- संदीप सिंह
इस साल पांच राज्यों के विट्टाानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। पूरे देश की नजरें इन चुनावों पर टिकी हुई हैं। कहीं राष्ट्रीय तो कहीं क्षेत्रीय पार्टियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है
वर्ष 2021 में किसान आंदोलन जहां देश का केंद्र बिंदु बना हुआ है, वहीं अब पूरे देश की निगाहें पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर भी टिकी हुई हैं। तमाम राजनीतिक पार्टियों के नेता लाव-लश्कर के साथ राज्यों के चुनावों में उतर चुके हैं। पश्चिम-दक्षिण राज्यों में बैठकें कर रहे हैं। देश के चार राज्य पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, असम और एक केंद्र शासित प्रदेश (पुडुचेरी) में इसी साल 2021 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इन राज्यों की बात करें तो अभी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, असम में बीजेपी, केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट, तमिलनाडु में एआईडीएमके की सरकार है। लेकिन पुडुचेरी जो एक केंद्र शासित प्रदेश है वहां अल्पमत होने के कारण कांग्रेस की सरकार गिर चुकी है। चुनाव आयोग ने इन राज्यों में शांतिपूर्ण चुनाव करवाने के लिए तारीखों से लेकर वोटरों और सुरक्षाकर्मियों तक के लिए प्रोटोकाल तैयार कर लिया है। इन राज्यों में राजनीतिक माहौल पूरा गर्म हो चुका है। राष्ट्रीय पार्टियों के साथ-साथ क्षेत्री पार्टियां भी इन चुनावों को जीतने के लिए पुरजोर कोशिश कर रही हैं। आइए जानते है इन पांच राज्यों के राजनीतिक हालात और किस पार्टी को किस राज्य में कितना हो रहा है फायदा- नुकसान।
असम में सीएए मुद्दा बढ़ाएगा भाजपा की चुनौती अमस में बीजेपी ने 2016 में सबसे ज्यादा सीटें जीतकर गठबंधन के साथ सरकार बनाई थी। असम ही एक ऐसा राज्य है जहां बीजेपी की सरकार होने के बावजूद भी सीएए का जमकर विरोध हो रहा है। असम में बीजेपी की टक्कर कांग्रेस से है। हालांकि क्षेत्रीय पार्टियां भी काफी महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। आल असम स्टूडेंट्स यूनियन भी राज्य की राजनीति में अहम स्थान रखती है। सीएए का सबसे ज्यादा विरोध इसी पार्टी के नेतृत्व में हुआ था।
नागरिकता संशोधन कानून का देशभर में इसलिए विरोध हो रहा था कि इसमें मुस्लिमों को जगह नहीं दी गई, लेकिन असम में इस कानून का विरोध इसलिए हो रहा है कि इस व्यवस्था से वहां का सामाजिक ताना-बाना बिगड़ जाएगा। इसे असम समझौते का उल्लंघन भी बताया जा रहा है। दिसंबर 2019 में जब इसके खिलाफ प्रदर्शन किया गया तो पुलिस की फायरिंग में 5 प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। असम में अब जबकि चुनाव होने जा रहे हैं, तो सीएए के खिलाफ भी आवाज उठ रही है। यही वजह है कि कांग्रेस ने सीएए को अपना प्रमुख एजेंड़ा बनाया है। इसके अलावा एनआरसी, अवैध प्रवासी, मूल निवासियों को जमीनों का हक, एसटी स्टेटस की मांग, गोरखा आटोमाॅमी काउंसिल इत्यादि मुद्दे विधानसभा चुनाव में भारी रहेंगे।
साल 2016 के चुनावों में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला। भाजपा 60 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी रही। जबकि उसके सहयोगी दल असमगण परिषद (एजीपी) के 14 और बीपीएफ में 12 विधायक जीते। सत्तारूढ़ गठबंधन को एक निर्दलीय विधायक का समर्थन भी मिला। वहीं कांग्रेस के 23 विधायक हैं, जबकि एआईयूडीएफ के सदन में 14 सदस्य हैं। लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सीएए के कारण कम सीटें मिलने के आसार हैं, तो कांग्रेस मुस्लिम नेताओं और सीएए को एजेंडा बनाकर वोट बटोरने में जुटी हुई है।
ममता का मनोबल नहीं तोड़ पा रही भाजपा
लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के बाद बीजेपी के हौसले बुलंद हो गए थे। चुनाव में बीजेपी ने ममता के गढ़ में बड़ी सेंध लगाते हुए 18 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। बंगाल में इस प्रचंड जीत के बाद एक बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ था कि क्या 2021 में बंगाल में बीजेपी अपनी सरकार बना सकती है? सवाल ये भी उठा खड़ा हुआ था कि क्या बंगाल में जिस तरह ममता ने लेफ्ट के गढ़ में सेंध लागते हुए 2011 के विधानसभा चुनाव में 184 सीटों पर जीत हासिल की थी वैसा ही कुछ 2021 में बीजेपी करने जा रही है? 2011 के विधानसभा चुनाव जिसमें ममता ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर लेफ्ट के किले को ढहा दिया था उससे ठीक दो साल पहले टीएमसी ने 2009 के आम चुनाव में बड़ी जीत हासिल करते हुए अपने सांसदों की संख्या एक से बढ़ाकर 19 कर दी थी और ऐसा ही कुछ इस बार बीजेपी ने किया है। उसने 2014 के मुकाबले अपने सांसदों की संख्या 2 से बढ़ाकर 18 कर दी है। अगर लोकसभा चुनाव के नतीजों का विधानसभा सीट वार विश्लेषण करें तो विधानसभा की कुल 294 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने लगभग 130 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई है, वहीं सत्तारूढ दल टीएमसी को मात्र 158 सीटों पर बढ़त मिली है।
इस चुनाव में पहली बार बंगाल के लोग ‘आमार शोनार बांग्ला’ की जगह भारतवर्ष हमारा है और भारत माता की जय के नारे लगाते हुए दिखाई दिए। बीजेपी महासचिव और पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय लोकसभा चुनाव के बाद दावा कर चुके हैं कि 2021 में बंगाल में बीजेपी की सरकार बनेगी। लेकिन ममता बनर्जी बीजेपी की जीत को सिरे से नकार रही हैं। हालांकि ममता के आधे से ज्यादा भरोसेमंद नेताओं ने टीएमसी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है, पंरतु फिर भी ममता बनर्जी बैकफुट पर जाने की बजाय फ्रंट पर आकर बीजेपी को टक्कर दे रही हैं। ममता जहां एक तरफ मुस्लिम वोटों को लेकर दावा कर रही हंै, मगर दूसरी तरफ मुस्लिमों के नए रहनुमा बने असुसद्दीन ओवैसी भी अपना झंड़ा गाड़ने के लिए बंगाल के चुनाव में अपने विधायक उतार रहे हैं। ओवैसी में बंगाल चुनाव लड़ने का हौसला बिहार में मिली पांच विधानसभा सीटों से आया। 2016 में 294 सदस्यीय विधानसभा में ममता बनर्जी की पार्टी ने 211 सीटें हासिल की थी। वाम- कांग्रेस गठबंधन तमाम पूर्वानुमानों के बावजूद कुछ खास नहीं कर सका और केवल 76 सीटों पर जीत दर्ज की थी। कांग्रेस इस बार भी वाम-दलों के साथ मिलकर चुनाव में उतरेगी।
पुडुचेरी में राष्ट्रपति शासन में होंगे चुनाव
मध्य प्रदेश के बाद यह दूसरी विधानसभा है जहां कांग्रेस अपनी सरकार बचाने में नाकाम रही। विश्वास प्रस्ताव पर मतदान से पहले मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी के इस्तीफे के चलते पुडुचेरी में कांग्रेस सरकार गिर गई। हाल ही में कई कांग्रेस विधायकों और बाहर से समर्थन दे रहे द्रमुक के एक विधायक के इस्तीफे के कारण केंद्र शासित प्रदेश की सरकार अल्पमत में आ गई थी। नारायणसामी ने उपराज्यपाल तमिलिसाई सौंदर्यराजन से भेंट कर चार सदस्यीय मंत्रिमंडल का इस्तीफा उन्हें सौंपा। अप्रैल- मई में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसे देखते हुए विपक्ष शायद ही सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति शासन लगाने का फैसला उपराज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन ने लिया है।
लेफ्ट के गढ़ में उतरे योगी
केरल में मई माह में 140 सीटों पर विधानसभा चुनाव करवाए जाएंगे। 15वीं केरल विधानसभा के लिए होने वाले इस चुनाव में सीपीआई (एम) सत्ता पर काबिज रहने के लिए चुनाव मैदान में उतरेगी, जबकि पांच साल बाद कांग्रेस उससे सत्ता छीनने की कोशिश करेगी और बीजेपी दक्षिण के इस राज्य में अपनी जोरदार मौजूदगी दर्ज करवाने के लिए चुनाव लड़ेगी। राज्य विधानसभा का कार्यकाल 1 जून, 2021 को खत्म हो जाएगा। 2016 के चुनाव में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) ने विधानसभा की करीब दो-तिहाई सीटें जीतकर कांग्रेस (आईएनसी) की अगुवाई वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) को हराया था, जिसे पिछले चुनाव में सिर्फ 47 सीटें मिली थीं।
लेफ्ट के किले में योगी आदित्यनाथ को उतार कर बीजेपी ने हल्ला बोल दिया है। केरल में हिंदुत्व के मुद्दों की जमीन बीजेपी को आरएसएस से मिली। जिसने जमीनी पकड़ बनाई और जमीनी संघर्ष में अपने 300 कार्यकर्ताओं की जान गंवाई। अब बीजेपी इन्हीं मुद्दों को लेकर केरल के चुनाव में आक्रामक राजनीति करने जा रही है। देश में ‘मेट्रो मैन’ के नाम से चर्चित 88 साल के ई श्रीधरन अपनी सियासी पारी बीजेपी से शुरू करने जा रहे हैं। केरल में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में ई श्रीधरन बीजेपी के टिकट से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं। लेकिन वहीं अगर हम बात कांग्रेस की करें तो केरल के वायनाड से राहुल गांधी सांसद हंै। ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी और कांग्रेस लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट को टक्कर दे पाएंगे?
द्रविड़ दलों से पीछे राष्ट्रीय दल
तमिलनाडु में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य के प्रमुख दलों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। फरवरी 1967 तक कंाग्रेस तमिल राजनीति के केंद्र में रही लेकिन फरवरी 1967 के बाद तमिल राजनीति में द्रविड़ राजनीति ने ऐसा बदलाव लिया कि आज तक तमिलनाडु द्रविड़ राजनीति के इर्द गिर्द ही घूम रही है। आलम ये है कि राष्ट्रीय दलों को द्रविड़ दलों के पीछे ही चलना पड़ रहा है न कि आगे। तमिलनाडु में कांग्रेस के अंतिम मुख्यमंत्री थे एम भक्त वत्सलम जिनका कार्यकाल रहा फरवरी 1967 तक। उसके बाद तमिलनाडु में द्रविड़ राजनीति की कहानी शुरू हुई जो आजतक जारी है।
2016 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव ने एक इतिहास दोहराया है। तमिनाडु में लगातार तीसरी बार सत्ता में आने का इतिहास एम जी रामचंद्रन के नाम था जो एआईएडीएमके के संस्थापक भी थे और उन्हीं की पार्टी की जे जयललिता ने 2016 में लगातार चुनाव जीतकर इतिहास को दोहराया। दूसरी तरफ डीएमके आस लगाए बैठी थी कि उनकी जीत तय है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। एआईएडीएमके ने 234 में से 136 सीट पाकर स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बना ली। डीएमके को सिर्फ 89 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा। राष्ट्रीय पार्टियों का हाल तो आपने देखा ही। कांग्रेस डीएमके के साथ थी इसलिए उसे 8 सीटें मिल गयी, लेकिन बीजेपी तो खाता तक नहीं खोल पाई। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले दो ऐसी घटना घटती हैं जो पूरी तमिल राजनीति और चुनाव को वर्षों से प्रभावित करते रही। जे जयललिता और एम करूणानिधि, स्वर्ग को सिधार गए। जयललिता का 2016 और करूणानिधि का 2018 में निधन हो गया। यदि लोकसभा के परिणाम को असेंबली सीट के लीड के रूप में देखें तो डीएमके को अपने बूते पर ही स्पष्ट बहुमत मिलता दिख रहा है। यानी डीएमके को 234 सीटों में से 138 सीटों पर बढ़त हासिल है। यदि नफा नुकसान के रूप में देखें तो डीएमके को 2016 में 89 सीटें मिली थी जबकि 2019 में डीएमके को 138 सीट यानी 49 सीटों का भारी फायदा हुआ था। अब आगे होगा क्या उसके लिए हमें अप्रैल मई 2021 का इंतजार करना होगा।