‘भारत जोड़ो यात्रा’ दो राज्यों तमिलनाडु और केरल के बाद अब कर्नाटक पहुंच गई है। कहा जा रहा था कि यहां राहुल गांधी के सामने असली चुनौती होगी। लेकिन यात्रा के 25 वें दिन राहुल ने कर्नाटक के मैसूर में बारिश के बीच जनसभा को संबोधित किया,जो इन दिनों चर्चाओं में है। दरअसल गांधी जयंती के मौके पर जब पूरे दिन की यात्रा के दौरान राहुल गांधी जनसभा को संबोधित करने के लिए मंच की तरफ बढ़े तो तेज बारिश होने लगी। इस मौके पर उन्होंने बारिश रुकने का इंतजार नहीं किया। भीगते हुए अपना भाषण जारी रख कहा, चाहे कुछ भी हो जाए ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को कोई रोक नहीं सकता। हमारी यात्रा का उद्देश्य भाजपा-
आरएसएस की फैलाई हुई नफरत और हिंसा को रोकना है। भाजपा और संघ ने चाहे जितनी नफरत फैलाई हो, यह यात्रा उसे रोकेगी और लोगों को फिर से जोड़ने में मदद करेगी। इसी दौरान उनकी कई तस्वीरें भी वायरल हो रही हैं जो भारतीय राजनीति के इतिहास में दर्ज हो चुकी हैं
कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ दो राज्यों तमिलनाडु और केरल के बाद अब कर्नाटक पहुंच गई, जहां पर राहुल के सामने असली चुनौती शुरू होने वाली है। क्योंकि यहां बीजेपी का शासन है, जो कांग्रेस की मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी है। यह चुनौती इसलिए भी चुनौतीपूर्ण मानी जा रही थी क्योंकि कर्नाटक में अगले छह महीने के बाद चुनाव होना है। लेकिन यात्रा के 25 वें दिन राहुल गांधी ने कर्नाटक के मैसूर में बारिश के बीच जनसभा को संबोधित किया,जो चर्चाओं में है। गांधी जयंती के मौके पर जब पूरे दिन की यात्रा के बाद राहुल लोगों को संबोधित करने के लिए मंच की तरफ बढ़े तो बारिश होने लगी। इस मौके पर राहुल ने बारिश रुकने का इंतजार नहीं किया। भीगते हुए अपना भाषण जारी रखा। उस दौरान उन्होंने कहा, चाहे कुछ भी हो जाए, ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को कोई नहीं रोक सकता। हमारी यात्रा का उद्देश्य भाजपा-आरएसएस की फैलाई हुई नफरत और हिंसा को रोकना है। गर्मी, तूफान या सर्दी भी इस यात्रा को नहीं रोक पाएगी। यह यात्रा नदी की तरह बिना रुके कन्याकुमारी से कश्मीर तक जाएगी। इस नदी में आपको नफरत और हिंसा जैसी चीजें नहीं मिलेंगी। इसमें सिर्फ प्यार और भाईचारा मिलेगा जो भारत के इतिहास और डीएनए में है। भाजपा और संघ ने चाहे जितनी नफरत फैलाई हो, यह यात्रा उसे रोकेगी और लोगों को फिर से जोड़ने में मदद करेगी। इसी दौरान कई तस्वीरें भी वायरल हो रही हैं जो चर्चाओं का विषय बनी हुई हैं। यहां तक कि ये तस्वीरें भारतीय राजनीति के इतिहास में दर्ज हो चुकी हैं।
इस बीच कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी भी 6 अक्टूबर को कर्नाटक के मंड्या में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में शामिल हुईं। कहा जा रहा है कि सोनिया की मौजूदगी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को और ज्यादा मजबूती प्रदान की है, क्योंकि कर्नाटक से सोनिया गांधी का गहरा संबंध है। जब कभी गांधी परिवार पर राजनीतिक संकट आया है, तब दक्षिण भारत ने उसे मुश्किल से बाहर निकला है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी दक्षिण भारत की सीटों से लोकसभा चुनाव लड़ा था। इमरजेंसी के बाद जब इंदिरा गांधी की सरकार चली गई थी तब वर्ष 1980 में उन्हें एक सुरक्षित लोकसभा सीट की जरूरत थी तो उन्होंने कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव लड़ा था। इंदिरा गांधी ने आंध्र प्रदेश के मेंडक और उत्तर प्रदेश के रायबरेली दो सीटों से नामांकन दाखिल किया था। हालांकि बाद में उन्होंने राय बरेली की सीट छोड़ दी थी। सोनिया गांधी भी कर्नाटक के बेल्लारी सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं। 1999 के लोकसभा चुनाव में सोनिया को उत्तर प्रदेश की अमेठी सीट से हारने का डर था। ऐसे में उन्होंने बेल्लारी से नामांकन दाखिल किया और अपने नामांकन को लेकर गोपनीयता रखने की कोशिश की थी, लेकिन भाजपा को यह बात पता चल गई और उन्होंने सोनिया के खिलाफ सुषमा स्वराज को मैदान में उतार दिया। सुषमा स्वराज इस सीट से 56 हजार के वोटों से हार गई थीं। यही नहीं जब 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को लगा कि वह अमेठी से चुनाव हार जाएंगे तो उन्होंने केरल के वायनाड से चुनाव लड़ा था। इस समय भी कांग्रेस और गांधी परिवार पर सियासी संकट आया हुआ है। ऐसे में माना जा रहा है कि एक बार फिर उसे दक्षिण भारत इस संकट से उभार सकता है। हालांकि कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि कांग्रेस की यात्रा को कर्नाटक में चुनौती मिल सकती है। क्योंकि तमिलनाडु में कांग्रेस गठबंधन की ही सरकार है और केरल में सीपीआई (एम) की सरकार है, जहां कांग्रेस विपक्ष में तो है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर वह कांग्रेस के साथ भी है, इसलिए वहां राहुल को उतनी दिक्कत नहीं हुई, लेकिन कहा जा रहा है कि कर्नाटक में बीजेपी कांग्रेस को चुनौती देगी। ताकि राहुल की लोकप्रियता को बढ़ने से रोका जा सके।
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ अभी तक सफल रही है। उनका कहना है कि जिस प्रकार उनकी यात्रा की जो तस्वीरें सामने आई हैं उनसे जाहिर है कि इस यात्रा को व्यापक समर्थन मिल रहा है। दूसरी ओर देश के सियासी परिवेश में इस यात्रा के न सिर्फ सत्ता पक्ष बल्कि विपक्ष के लिए बड़े मायने निकाले जा रहे हैं। यात्रा को लेकर हर आयु वर्ग में उत्साह नजर आ रहा है। राहुल भी बेहद साधारण तरीके से आमजन से न सिर्फ संवाद करते दिख रहे हैं बल्कि बच्चों से लेकर महिलाओं और दुकानदार यहां तक कि चाय की छोटी-सी दुकान पर रुक कर खुद की सहज सरल छवि स्थापित कर रहे हैं। राहुल ने अपनी यात्रा को नफरत की राजनीति के खिलाफ केंद्रित किया है। राहुल ने नफरत की राजनीति को मूल मुद्दा बना सत्ता पक्ष यानी भाजपा और उसके पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के खिलाफ बड़ा और निर्णायक हमला किया है। राहुल पहले भी भाजपा और संघ के खिलाफ की राजनीति के खिलाफ तीखे हमले करते रहे हैं। अब इस यात्रा से राहुल यह संदेश देने में सफल साबित होते दिख रहे हैं कि भाजपा और संघ की विचारधारा के खिलाफ लड़ने वाले नेताओं में वह सबसे आगे और सबसे बेखौफ हैं। साथ ही पीएम मोदी के अलावा ईडी, आईटी और सीबीआई से न डरने की बात वे जिस बेबाकी से कर रहे हैं वे उन्हें केंद्र की सत्ता के खिलाफ एक बड़ा योद्धा बनाता दिखाई दे रहा है।
दूसरी ओर राहुल गांधी गैर कांग्रेसी विपक्ष को भी बड़ा संदेश दे रहे हैं। विपक्षी एकता के लिए प्रयासरत नेताओं को राहुल गांधी ने इस यात्रा के माध्यम से सीधा संदेश दे दिया है कि कांग्रेस के अलावा कोई भी ऐसी पार्टी नहीं जिसकी स्वीकार्यता कन्याकुमारी से कश्मीर तक हो। ऐसे में कांग्रेस को साइडलाइन कर विपक्षी एकता का ख्वाब देख रहे नेताओं के लिए भी राहुल की यह यात्रा आंख खोलने वाली मानी जा रही है।

राहुल गांधी स्वयं भी इस यात्रा के दौरान विपक्षी एकता पर जोर दे रहे हैं। राहुल गांधी यह जानते हैं कि केंद्र की मोदी सरकार को चुनौती देने के लिए विपक्ष को साथ आना होगा। ऐसे में वे खुद विपक्षी एकता की पहल तो कर रहे हैं साथ ही यह संदेश देने में भी कामयाब दिख रहे हैं कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता का कोई अर्थ नहीं और वे खुद को कन्याकुमारी से कश्मीर तक के सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित करते जा रहे हैं।
‘भारत जोड़ो यात्रा’ जिन राज्यों से होकर कश्मीर तक पहुंचेगी उनमें केवल गुजरात और हिमाचल प्रदेश में ही नहीं बल्कि कई राज्य शामिल हैं। ऐसे में इतना तो साफ है कि इस यात्रा को विधानसभा चुनावों के मद्देनजर आकार नहीं दिया गया है। इस यात्रा का संदेश केंद्रीय राजनीति पर ही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इस यात्रा का मकसद न सिर्फ 2024 की चुनौती को पार करना है बल्कि अपने कुनबे को मजबूत और स्थिर करना भी है।
गौरतलब है कि देश में पहले भी ऐसी कई पदयात्राएं हो चुकी हैं। इन यात्राओं से फायदा भी हुआ लेकिन जब इसका रूप आंदोलन का हो, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की डांडी यात्रा हो या आडवाणी की रथ यात्रा ये सब एक आंदोलन के रूप में शुरू हुईं और सफल रहीं। सियासी तौर पर चंद्रशेखर की देशभर में ‘भारत एकता यात्रा’ काफी सफल हुई थी। ऐसे ही राजीव गांधी ने भी देश को जानने और समझने के लिए पदयात्रा की थी। तेलंगाना को अलग राज्य बनाने के लिए केसीआर ने पदयात्रा की तो आंध्र प्रदेश में राज शेखर रेड्डी और जगन मोहन रेड्डी ने खुद को सियासी तौर पर स्थापित करने के लिए अलग-अलग समय पर यात्रा निकालीं। ऐसे में राजनीतिक जानकर कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के भी सफल होने के कयास लगाने लगे हैं।