडीपी बीजेपी के छोटे भाई की भूमिका अदा करेगी।
दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे के मुद्दे पर नायडू की टीडीपी एनडीए से नाता तोड़कर अलग हो गई थी। बीजेपी-टीडीपी गठबंधन टूटने से आंध्र प्रदेश विधानसभा के साथ-साथ लोकसभा चुनाव में भी दोनों पार्टियों को खासा नुकसान उठाना पड़ा था। विधानसभा चुनाव में टीडीपी को 23 और लोकसभा में 3 सीटें मिली थीं जबकि बीजेपी अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। तेलंगाना में भी सियासी हश्र कुछ ऐसा ही हुआ था। यहां बीजेपी का सिर्फ 1 तो टीडीपी के महज 2 विधायक जीते थे।
पीएम मोदी ने दिए दोस्ती बढ़ाने का संकेत
यहां बीजेपी और टीडीपी दोनों ही पार्टियां अपना सब कुछ गंवाने के बाद अब फिर साथ आने की कोशिशें करती नजर आ रही हैं। दोनों दलों के बीच पिछले साल दोबारा नजदीकियां हुईं। इसी साल दोनों दलों ने पोर्ट ब्लेयर नगर परिषद चुनाव साथ लड़ा और अध्यक्ष पद के लिए उनके साझा उम्मीदवार जीतने में सफल रहे। इस सफलता के बाद अब दोनों पार्टियों के नेता आगामी चुनावों में फिर से एक साथ उतरने के बारे में चर्चा कर रहे हैं। पीएम मोदी ने भी पिछले महीने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में एनटी रामाराव की जयंती पर उन्हें याद कर टीडीपी की तरफ फिर से दोस्ती का हाथ बढ़ाने का संकेत दिया कि वे बीजेपी के साथ रिश्ता सुधारने की इच्छा रखते हैं। उन्होंने अप्रैल में पीएम मोदी को दूरदर्शी नेता बताते हुए कहा कि वे देश की प्रतिष्ठा को बनाए रखने का काम कर रहे हैं। उन्होंने खुद को पीएम मोदी की राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया से जुड़ने का इच्छुक बताया था।
दूसरी तरफ बीजेपी आंध्र प्रदेश में टीडीपी के साथ दक्षिण भारतीय सिनेमा के सुपर स्टार पवन कल्याण की जनसेना पार्टी को भी साधना चाहती है। हालांकि बीजेपी और टीडीपी की बढ़ती नजदीकियों से जनसेना नाराज बताई जा रही है। बीजेपी चाहती है कि आंध्र प्रदेश में 3 दल मिलकर वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के खिलाफ चुनावी मैदान में उतरे और साथ ही जनसेना तेलंगाना में बीजेपी की मदद करे। वहीं जनसेना का आंध्र प्रदेश में अपना राजनीतिक आधार है जिसका फायदा बीजेपी उसे साथ लेकर उठाना चाहती है।
अकाली दल के साथ सुलह का प्लान
दिल्ली बॉर्डर पर ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान प्रकाश सिंह बादल की शिरोमणि अकाली दल बीजेपी से नाता तोड़कर एनडीए से अलग हो गई थी। इसका सियासी नुकसान भाजपा और अकाली दल दोनों को ही उठाना पड़ा। अब 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी जिस तरह अपने पुराने सहयोगी दलों को दोबारा अपने साथ लाने की कवायद शुरु कर रही है उसे देखते हुए अकाली दल के भी एनडीए में वापस आने के आसार बन रहे हैं। अकाली दल के मुखिया और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा पंजाब पहुंचे थे। इसी के बाद से बीजेपी और अकाली दल के फिर साथ आने की चर्चाएं शुरू हुईं। वजह ये है कि पंजाब में दोनों ही दल अपने सियासी वजूद को बचाए रखने की चुनौती से जूझ रहे हैं।
राजभर के साथ गठबंधन का प्रयास
बीजेपी उत्तर प्रदेश में भी मौजूदा सहयोगी दलों को साथ रखने के अलावा नए साथ की तलाश में है। इस प्रयास में उसकी नजर यूपी में ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ गठबंधन करने की है। राज्य में विधान परिषद के चुनाव में राजभर ने बीजेपी के पक्ष में वोटिंग कर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। सुभासपा से गठबंधन करने पर बीजेपी को पूर्वांचल में 5 से 6 लोकसभा सीटों पर फायदा हो सकता है। माना जा रहा है जुलाई में सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश की बीजेपी नेतृत्व की बैठक प्रस्तावित है। लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बीजेपी नेतृत्व का मानना है कि यूपी में मुकाबला बहुत कड़ा होगा। सभी विपक्षी दल बीजेपी को हराने के लिए एकजुट होंगे। इसे भांपते हुए बीजेपी भी अपना किला मजबूत करने में जुट गई है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों के सहयोगी रह चुके ओपी राजभर नए मौके तलाशने की फिराक में हैं। ऐसे में वे 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी से चुनावी गठबंधन कर राज्य की राजनीति में अपनी चुनावी पैठ बढ़ाने की कोशिश करेंगे।
चाचा-भतीजे के साथ ‘वीआईपी’ को भी साधने की कोशिश
बिहार में नीतीश कुमार के एनडीए से अलग होकर महागठबंधन खेमे में जाने के बाद बीजेपी नए राजनीतिक साथियों की तलाश में है। राज्य में राम विलास पासवान की सियासी विरासत संभाल रहे लोकजनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान
बीजेपी के साथ नजदीकियां बढ़ाते नजर आ रहे हैं। लेकिन चाचा पशुपति पारस के एनडीए में होने के चलते दोस्ती परवान नहीं चढ़ पा रही है। हालांकि भाजपा इस कोशिश में जुटी है कि दोनों को साधकर रखा जाए। वहीं जेडीयू से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा के साथ भी बीजेपी गठबंधन की तैयारी में है। इसके अलावा वीआईपी के प्रमुख मुकेश सहनी को भी साथ लेकर चलने की कोशिश में जुटी है। गौरतलब है कि दोनों ही नेता पहले एनडीए के साथ रह चुके हैं। उधर महागठबंधन में शामिल जीतनराम मांझी भी इन दिनों बागी तेवर अपनाएं हुए हैं। इस बीच उनके बेटे ने नीतीश की कैबिनेट से स्तीफा भी दे दिया है, जिसके चलते उनके भी एनडीए में वापसी के कयास लगाए जा रहे हैं।
दरअसल पिछले दो लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को बुरी तरह हराकर बहुमत हासिल किया था। कांग्रेस को हराने के बाद बीजेपी ने कई राज्यों में अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों पर भी अलग-अलग तरह के पैंतरे आजमाए। नतीजतन पिछले कुछ सालों में कई सहयोगी दलों ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया। वहीं दूसरी तरफ धीरे-धीरे कई विपक्षी दल एकजुट होने लगे। इसका विपक्षी एकजुटता का सबसे बड़ा उदाहरण नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के दौरान देखने को भी मिला। जब पीएम मोदी से उद्घाटन के विरोध में 19 पार्टियां समारोह से गायब रहीं। इसके अलावा दिल्ली में उपराज्यपाल को अधिकार देने वाले केंद्र सरकार के अध्यादेश के विरोध में भी एक दर्जन पार्टियां आम आदमी पार्टी के साथ आ गईं। ऐसे में सवाल उठता है कि वर्तमान में विपक्ष के एक साथ होने के बाद भाजपा की नई रणनीति क्या होगी? क्या पार्टी को पुराने साथी याद आ रहे हैं?
पिछले लोकसभा चुनाव से अब तक देश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा अपने कई साथियों को खो चुकी है। ऐसे में यह पार्टी आने वाले लोकसभा चुनाव से पहले अपने पुराने सहयोगियों को एक बार फिर वापस लाने की कोशिश में दिख रही हैं।
कहा जाता है कि केंद्र की बीजेपी सरकार और आंध्र की वाईएस जगन मोहन रेड्डी सरकार के बीच अच्छा तालमेल है। संसद में महत्वपूर्ण बिल पास कराने के मामले में वाईएसआर कांग्रेस, बीजेपी की भरोसेमंद साथी रही है। ऐसे में बीजेपी सैद्धांतिक तौर पर टीडीपी के साथ हाथ मिलाने की संभावना तो तलाश रही है लेकिन अपने भरोसेमंद साथी को भी दरकिनार नहीं करना चाहती है।
दूसरी तरफ बीजेपी के लिए तेलंगाना में संकट और बड़ा है क्योंकि एक तरफ यहां पार्टी नेताओं के बीच मतभेद देखने को मिल रहे हैं तो दूसरी तरफ यहां की सभी 119 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारना भी पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है। तो कर्नाटक में भी बीजेपी के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं। हाल में हुए विधानसभा चुनावों में यहां जनता दल सेक्युलर का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। यह पार्टी अब बीजेपी के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाना चाहती है। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगर इन दोनों का गठबंधन हुआ तो इससे प्रदेश में वोक्कालिगा समुदाय के वोट बीजेपी के पाले में आ सकते हैं और पार्टी प्रदेश में लिंगायत पार्टी के तौर पर बनी अपनी पहचान को थोड़ा और विस्तार दे सकती है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि जनता दल हसन, मांड्या, बेंगलुरु (ग्रामीण) और चिकबल्लारपुर सीटें अपने लिए चाहती है जबकि बीजेपी इस पर अभी विचार कर रही है। अगर बिहार की बात करें तो बीजेपी को उम्मीद है कि जदयू और राजद के साथ आने से नाराज़ नेता उनके खेमे में आ सकते हैं। बीजेपी का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर भूमिका निभाने के लिए नीतीश कुमार को आगे करने की वजह से सीएम पद पर तेजस्वी यादव की दावेदारी मजबूत होती जा रही है जिससे जदयू के कुछ नेता नाराज हो एनडीए में शामिल हो सकते हैं।