बात साल 2004 की है जब चुनाव हो चुके थे और सोनिया गाँधी के नेतृत्व में यूपीए द्वारा बहुमत हासिल कर लिया गया था। देश द्वारा मानसिक तौर पर सोनिया गाँधी को भारत की अगली प्रधानमंत्री भी स्वीकार कर लिया गया था। परन्तु इस राजनीति ने बेहद दिलचस्प टर्न लिया और सोनिया गाँधी का विदेशी मूल का होना ही उन्हें भारी पड़ गया जिसके बाद इस मुद्दे पर उनकी घेराबंदी भी हुई।

इन सब के बीच सोनिया ने अपना नाम पीएम बनने की दौड़ से बाहर कर लिया और फिर कांग्रेस के भीतर शुरू हुई प्रधानमंत्री की तलाश जो सिर्फ तीन नामों पर आकर ख़त्म हुई जिसमें मनमोहन सिंह, अर्जुन सिंह और प्रणब मुख़र्जी शामिल थे। अर्जुन सिंह का दावा कमज़ोर था तो वहीं मनमोहन सिंह को प्रणब मुख़र्जी पर महज़ इसलिए तरजीह मिली क्योंकि प्रणब दा ठीक से हिंदी नहीं बोल पाते थे। हालाँकि कहा यह भी जाता है कि उनकी कठपुतली न बनने की आदत ने ही उनके और पीएम पद के बीच रोड़ा अटकाया था। इस कारण वह प्रधानमंत्री नहीं बन पाए।

इंदिरा की असामायिक मौत के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, तब प्रणब दा ने सारी ज़िम्मेदारी संभाली थी। हालांकि ये आरोप भी उनपर लगाया गया कि इंदिरा के बाद वो ख़ुद सत्तासीन होना चाहते थे। इन सभी आरोपों को उन्होंने अपनी किताब ‘दी टर्ब्युलंट इयर्स’ में बड़ी सख्ती से खारिज किया है।
राजीव के सत्तासीन होने के बाद प्रणब मुखर्जी का करियर डगमगाने लगा। कांग्रेस द्वारा पहले उन्हें दरकिनार कर दिया गया फिर छह सालों के लिए कांग्रेस से निलबिंत भी कर दिया गया। रुष्ट होकर उन्होंने एक नयी पार्टी बना ली। जिसका नाम था ‘राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी’ हालाँकि पार्टी का जीवनकाल बहुत कम रहा और तीन साल के अंदर ही इसका कांग्रेस में विलय हो गया।

प्रणब दा के करियर ने फिर से उड़ान भरी सन 1991 में जब राजीव गांधी की हत्या के बाद पी. वी नरसिम्हा राव ने उन्हें प्लानिंग कमीशन का डिप्टी चेयरमैन बनाया। राव गवर्नमेंट में ही उन्होंने पहली बार विदेश मंत्री का पदभार संभाला। यहां एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि जब राव प्रधानमंत्री बने थे तब उन्होंने मुखर्जी को अपनी कैबिनेट का हिस्सा नहीं बनाया था। राव के अच्छे दोस्त कहलाने वाले प्रणब दा के लिए और बाकी राजनीतिक जानकारों के लिए भी ये हैरानी की बात थी। राव ने प्रणब दा से कहा था के वो इसका कारण उन्हें ‘बाद में’ बताएंगे। जो बाद अभी तक नहीं आई।

एक बहुत ही दिलचस्प किस्सा है जब उनकी बहन उनसे मिलने आई थी। ये उस वक़्त की बात है जब प्रणब दा पहली बार सांसद बने थे। उनसे मिलने उनकी बहन आई हुई थी। अचानक चाय पीते हुए प्रणब दा ने अपनी बहन से कहा कि वो अगले जनम में राष्ट्रपति भवन में बंधे रहने वाले घोड़े के रूप में पैदा होना चाहते हैं। इस पर उनकी बहन अन्नपूर्णा देवी ने झट से कहा कि, ‘घोड़ा क्यों बनोगे? तुम इसी जनम में राष्ट्रपति बनोगे और ’वो भविष्यवाणी सही भी साबित हुई। प्रणब दा दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के महामहिम बने भी।

अपने अब तक के राजनीतिक जीवन में प्रणब दा ने कई सारी जिम्मेदारियां निभाईं। उन्होंने भारत सरकार के लिए विदेश, रक्षा, वाणिज्य और वित्त मंत्रालय में भी काम किया। वो राज्यसभा मेंबर के तौर पर 5 बार चुने गए और 2 बार लोकसभा सांसद बने।
34 वर्ष की आयु में ही अपना पॉलिटिकल करियर शुरू करने वाले प्रणब दा का जन्म बंगाल के बीरभूम जिले के मिराती में हुआ। राजनीति में आने से पहले प्रणब दा एक कॉलेज के लेक्चरर थे।