वर्ष 2002 में बिलकिस बानो के साथ हुए सामूहिक बलात्कार और परिवार के सदस्यों की हत्या के आरोप में, समय से पहले रिहा किये गए आरोपियों के विरोध में डाली गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई एक दोषी के गायब होने की वजह से आज एक बार फिर टल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की दोषी के लिए दो गुजराती अखबारों में पब्लिक नोटिस जारी करने के निर्देश दिए हैं। जिसमें यह उल्लेखित होगा की अगर दोषी अदालती कार्रवाई में शामिल नहीं होगा, तो एक पक्षीय कार्रवाई होगी।
अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 जुलाई को होगी। बिलकिस के आरोपी प्रदीप आर मोड्या को कोर्ट का नोटिस सर्व नहीं हुआ था। बताया जा रहा है कि वह घर पर नहीं है और उसका फोन भी बंद आ रहा है। गौरतलब है कि इस मामले की पिछली सुनवाई भी इसी वजह से स्थगित कर दी गई थी।
क्या है मामला
न्याय की गुहार लगा रही है। लेकिन अब तक उन्हें पूर्ण रूप से न्याय नहीं मिल पाया है। सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो गैंगरेप केस के दोषियों की रिहाई से जुड़ी याचिका पर होने वाली सुनवाई किसी न किसी वजह से लगातार टलती जा रही है। पिछले साल गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो के इन गुनहगारों की सजा अवधि पूरी होने से पहले ही उन्हें रिहा कर दिया था। जिसके विरोध में बिलकिस बानो सहित कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की। इन याचिकाओं में अपील कि गयी थी की गैंगरेप के दोषियों को छोड़े जाने का गुजरात सरकार का फैसला रद्द किया जाए। लेकिन इस अपील पर सुनवाई नहीं हो पा रही है। जस्टिस केएम जोसेफ की खंड पीठ ने 2 मई को इस मामले की अंतिम सुनवाई की तारीख तय की थी। जिसकी सुनवाई स्थगित हो गई है। रिपोर्टों के अनुसार सुनवाई के दौरान जस्टिस जोसेफ ने आरोपियों को यह तक कह दिया कि ‘वे चाहते ही नहीं, ये बेंच मामले की सुनवाई करे।’
पिछली बार भी बिलकिस बानो केस में शामिल आरोपियों की तरफ से पेश हुए कुछ वकीलों ने बिलकिस बानो के हलफनामे पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि इस मामले में शामिल कुछ आरोपियों को कोर्ट का नोटिस नहीं मिला है और जब तक ये सभी कोर्ट में उपस्थित नहीं होते तब मामले पर सुनवाई नहीं की जा सकती।
इसपर बिलकिस ने कोर्ट से मांग की थी कि आरोपियों को मिले नोटिस को डीम्ड सर्विस घोषित किया जाए, क्योंकि उन आरोपियों ने कोर्ट में उपस्थिति दाखिल करने का नोटिस लेने से मना कर दिया है। जिसके जवाब में आरोपियों की ओर से उपस्थित वकील ने कहा कि बिलकिस ने हलफनामा में झूठा है कि आरोपियों ने नोटिस लेने से इनकार कर दिया क्योंकि पोस्टल रिकॉर्ड यह कहते हैं कि उन्हें कोई नोटिस नहीं मिल पाया क्योंकि वे शहर में ही नहीं हैं। जिसके कारण 2 मई को होने वाली सुनवाई स्थगित हो गई थी। सुनवाई के इतने बार टाले जाने से यह प्रतीत होता है कि आरोपियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है और बार बार सुनवाई को स्थगित किया जा रहा है ताकि जस्टिस जोसेफ इस मामले की सुनवाई न करें।
क्या हुआ था बिलकिस बानो के साथ
गौरतलब है कि 27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे में आग लगने की घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई। इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे। इस हिंसा से बचने के लिए बिलकिस बानो, जो उस समय पांच महीने की गर्भवती थी, अपनी बच्ची और परिवार के 15 अन्य लोगों के साथ अपने गांव से भाग गई थीं। तीन मार्च 2002 को वे दाहोद जिले की लिमखेड़ा तालुका में जहां वे सब छिपे थे, वहां 20-30 लोगों की भीड़ ने बिलकिस के परिवार पर हमला किया था। यहां बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, जबकि उनकी बच्ची समेत परिवार के सात सदस्य मारे गए थे। बिलकिस द्वारा मामले को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में पहुंचने के बाद उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई जांच के आदेश दिए थे। जिसके बाद साल 2004 में आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था।इस मामले की सुनवाई अहमदाबाद में शुरू हुई थी, लेकिन बिलकीस बानो ने आशंका जताई थी कि गवाहों को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, साथ ही सीबीआई द्वारा एकत्र सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती, जिसके बाद न्यायालय ने अगस्त 2004 में मामले को मुंबई स्थानांतरित कर दिया था।
सीबीआई की विशेष अदालत ने 21 जनवरी 2008 को बिलकीस बानो से सामूहिक बलात्कार और उनके सात परिजनों की हत्या का दोषी पाते हुए 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। इसके अलावा भारतीय दंड संहिता के तहत एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश रचने, हत्या और गैरकानूनी रूप से इकट्ठा होने के आरोप में दोषी ठहराया गया था। हालांकि सीबीआई की विशेष अदालत ने सात अन्य आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था। एक आरोपी की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी। इसके बाद 2018 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी व्यक्तियों की दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए सात लोगों को बरी करने के निर्णय को पलट दिया था।