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भाजपा ने कार्यकारिणी का ऐलान किया पर वसुंधरा राजे गुट को रखा बाहर

भाजपा ने कार्यकारिणी का ऐलान लिया पर वसुंधरा राजे गुट को रखा बाहर

राजस्थान में जारी सियासी रस्साकशी के बीच भाजपा ने कार्यकारिणी का ऐलान कर दिया। लेकिन वसुंधरा राजे गुट को इससे दरकिनार रखा गया। प्रदेश संगठन ने कार्यकारिणी में 12 जिलों को छोड़कर सभी जिलों का प्रतिनिधित्व तय कर दिया। कार्यकारिणी में मेवाड़ के दो सांसदों, हाड़ौती से दो विधायकों को जगह दी गई है। इसके अलावा जयपुर जिले से एक विधायक, जैसलमेर, बाड़मेर, झालावाड़, बीकानेर, टोंक, जालौर, बांसवाड़ा, पाली, भीलवाड़ा, अलवर, करौली और धौलपुर पदाधिकारियों की नियुक्ति दी गई है। लेकिन कार्यकारिणी में वसुंधरा राजे गुट को दरकिनार रखते हुए केवल उनके खेमे के सिर्फ तीन नेताओं को शामिल किया गया है। लेकिन पार्टी ने वसुंधरा राजे से जुड़े जिले झालावाड़ और धौलपुर में किसी भी व्यक्ति को अभी तक प्रतिनिधित्व नहीं दिया है। बताया जा रहा है कि प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां, संगठन महामंत्री चंद्रशेखर और सदन के उपनेता राजेंद्र राठौड़ ने फ्री हेंड होकर सूची बनाई और उन्हीं को जगह मिली जो इन तीनों नेताओं के करीबी माने जाते हैं।

कोटा से चंद्रकांता मेघवाल, चितौड़ से सीपी जोशी, जयपुर से सरदार अजयपाल सिंह, दौसा जिले से अलका सिंह गुर्जर, जोधपुर से प्रसन्न मेहता, झुंझुनूं से मुकेश दाधीच, बारां से हेमराज मीणा, नागौर से माधोराम चौधरी को उपाध्यक्ष बनाया गया है। वहीं बारां से मदन दिलावर, भरतपुर से भजनलाल शर्मा, जयपुर से दीया कुमारी, डूंगरपुर से सुशील कटारा को महामंत्री का कार्यभाल सौपा गया है। जहां तक प्रदेश महामंत्री की बात है तो अशौक सैनी हनुमानगढ़ भादरा से, महेंद्र यादव जयपुर से, जितेंद्र गोठवाल सवाई माधोपुर से, के.के. विश्नोई को जोधपुर से, श्रवण सिंह बगड़ी सीकर से, बिजेंद्र पूनियां श्रीगंगानगर से, मधु कुमावत सीकर से, महेंद्र जाटव भरतपुर से और अजमेर से वंदना नोंगिया को जिम्मेदारी दी गई है। इसके अलावा विधायक रामलाल शर्मा, प्रदेश कोषाध्यक्ष रामकुमार भूतड़ा नागौर, प्रदेश सह-कोषाध्यक्ष पंकज गुप्ता चूरू और कार्यालय मंत्री पद पर राघव शर्मा जयपुर को प्रदेश मुख्य प्रवक्ता पद की जिम्मेदारी दी गई।

एक तरह से देखा जाए तो पूरे वसुंधरा खेमें को बाहर कर दिया है। एक समय था जब राजस्थान में भाजपा का मतलब वसुंधरा राजे हुआ करता था। लेकिन वसुंधरा के विधानसभा चुनाव हारने के बाद से ही साइडलाइन किया जाना शुरू कर दिया गया था। इसी को ध्यान में रखते हुए राजे विरोधी गजेन्द्र सिंह और अर्जुन मेघवाल को केंद्रीय मंत्री में जगह दी गई थी। इतना ही नहीं जब ओम बिड़ला को लोकसभा अध्यक्ष बनाया तब भी यह कहा गया कि ये सब महारानी को निपटाने के लिए किया गया है। ऐसा लगा था कि दुष्यंत सिंह को मंत्री बनाया जाएगा पर ऐसा हुआ नहीं। वसुंधरा को लेकर लोगों को उम्मीद थी कि उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा और उसके बाद मंत्री बनाया जाएगा पर अब उसकी भी उम्मीद बाकी न रही।

एक जमाना था जब वसुंधरा राजे की प्रदेश की राजनीति में तूती बोलती थी। एक बार जब मोदी-शाह ने गजेन्द्र सिंह को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष बनाने की कोशिश की तो वसुंधरा ने सीधे केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती दे दी थी। इसके बाद मोदी-शाह को महारानी के सामने झुकना पड़ा था। उसके बाद बीच का रास्ता निकालते हुए मदनलाल सैनी को अध्यक्ष बनाया गया। फिर चुनाव में वसुंधरा की पसंद के हिसाब से टिकटें बांटी गईं। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने विधानसभा चुनाव हारते ही महारानी को आईना दिखाना शुरु कर दिया। यहां तक की वसुंधरा की पसंद को दरकिनार करते हुए लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल के साथ गठजोड़ किया गया। परिणाम बाद में ये हुआ कि आगे चलकर गजेन्द्र सिंह, अर्जुन मेघवाल और ओम बिड़ला को मंत्री और स्पीकर पद से नवाजा गया। ये तीनों ही नेता वसुंधार के घोर विरोधी माने जाते हैं। हनुमान बेनीवाल वही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सांसद हैं जिन्होंने दो हफ्ते पहले वसुंधार पर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने वसुंधरा पर आरोप लगाया था कि वो गहलोत सरकार को गिरने से बचाने में लगी हैं। बेनीवाल ने एक ट्वीट कर कहा था कि पूर्व सीएम वसुंधरा राजे अशोक गहलोत की अल्पमत वाली सरकार को बचाने का पुरजोर प्रयास कर रही हैं। राजे द्वारा कांग्रेस के कई विधायकों को इस बाबत फोन भी किए गए। उन्होंने ये भी आरोप लगाया था कि सीकर और नागौर जिले के जाट विधायकों को राजे ने खुद बात की और सचिन पायलट से दूरी बनाने को कहा।

भाजपा कार्यकारिणी के बाद जो तस्वीर सामने आई है उससे साफ लगता है कि आगे चलकर वसुंधरा राजे और नरेंद्र मोदी खेमें के बीच ठन्ने वाली है। वसुंधरा की चुप्पी भी बता रही है कि आगे चलकर कुछ ऐसा होगा जिसकी उम्मीद किसी को नहीं होगी। भाजपा बस प्रदेश की राजनीति के लिए ऐसे चेहरे की तलाश में है जो महारानी को टक्कर दे सके। इस बात की उम्मीद भी अब नहीं रही कि अगला चुनाव वसुंधरा के नेतृत्व में लड़ा जाए। हालांकि, इस बात की उम्मीद भी कम है कि महारानी आसानी से हार मान जाएंगी। यही वजह है कि वो गहलोत-पायलट विवाद के बीच लगातार राजस्थान के दौरे कर रही है और लोगों से मिल रही हैं।

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