इंसान जहां जन्म लेता है वह उसकी जन्मभूमि होती हैं, लेकिन जहां वह कार्य करता है वह कर्मभूमि कहलाती है। ऐसी एक युवती है शगुन, जिसकी जन्मभूमि बिहार हैं तो कर्मभूमि देवभूमि उत्तराखंड है। शगुन बिहार में पैदा हुई और दिल्ली में पढ़ाई लिखाई पूरी की। लेकिन उसने कर्मभूमि बनाया उत्तराखंड को। उस उत्तराखंड को जहां की धरती भूकंप के हिलोरे से ही कांप उठती है। देवभूमि की इस धरती पर भूकंप ने अब तक हजारों घर उजाडे है।
12 देशों के लोग आ चुके है ट्रेनिंग लेने
ऐसे में बिहार की सगुन ने उत्तराखंड में भूकंप रोधी घर बनाने का सपना देखा। आज उसका सपना साकार हो रहा है। नैनीताल के पास स्थित मेहरोडा गांव में शगुन सिंह ने मिट्टी और लकड़ी के घरों को बनाकर प्रदेश में और देश में भूकंपरोधी घर बनाने की नई तकनीक ईजाद कर दी है। शगुन की इस तकनीक को देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सराहा जा रहा है। अब तक
ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, अमेरिका, फ्रांस, इटली, जर्मनी, मेक्सिको, जापान और पड़ोसी देश नेपाल सहित 12 देशों के लोग शगुन सिंह के इन भूकंप रोधी घरों को देखने और ट्रेनिंग लेने नैनीताल के गांव महरोडा पहुंच चुके हैं।
1991 के उत्तरकाशी भूकंप से लिया सबक
महरोड़ा में बनाए गए इन भूकंपरोधी घरों को नेचुरल हाउस नाम दिया गया है। शगुन सिंह के अनुसार इसका नाम नेचुरल हाउस इसलिए रखा गया है, क्योंकि यह सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडे होते हैं। यही कारण है कि देश के साथ-साथ विदेशों में भी ऐसे घर बनाने का क्रेज बढ़ रहा है। लोग अब इस पद्धति को अपना रहें हैं। सगुन सिंह ने वर्ष 1991 में उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में आए भीषण भूकंप में हुई भारी तबाही से सबक लेकर यह घर बनाकर लोगों को इस और प्रेरित किया हैं।
याद रहे कि साल 1991 में जब उत्तराखंड बना नहीं था तब वो उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था उस साल वहां अक्टूबर में 6.8 तीव्रता का भूकंप आया बताते हैं कि इस आपदा में कम से कम 700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और हजारों घर तबाह हो गए थे। इसके अलावा 1999 में चमोली जिले में आए 6.8 तीव्रता के भूकंप ने 100 से अधिक लोगों की जान ले ली थी वहीं पड़ोसी जिले रुद्रप्रयाग में भारी नुकसान हुआ था सड़कों एवं जमीन में भूकंप की वजह से दरारें आ गई थीं।
सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडे होते हैं ये घर
सगुन सिंह के बनाए ये भुकंपरोधी घर अर्थ बैग, कॉब, एडोनी, टिम्बर फ्रेम और लिविंग रूफ तकनीक से घर बनाए जाते हैं। मिट्टी के घरों के लिए सीमेंट के खाली बैग में मिट्टी को भरकर दीवार तैयार की जाती है। उसके बाद लकड़ी से घर की छत बनाई जाती है। मिट्टी से बने इन घरों को बनाना किफायती भी होता है। मिट्टी के बने घरों को नेचुरल हॉउस कहा जाता है। क्योंकि ये घर सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडे होते हैं। सर्दियों में ये घर सूरज की गर्मी को सोख लेते हैं और रात में घर को गर्म रखते हैं। गर्मियों में हवा से नमी को सोखते हैं और रात में घर को ठंडा रखते हैं। इसके साथ ही भूकंप का इनपर असर ना के बराबर होता है।
60 के दशक में ईजाद हुई थी यह तकनीक
इस तकनीक में बैग्स को मिट्टी से भरा जाता है और इन्हें ईंटों की तरह इमारत बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह तकनीक 60 के दशक में एक ईरानी-अमेरिकन आर्किटेक्ट नादेर खलीली द्वारा ईजाद की गयी थी। यह बहुत ही कम लागत और सस्टेनेबल घर-निर्माण की तकनीक है।
दिल्ली की कॉर्पोरेट सेक्टर की नौकरी छोड आई पहाडों पर
मूल रूप से बिहार की रहने वाली शगुन ने अपनी पढ़ाई दिल्ली से की। लगभग 10 साल तक कॉर्पोरेट सेक्टर में काम किया और फिर अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर अपनी जड़ों यानि पहाडों की और लौट आई। सगुन ने “गीली मिट्टी” नाम से एक स्वयं सेवी संस्था भी बनाई है।
पिछले कुछ वक्त से उत्तराखंड के हिमालयी जिलों में लगातार भूकंप के झटके महसूस हो रहे हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तराखंड भूकंप के लिहाज से हमेशा अति संवेदनशील रहा है। आने वाले वक्त में यहां बड़े भूकंप की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। उत्तराखंड भूकंप के लिहाज से अति संवेदनशील जोन पांच और संवेदनशील जोन चार में आता है। हिमालयी क्षेत्र में इंडो-यूरेशियन प्लेट की टकराहट के चलते जमीन के भीतर से ऊर्जा बाहर निकलती रहती है। जिस वजह से भूकंप के झटके महसूस होते हैं।
घर, गाड़ी, जायदाद सब था, लेकिन सुकून नही था
सगुन बताती हैं कि सब कुछ बढ़िया था। उसने घर, गाड़ी, जायदाद- बहुत कम समय में बहुत कुछ हासिल कर लिया था। लेकिन फिर भी एक सुकून नहीं था। हमेशा लगता था कि इतना सब कुछ किसके लिए कर रहे हैं, न साफ हवा है, न साफ पानी और न ही स्वस्थ खाना-पीना। इसलिए सोचती थी कि कुछ अलग करूंगी। पर अच्छे काम का कोई शुभ मुहूर्त नहीं होता। इसलिए जब दिल में आ जाये तभी उस पर काम करना चाहिए, वरना हम कभी चीज़ों से बाहर नहीं निकल पाते हैं।
लडकियों को सिखाती हैं आत्मरक्षा के गुर
बस इसी सोच के साथ शगुन ने अपनी नौकरी छोड़ी और बस खुद पर विश्वास किया। सबसे पहले तो उन्होंने नौकरी छोड़ने के बाद उन सब चीज़ों को सीखना शुरू किया, जो उन्हें पसंद थी। उन्होंने मार्शल आर्ट सीखा और आज बहुत जगह लड़कियों को आत्म-रक्षा के गुर भी सीखा रही हैं।
मेहरोडा में साकार हुआ सगुन के सपनों का घर का सपना
इसके बाद उन्होंने आर्किटेक्चर में हाथ आज़माया। उन्होंने अलग-अलग तरह की आर्किटेक्चर वर्कशॉप लीं और जाने-माने लोगों से सस्टेनेबल घर बनाने की बहुत-सी तकनीक सीखीं। शगुन ने फैसला किया कि उन्हें शहर में नहीं रहना है और संयोग से उन्हें उत्तराखंड में नैनीताल से 14 किलोमीटर दूर पंगोत के पास एक गाँव, मेहरोडा में ज़मीन भी मिल गई। जहा सगुन ने अपने सपनों के घरों को साकार किया।
महरोड़ा में बने भूकंपरोधी मकान दिखने में काफी आकर्षक हैं। ये घर हल्की तीव्रता वाले भूकंप सह सकते हैं। अगर भूकंप आता भी है तो लोगों को जान माल की हानि नहीं होगी। साथ ही छत का भार कम हो तो ये और भी अधिक कारगर साबित हो सकते हैं।
– प्रो. सीसी पंत, भूगर्भ वैज्ञानिक
गांव के लोगों को सगुन दे रही रोजगार
सगुन कहती हैं कि मैंने शहर में जो भी मेरी प्रॉपर्टी थी, सभी कुछ बेच दी और यहा मेहरोडा गाँव में अपना घर खुद बनाने का निश्चय किया। यहीं पर सगुन ने साल 2015 में भुकंपरोधी मकानों की नींव रखी। इस दौरान वह इस गाँव के लोगों से इतनी घुल मिल गई कि गाँव के ही किसी न किसी परिवार के साथ रहने लगी। सबसे अच्छी जान-पहचान हो गई। वहां के स्थानीय लोगों को उसने अपने साथ काम में लगा लिया और साथ ही उनके लिए रोज़गार भी दिया गया। सगुन सिंह कहती है कि वहां जिस बात ने मुझे सबसे ज़्यादा परेशान किया वह थी कि लोग अपने पुराने प्राकृतिक रूप से बने घरों को तोड़कर पक्के घर बनाने में लगे थे।
पक्के घर का कांसेप्ट हो तो अर्दन तकनीक से
पक्के घर का कांसेप्ट हमारे यहां सिर्फ ईंट और सीमेंट से बने घरों तक ही सीमित है। जबकि पक्के घर से अभिप्राय ऐसे घर से होना चाहिए जो कि पर्यावरण के अनुकूल हो और जिसमें प्राकृतिक आपदाओं को झेलने की ताकत हो जैसे कि बाढ़, भूकंप आदि। अर्दन तकनीक से बने घरों में ये सभी खूबियां होती हैं।
नेपाल से मिली थी भुकंपरोधी घर बनाने की सीख
शगुन सिंह बताती हैं कि नेपाल भूकंप के दौरान सिर्फ़ इस तकनीक से बने घर ही भूकंप को झेल पाए थे और गिरे नहीं थे। इसलिए जब उसने नेपाल में इस तरह का चलन देखा तो उसने इस विषय पर कुछ करने की ठानी। उन्होंने अपने घर को लोगों के लिए एक उदाहरण बनाने का फैसला किया। उन्होंने प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल करके सस्टेनेबल के साथ-साथ मॉडर्न लुक वाला घर बनाया। इस घर की चर्चा इतनी हुई कि आज देश ही नहीं विदेशों से लोग नैनीताल के इस गाँव में इन घरों को देखने आते है।