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गेम चेंजर बनती ‘भारत जोड़ो यात्रा’

कांग्रेस की कन्याकुमारी से कश्मीर तक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की जो तस्वीरें सामने आई हैं उनसे साफ जाहिर है कि यात्रा को व्यापक जन समर्थन मिल रहा है। दूसरी ओर देश के सियासी परिवेश में इस यात्रा से न सिर्फ सत्ता पक्ष बल्कि विपक्ष के लिए बड़े मायने निकाले जा रहे हैं। जिस तरह यात्रा को लेकर हर आयु वर्ग में उत्साह नजर आ रहा है उसे देख कहा जा रहा है कि कांग्रेस के लिए यह यात्रा गेम चेंजर हो सकती है

पिछले हफ्ते से शुरु हुई ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को लेकर कांग्रेस का 12 राज्यों का भ्रमण जारी है। पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कन्याकुमारी से कश्मीर तक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ पर निकल चुके हैं। उनकी यात्रा की जो तस्वीरें सामने आ रही हैं उनसे साफ जाहिर है कि इस यात्रा को व्यापक समर्थन मिल रहा है। दूसरी ओर देश के सियासी परिवेश में इस यात्रा के न सिर्फ सत्ता पक्ष बल्कि विपक्ष के लिए बड़े मायने निकाले जा रहे हैं।

राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को लेकर हर आयु वर्ग में उत्साह नजर आ रहा है। इस दौरान राहुल बेहद साधारण तरीके से आमजन से न सिर्फ संवाद करते दिख रहे हैं बल्कि बच्चों से लेकर महिलाओं और छोटे दुकानदार, यहां तक कि चाय की छोटी-सी दुकान पर रुक कर खुद की सहज सरल छवि स्थापित कर रहे हैं।
राहुल ने अपनी यात्रा को नफरत की राजनीति के खिलाफ केंद्रित किया है। राहुल ने नफरत की राजनीति को मूल मुद्दा बना सत्ता पक्ष यानी भाजपा और उसके पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं संघ के खिलाफ बड़ा और निर्णायक हमला किया है। राहुल पहले भी भाजपा और संघ की राजनीति के खिलाफ तीखे हमले करते रहे हैं। अब इस यात्रा से राहुल यह संदेश देने में सफल साबित होते दिख रहे हैं कि भाजपा और संघ की विचारधारा के खिलाफ लड़ने वाले नेताओं में वह सबसे आगे और सबसे बेखौफ हैं। साथ ही पीएम मोदी के अलावा ईडी, आईटी और सीबीआई से न डरने की बात वे जिस बेबाकी से कर रहे हैं वह उन्हें केंद्र की सत्ता के खिलाफ एक बड़ा योद्धा बनाता दिखाई दे रहा है।

दूसरी ओर राहुल गांधी गैर कांग्रेसी विपक्ष को भी बड़ा संदेश दे रहे हैं। विपक्षी एकता के लिए प्रयासरत नेताओं को राहुल गांधी ने इस यात्रा के माध्यम से सीधा संदेश दे दिया है कि कांग्रेस के अलावा कोई भी ऐसी पार्टी नहीं जिसकी स्वीकार्यता कन्याकुमारी से कश्मीर तक हो। ऐसे में कांग्रेस को साइडलाइन कर विपक्षी एकता का ख्वाब देख रहे नेताओं के लिए भी राहुल की यह यात्रा आंख खोलने वाली मानी जा रही है।

राहुल गांधी स्वयं भी इस यात्रा के दौरान विपक्षी एकता पर जोर दे रहे हैं। राहुल गांधी यह जानते हैं कि केंद्र की मोदी सरकार को चुनौती देने के लिए विपक्ष को साथ आना होगा। ऐसे में वे खुद विपक्षी एकता की पहल तो कर रहे हैं साथ ही यह संदेश देने में भी कामयाब हैं कि कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता का कोई अर्थ नहीं और वे खुद को कन्याकुमारी से कश्मीर तक के सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित करते जा रहे हैं।

‘भारत जोड़ो यात्रा’ जिन राज्यों से होकर कश्मीर तक पहुंचेगी उनमें केवल गुजरात और हिमाचल प्रदेश में ही जल्द विधानसभा चुनाव हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक में चुनाव अगले साल है। ऐसे में इतना तो साफ है कि इस यात्रा को विधानसभा चुनावों के मद्देनजर आकार नहीं दिया गया है। इस यात्रा का संदेश केंद्रीय राजनीति पर ही है।

दूसरी तरफ इस यात्रा का मकसद न सिर्फ 2024 की चुनौती को पार करना है बल्कि अपने कुनबे को मजबूत और स्थिर करना भी है। लेकिन राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के एलान के बाद से लगता है पार्टी नेताओं का कांग्रेस छोड़ो मोड बन चुका है। यात्रा के एलान के बाद से अब तक गुलाम नबी आजाद, गोवा के विधायक समेत कई लोग पार्टी छोड़ चुके हैं। कश्मीर में तो कई नेताओं ने आजाद के समर्थन में पार्टी छोड़ दी थी। उधर गोवा में अब पार्टी के सिर्फ तीन ही विधायक बचे हैं।

कांग्रेस पार्टी के लिए ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का फल अभी तक नहीं निकल पाया है। हालांकि यात्रा को अभी शुरू हुए कुछ ही दिन हुए हैं और यात्रा अपने शुरुआती पड़ाव में है लेकिन, कई राज्यों में राजनीतिक उठापटक कांग्रेस के लिए बुरी खबर लेकर आ रही है। हालांकि राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कांग्रेस की यह स्थिति काफी पहले से चल रही थी, जिसके नतीजे अब सामने आ रहे हैं।

पार्टी लगातार यह भरोसा जता रही है कि यह यात्रा संगठन को पुनर्जीवित करेगी। इसका फायदा वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में मिलेगा। ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि पार्टी नेता सब्र क्यों खो रहे हैं। पार्टी में नेतृत्व संकट भी बड़ी वजह है। पार्टी छोड़ने वाले ज्यादातर नेताओं ने कहा है कि नेतृत्व को लेकर स्थिति साफ नहीं है। निर्णयों में भी देरी होती है।

यात्रा के दौरान महिला समर्थकों के बीच राहुल

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा हो चुकी है। इस महीने के अंत में नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। मगर अभी तक यह तय नहीं है कि पार्टी का नया अध्यक्ष कौन होगा। पार्टी के ज्यादातर नेता राहुल गांधी को एक बार फिर अध्यक्ष बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी इस बारे में साफ तौर पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं। वहीं पार्टी के कई नेता नया अध्यक्ष चुनने के लिए चुनाव के बजाए आपसी सहमति से अध्यक्ष के चुनाव पर जोर दे रहे हैं।
पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की कांग्रेस छोड़ने की एक बड़ी वजह भविष्य को लेकर कोई उम्मीद न होना भी बताई जा रही है। पार्टी छोड़ने वाले एक नेता ने कहा कि वह भविष्य को लेकर चिंतित हैं। पार्टी की स्थिति को देखते हुए उन्हें जल्द कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है।

इसके साथ पार्टी के अंदर अपनी समस्याओं को नेतृत्व तक पहुंचाने का तंत्र भी पूरी तरह खत्म हो चुका है। पहले नेता और कार्यकर्ता पार्टी अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव के जरिए पार्टी नेतृत्व तक अपनी बात पहुंचा सकते थे। वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के बाद यह तंत्र खत्म हो गया है। दूसरी तरफ कांग्रेस का कहना है कि वर्ष 2014 के बाद लगातार चुनावी हार से ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं का धैर्य जवाब देने लगा है। इसलिए वह सत्तारुढ़ पार्टी में शामिल हो रहे हैं। क्योंकि संघर्ष की राह कठिन है। गोवा में 2027 में विधानसभा चुनाव होंगे। संघर्ष लंबा है। ऐसे में इन विधायकों ने संघर्ष के बजाए सत्ता का विकल्प चुना है। दरअसल, एसोसिएशन फाॅर डेमोक्रेटिक रिफाॅम्र्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले आठ वर्षों में कांग्रेस के 170 से अधिक विधायक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टियों में शामिल हुए हैं।

यात्रा से कांग्रेस को मिलेगा फायदा!
देश में पहले भी ऐसी कई पदयात्राएं हो चुकी हैं। इन यात्राओं से फायदा भी हुआ लेकिन जब इसका रूप आंदोलन का हो, देश में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की डांडी यात्रा हो या आडवाणी की रथ यात्रा, ये सब एक आंदोलन के रूप में शुरू हुईं और सफल रहीं। सियासी तौर पर चंद्रशेखर की देश भर में भारत एकता यात्रा काफी सफल हुई थी। ऐसे ही राजीव गांधी ने भी देश को जानने और समझने के लिए पदयात्रा की थी। तेलंगाना को अलग राज्य बनाने के लिए केसीआर ने पदयात्रा की तो आंध्र प्रदेश में राज शेखर रेड्डी और जगन मोहन रेड्डी ने खुद को सियासी तौर पर स्थापित करने के लिए अलग-अलग समय पर यात्रा निकालीं। ऐसे में राजनीतिक जानकर ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के भी सफल होने के कयास लगा रहे हैं।

‘भारत जोड़ो यात्रा’ में हर दिन 25 किलोमीटर की पदयात्रा होगी और 150 दिन में 3 हजार 500 किलोमीटर का सफर तय किया जाएगा। यात्रा के दौरान राज्यों में कई जगहों पर आम सभाएं भी आयोजित होंगी। राजनीति के जानकारों का कहना है कि इस यात्रा के बहाने कांग्रेस ने 2024 का रास्ता तय करना शुरू कर दिया है।

यात्रा पर विवाद
राहुल गांधी भारत जोड़ो पदयात्रा की शुरुआत से ही लगातार चर्चा में बने हुए हैं। यात्रा के रास्ते में बच्चों, पुरुषों और महिलाओं के साथ बातचीत करने और सेल्फी लेने के साथ-साथ कई विवादों में घिरते दिखे।

महंगी टी-शर्ट
‘भारत जोड़ो यात्रा’ शुरू होने के तीसरे ही दिन भाजपा और कांग्रेस में राहुल गांधी की टीशर्ट को लेकर तीखी बहस शुरू हो गई थी। भाजपा द्वारा दावा किया था कि महंगाई का मुद्दा उठाने वाले वायनाड सांसद राहुल गांधी ने खुद 41 हजार 257 रुपए की टी-शर्ट पहनी हुई है। सोशल मीडिया पर भाजपा ने फोटो भी शेयर किए थे। जिसके बाद सोशल मीडिया पर पीएम मोदी के कोट, चश्मे पर भी सवाल उठाए गए। लेकिन इस पूरे विवाद पर कांग्रेस का कहना था कि केंद्र में सत्तारूढ़ दल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ को मिल रहे समर्थन से बौखला गई है।

कंटेनर पर विवाद
राहुल गांधी यात्रा के दौरान कंटेनर में रहेंगे। ट्रकों पर सजे इन 60 कंटेनर में यात्रा के स्थाई यात्री यानी कन्याकुमारी से जम्मू-कश्मीर तक का सफर तय करने वाले नेता भी रहेंगे। खबरों में बताया जा रहा था कि इन्हीं में से एक कंटेनर में राहुल रहेंगे। जबकि, बचे हुए कंटेनर अन्य नेता आपस में शेयर करेंगे। आरोप लगाए गए थे कि कांग्रेस ने इन कंटेनर में नई सुविधाएं शामिल की हैं। हालांकि कांग्रेस का कहना है कि इनमें केवल बुनियादी सुविधाएं हैं।

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