मोदी सरकार अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ के तहत पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को नए सिरे से परिभाषित करने में जुट गई है। विदेश मंत्री एस ़जयशंकर ताबड़तोड़ यात्राएं कर ऐसे पड़ोसियों को साधने में जुट गए हैं जिन्हें चीन बड़ी आर्थिक सहायता देकर अपनी तरफ आकर्षित कर चुका है। अपनी ‘स्टिं्रग्स ऑफ पर्ल्स’ नीति के अंतर्गत चीन भारत को घेरने की रणनीति बना चुका है। ऐसे में दक्षिण एशिया में चीन का वर्चस्व कम करने के लिए भारत अब ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ पर विशेष जोर देता नजर आ रहा है
रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दुनिया भर में तीसरे विश्व युद्ध के काले बादल मंडराने लगे हैं। ऐसी स्थिति में दुनिया भर के मुल्क अपने पड़ोसी देशों के साथ मजबूत संबंध बनाने में जुट गए हैं। वहीं भारत ने हमेशा पड़ोसी पहले नीति को प्राथमिकता दी है। भूकंप हो या कोई अन्य प्राकृतिक आपदा भारत ने हमेशा पड़ोसी मुल्कों की मदद ही की है। कोरोना महामारी के दौरान भी भारत ने पड़ोसी देशों को कोरोना वैक्सीन की मुफ्त खेप देकर सभी का दिल जीता था।

गौरतलब है कि पिछले हफ्ते भारत के विदेश मंत्री इस जयशंकर पड़ोसी देश मालदीव गए थे। इस दौरान मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने भारत की ‘पड़ोसी पहले नीति’ का स्वागत किया। मालदीव कोरोना महामारी के दौरान भारत द्वारा प्रदान की गई सहायता के लिए भी जयशंकर को धन्यवाद दिया। अब्दुल्ला शाहिद संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष भी हैं। उन्होंने मालदीव के साथ एकजुटता से खड़े रहने और वर्षों तक मालदीव का दोस्त और भागीदार बने रहने के लिए भारत को धन्यवाद दिया है। उन्होंने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि ‘मैं भारत को कोरोना महामारी के दौरान प्रदान की गई सहायता के लिए धन्यवाद देता हूं। हम आभारी हैं कि हम हमेशा जरूरत के समय भारत पर भरोसा कर सकते हैं। हमारे दोनों देशों ने महामारी की कठिनाइयों और त्रासदियों का अनुभव किया है, लेकिन हम उभर रहे हैं एक साथ मजबूत हो रहे हैं।’
गौरतलब है कि भारत चीन का मुकाबला करने के लिए हिंद महासागर में दो प्रमुख पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करना चाहता है, लिहाजा विदेश मंत्री एस ़जयशंकर ने मालदीव की अपनी यात्रा के दौरान, विदेश मंत्री अब्दुल्ला के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा और समुद्री सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा करने के अलावा स्वास्थ्य और शिक्षा पर समझौतों पर हस्ताक्षर किए। द्विपक्षीय वार्ता के बाद जयशंकर ने कहा कि, ‘मैं एक साल से अधिक समय के बाद मालदीव लौटा और बीच के समय में, कोविड के बावजूद, हमारे संबंधों में तेजी से प्रगति हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के तहत, हमारे सहयोग ने वास्तव में महामारी के समय पीड़ा को देखा और झेला है।’ भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि, ‘उन्होंने द्विपक्षीय साझेदारी पर व्यापक चर्चा की और विभिन्न क्षेत्रों में चल रही परियोजनाओं और पहलों का जायजा भी लिया।’ जयशंकर ने कहा, ‘हमने सामाजिक-आर्थिक विकास, व्यापार और निवेश और पर्यटन पर भी बात की है।

भारत और मालदीव संबंध बहुत लंबे अर्से से काफी घनिष्ठ रहा है और हिंद महासागर में मालदीव भारत का रणनीतिक साझेदार भी है। भारत अपने पड़ोसी देशों को जो आर्थिक और अन्य प्रकार की दूसरी मदद करता है, उसका सबसे बड़ा लाभार्थी मालदीव ही रहा है। भारत ने मई 2020 में मालदीव को 580 टन खाद्य सामग्री की आपूर्ति की थी। हालांकि मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन के कार्यकाल में मालदीव-भारत के संबंधों में खटास जरूर आई थी और मालदीव चीन के पक्ष में झुकता नजर आया था, लेकिन मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सालेह के कार्यकाल में फिर से भारत-मालदीव संबंध पटरी पर आ चुके हैं। दरअसल, मालदीव रणनीतिक तौर पर भारत के नजदीक और हिंद महासागर में समुद्री मार्ग पर स्थिति देश है। और चीन भी अपना नियंत्रण मालदीव पर करना चाहता है ताकि वो हिंद महासागर में अपने कदम बढ़ा सके, लिहाजा मालदीव के साथ बेहतर संबंध बनाना ही भारत के पक्ष में है।
नेपाल संग भी सुधरते रिश्ते
दूसरी ओर भारत का पड़ोसी देश नेपाल के साथ पिछले तीन चार सालों से भारत के संबंध उतार-चढ़ाव वाले रहे हैं लेकिन अब जब नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा इसी हफ्ते एक अप्रैल से तीन अप्रैल तक तीन दिवसीय भारत दौरे पर हैं। उनके इस दौरे को दोनों देशों के बीच संबंधों को लेकर अहम माना जा रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री अपने इस दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करेंगे। इसके अलावा वाराणसी भी जाएंगे। राजनायिक हलकों में इस दौरे को लेकर कहा जा रहा है कि भारत नेपाल के बीच कुछ समय से चल रहे विवाद के बीच दोनों देश एक बार फिर करीब आने का प्रयास कर रहे हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा का भारत में यह लंबे समय के बाद दौरा हो रहा है। वह वर्ष 2017 के बाद भारत आ रहे हैं। जुलाई 2021 में वह नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे। उसके पूर्व केपी शर्मा ओली के नेपाल के प्रधानमंत्री रहते हुए भारत और नेपाल के बीच पारस्परिक संबंधों में दूरी आ गई थी। 13 जुलाई 2021 को ओली के पीएम पद से हटने के बाद शेर बहादुर देउबा ने नेपाल में पीएम की कुर्सी संभाली थी। उसके बाद से ही भारत से नेपाल के संबंधों के नए सिरे से बहाली की उम्मीद जगी थी। इसके अलावा भी काशी विश्वनाथ और पशुपतिनाथ के बीच प्राचीनकाल से संबंध हैं। गंगा और बागमती नदी का गहरा नाता है। इस लिहाज से नेपाली पीएम का काशी दौरा दोनों देशों के बीच आपसी संबंधों को मजबूत करने में मददगार साबित हो सकता है।
श्रीलंका का सच्चा मित्र बन उभरा भारत
पड़ोसी पहले की पॉलिसी के तहत भारत ने उदारता का परिचय देते हुए आर्थिक संकट से जूझ रहे पड़ोसी देश श्रीलंका को भी खाद्य उत्पादों और अन्य जरूरी चीजों की खरीद के लिए एक अरब डॉलर की ऋण सुविधा प्रदान की है। पिछले दिनों श्रीलंका के वित्त मंत्री ने भारत यात्रा के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस ़जयशंकर के साथ आपसी हितों और आर्थिक सहयोग से जुड़े विविध विषयों पर व्यापक चर्चा की थी। इस दौरान राजपक्षे ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मुलाकात की थी। तब प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें आश्वस्त किया कि भारत एक पड़ोसी मित्र के रूप में श्रीलंका के साथ हमेशा खड़ा रहेगा। भारत ने पिछले महीने श्रीलंका के पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद में मदद करने के लिए 50 करोड़ डॉलर की ऋण सुविधा देने की घोषणा की थी। श्रीलंका वर्तमान में एक गंभीर विदेशी मुद्रा और ऊर्जा संकट से जूझ रहा है। भारत ने श्रीलंका की मदद करके उसे दिवालिया होने से बचाया था लेकिन खतरा अभी भी टला नहीं है। भारत के अलावा चीन ने भी श्रीलंका को काफी ऋण दिया है। श्रीलंका को इस बात की उम्मीद थी कि इससे उसका व्यापार बढ़ेगा लेकिन हुआ इसके विपरीत। चीन ने अपनी विस्तारवादी नीतियों के चलते श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को भी एक तरह से कब्जा कर लिया है। श्रीलंका में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप से भारत भी चिंतित था और इससे भारत-श्रीलंका के संबंधों में भी ठहराव आ गया था। लेकिन जब कभी भी श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाय राजपक्षे ने देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने की बात कही तब भारत ने हमेशा यही कहा कि वह श्रीलंका में बड़ी भूमिका निभाने को तैयार है। श्रीलंका के लोग मानते हैं कि उनकी डूबती अर्थव्यवस्था की वजह चीन से लिया गया कर्ज है। हालांकि इसका बड़ा कारण अधिक कमाई से ज्यादा खर्च का है। श्रीलंका के अधिकांश लोग यह भी मानते हैं कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था की चाबी भारत के पास है। भारत ही श्रीलंका को संकट की स्थिति से निकाल सकता है, इसलिए सरकार को भारत के साथ सहयोग करना चाहिए।
इसके अलावा श्रीलंका के उच्चायुक्त
मिलिंडा मोश गौड़ा ने भारत द्वारा मदद दिए जाने पर भारत सरकार का आभार जताया था और उन्होंने यह भी कहा था कि एक बार जरूरी सैक्टर्स को लेकर बातचीत हो जाए तो दोनों देश काम करना शुरू कर देंगे तो बाकी चिंताओं की कोई जगह नहीं रह जाएगी। पैट्रोलियम और गैस, बिजली, बंदरगाह, निर्यात मैनूफैक्चरिंग और टूरिज्म में सहयोग से दोनों देशों के रिश्ते ठोस और सार्थक तरीके से आगे बढ़ेंगे। श्रीलंका टूरिजम के माध्यम से अर्थव्यवस्था सुधारने की कोशिश कर रहा है और इस कदम में भारत उसका सबसे बड़ा बाजार है। राजपक्षे इससे पहले भी भारत के दौरे पर आए थे तब दोनों देशों ने श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को दोबारा खड़ा करने के लिए चार पिल्लर्क्स की एक योजना बनाई थी। इनमें फूड एंड हैल्थ सिक्योरिटी पैकेज, एनर्जी सिक्योरिटी पैकेट, करैंसी स्वैप डॉलर की बजाय एक-दूसरे की मुद्रा में व्यापार करना और श्रीलंका में भारत को विभिन्न क्षेत्रों में निवेश की सुविधा उपलब्ध कराना था।
भारत जिस तरीके से श्रीलंका की मदद कर रहा है उसकी हर कोई तारीफ कर रहा है। चीन के ऋण पाश का दंश अब श्रीलंका महसूस करने लगा है और अब उसे भारत सच्चा दोस्त लगने लगा है। श्रीलंका ने भारत से मदद मांगी थी और भारत ने उसे मदद दी। श्रीलंका को भारत और चीन से संबंधों में संतुलन बनाकर चलना होगा क्योंकि भारत से उसके संबंध स्वाभाविक हैं जबकि चीन से उसके संबंध विशुद्ध रूप से व्यापार पर आधारित हैं।