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जहरीली शराब की जकड़ में बिहार

यह पहली बार नहीं है जब पूर्ण रूप से शराबबंदी के बावजूद बिहार में जहरीली शराब से लोगों की मौत हुई है, इससे पहले भी दर्जनों लोग जहरीली शराब का शिकार हुए हैं। इसके बावजूद नीतीश सरकार शराबबंदी को सफल बताने में जुटी है

पूर्ण शराबबंदी वाले राज्य बिहार में जहरीली शराब पीने से इस वर्ष लगभग 80 से अधिक लोगों की मौत हो गई राज्य में शराब पर प्रतिबंध के बावजूद इसकी अवैध बिक्री के धंधे ने बिहार को जकड़ लिया है। हालत यह है कि जहरीली शराब पीकर मरने वालों का ग्राफ दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। बिहार में 2016 से शराबबंदी कानून लागू है। इसके बावजूद राज्य में जहरीली शराब का कहर नहीं थम रहा है। 6 साल में अब तक 202 लोगों की जहीरीली शराब पीने की वजह से मौत हो चुकी है। इंसानों की जान ऐसे जा रही है, जैसे उसकी कोई कीमत ही नहीं है। बीते 12 दिसंबर को हुई इस घटना के बाद छपरा, इशुआपुर, मशरख, आमनौर और मढ़ौरा प्रखंड के अलग-अलग जगहों पर जहरीली शराब पीने से दर्जनों लोगों की मौत का मामला दिल्ली तक पहुंच गया है। विपक्षी पार्टी जहरीली शराब से हुई मौत पर सीएम नीतीश कुमार का इस्तीफा मांग रही हैं। दूसरी ओर सदन में नीतीश ने इसका बचाव करते हुए कहा है कि जो शराब पिएगा, वह मरेगा ही।

वर्ष 2021 में सबसे ज्यादा 90 मौतें
राज्य में जहीरीली शराब पीने की वजह से सबसे ज्यादा 2021 में 90 मौतें हुई थी। राज्य में 2020 में 9, 2019 में 9, 2018 में 9, 2017 में 8 और 2016 में 19 लोगों की मौत सरकारी आंकड़ों में दर्ज हैं। वहीं 2022 में अब तक करीब 82 लोग जहरीली शराब पीने से अपनी जान गवा चुके हैं। अधिकांश मौतें गोपालगंज, छपरा, बेतिया और मुजफ्फरपुर जिले में हुई हैं। लेकिन बीते दिनों राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने बताया कि बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद 6 साल में 1000 से ज्यादा लोग जहरीली शराब पीने से मरे, 6 लाख लोग जेल भेजे गए और केवल शराब से जुड़े मामलों में हर माह 45 हजार से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि बिहार में रोजाना 10 हजार लीटर और महीने में 3 लाख लीटर शराब जब्त की गई। बिहार पुलिस के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2016 के बाद से 6 वर्षों में 2 करोड़ 9 लाख 78 हजार 787 लीटर शराब जब्त की गई है। पुलिस मुख्यालय द्वारा मीडिया से साझा किए गए आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार पिछले साल जनवरी से अक्टूबर के बीच 62 हजार 140 लोगों को शराब के व्यापार में शामिल होने के कारण गिरफ्तार किया गया था।

सरकार पर विपक्ष हमलावर
जहरीली शराब से हफ्ते भर में तकरीबन 82 से ज्यादा लोगों की मौत पर मचे सियासी घमासान के बीच सरकार पर विपक्षी पार्टियां हमलावर हैं। विपक्षी पार्टियां यह आरोप लगा रही हैं कि जहरीली शराब से मरने वालों के परिजनों को पुलिस ठंड से हुई मौत बताने के लिए मजबूर कर रही है। जहरीली शराब से मरने वालों के आंकड़ों में भी गड़बड़ी साफ झलक रही है। जब विपक्षी पार्टियों द्वारा शराब से मरने वालों के परिजनों को मुआवजा देने के लिए नीतीश कुमार पर दबाव बनाया तो उन्होंने साफ कह दिया कि जो पिएगा, वह मरेगा। हम एक पैसा नहीं देने वाले हैं। जबकि इससे पहले राज्य सरकार 4 लाख रुपए का मुआवजा देती थी। भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी का कहना है कि बिहार उत्पाद अधिनियम 2016 की धारा 42 में 4 लाख रुपए मुआवजे का प्रावधान है। गोपालगंज में जहरीली शराब से मरने वालों में 14 मृतकों के परिवारों को 4-4 लाख रुपए का मुआवजा सरकार ने दिया था।

दरअसल बिहार में शराबबंदी के बाद जहरीली शराब से मौत का सबसे पहला मामला साल 2016 में गोपालगंज जिले के खजूर बनी से सामने आया था। तब मृतकों के परिजनों को नीतीश कुमार की ही सरकार ने 4-4 लाख रुपए मुआवजा दिया था। गोपालगंज में मुआवजा देने वाले नीतीश कुमार सारण जिले में हुई मौतों पर मुआवजा देने से अब मना कर रहे हैं। सारण में जिन लोगों की मौत जहरीली शराब से हुई है, वे बेहद गरीब, पिछड़े और दलित परिवारों के थे। इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि थाने में जब्त कर रखी गई स्पिरिट से ही सारण में जहरीली शराब बनाई गई थी। मद्य निषेध विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने इस कांड के बाद सभी जिलों के डीएम को निर्देश जारी किया है। केके पाठक ने पत्र में लिखा है कि बिहार के सभी पुलिस और उत्पाद थानों में जब्त कर रखी गई स्पिरिट की जांच कर एक हफ्ते के भीतर नष्ट कर दी जाए। इस पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी करानी है। सारण में मौतों को देखते हुए अपर मुख्य सचिव ने जिला अधिकारी से कहा कि उत्पाद थाने तथा पुलिस थाने के मालखानों का दंडाधिकारियों की टीम गठित कर निरीक्षण कराएं।

शराबबंदी कानून में संशोधन
वर्ष 2022 में बिहार सरकार ने शराबबंदी कानून संशोधन विधेयक में कई नियमों में बदलाव किए थे। जिसके तहत पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने पर 2 से 5 हजार रुपये के बीच जुर्माना देना होगा। अगर कोई जुर्माना नहीं देता है तो उसे एक महीने की जेल की सजा का प्रावधान है। जबकि पहले की नीति में जुर्माना 50 हजार था। इसके बावजूद भी बिहार में लगातार जहरीली शराब पीने से हो रही मौतों को लेकर सरकार को
आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है।

दरअसल, जब नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी कानून लागू किया था तब वह राष्ट्रीय जनता दल के साथ सरकार चला रहे थे। उस वक्त आरजेडी नीतीश के शराबबंदी कानून का समर्थन कर रही थी, लेकिन जैसे ही साल 2017 में नीतीश आरजेडी से अलग हुए और तेजस्वी यादव नेता प्रतिपक्ष बने, तब उन्होंने शराबबंदी को लेकर नीतीश कुमार को घेरना शुरू कर दिया। तेजस्वी यादव ने तो यहां तक कहा था कि बिहार में शराब की होम डिलीवरी नीतीश कुमार की पुलिस ही करवा रही है। नीतीश सरकार में सहयोगी और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी शराबबंदी कानून खत्म करने की वकालत कर चुके हैं। मांझी ने आरोप लगाया कि इस कानून से गरीबों को पुलिस दबाती है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट भी बिहार सरकार को कड़ी फटकार लगा चुकी है। कोर्ट ने शराबबंदी के तहत दर्ज केसों की वजह से बिहार में न्यायालयों का दम घुट रहा है। बिहार सरकार ने बिना समझे इस कानून को बना दिया।

पूर्ण शराबबंदी वाले राज्य बिहार में कुछ लोग कटाक्ष भरे लहजे में यह कहते हैं कि बिहार में शराब ईश्वर की तरह है, जो मौजूद तो हर जगह है लेकिन, दिखाई सिर्फ उन्हें देता है, जो उसके सच्चे भक्त हैं। लोगों का यह भी कहना है कि पुलिस प्रशासन की मिलीभगत की वजह से शराब माफिया धड़ल्ले से बिहार में शराब की बड़ी खेप पहुंचा रहे हैं। शहर में तो शराब चोरी-छिपे बेची जा रही है लेकिन गांव में तो हालात इतने बदतर हैं कि खुलेआम पुलिस के नाक के नीचे ना सिर्फ शराब बेची जा रही है बल्कि लोग वहां शराब पी भी रहे हैं।

देश में बीते 6 साल में हुईं 6000 से ज्यादा मौतें
केंद्र सरकार के मुताबिक 2016 से 2022 के बीच पूरे भारत में जहरीली शराब पीने से 6,172 लोगों की मौत हुई है। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में गृहराज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि 2016 में 1054, 2017 में 1510, 2018 में 1365, 2019 में 1296 और 2020 में 947 लोगों की जहरीली शराब पीने से मौत हुई है। जहरीली शराब पीने से केवल बिहार में नहीं बल्कि देश के कई राज्य हैं जहां मौतें हो रही हैं। इन राज्यों में सबसे ऊपर है मध्य प्रदेश और पंजाब। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, राजस्थान, असम, आंध्र प्रदेश, पुडुचेरी और उत्तराखण्ड भी शामिल हैं।

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